Categories
बिखरे मोती

*’विशेष ‘ त्रिगुणातीत से क्या अभिप्राय है ?(भाग 3)*

तमोगुण का कूप इतना गहरा है कि इससे निकलना बड़ा जटिल और दुष्कर है , प्रायः सादक या तो इस कूप में गिर जाते है अथवा भटक जाते है इस तमोगुण के दानव में न जाने कितने सादको को निगला है। हमारे मनीषियों ने योगियो, ऋषियों ने तमोगुण को जीतने के कुछ उपाय बताए है जिनका वर्णन हम आगे करेंगे, पहले यह जानिए कि तमोगुण की प्रधानता से काम, क्रोध, लोभ, मोह, निज, प्रमाद, आलस्य लालच अथवा लोभ, घृणा, राग, द्वेष, मतसर, अहंकार इत्यादि मनोविकारों में वृद्धि होती है। हमारा चित्त स्फटिक की तरह सदैव निर्मल रहे इसके लिए नित्त निरंतर यह प्रयास कीजिए कि जो कुटील विचार अथवा वृत्ति चित्त को मलिन करे उन्हें है। उत्पन्न ही न होने दे और यदि वो चित्त मैं आ भी जाते है तो उनका सोधन ठीक इस प्रकार करे जैसे चनें को भून ने के बाद उसकी ‘अंकुरण ‘ शक्ति समाप्त हो जाती है ऐसे ही योग के द्वारा इनका उन्मूलन करें इसके अतिरिक्त मन के जितने भी उद्वेग हैं उनको मार्गान्तीकरण करें जैसे क्रोध को क्षमा में बदले अहंकार को विनम्रता में बदले घृणा को प्रेम में बदले, लोभ को परमपिता परमात्मा की भक्ति और संसार की भलाई में बदले , निष्काम में बदले तो काफी हद तक तमोगुण को जीता जा सकता है।
उपरोक्त विशलेषण का सारांश ये है कि यदि साधक निरंतर अध्यवसाय करे और साधन में लीन रहे तो त्रिगुणातीत की सिध्द्धी को प्राप्त किया जा सकता है। पुण्श्चय मैं यहि कहूंगा त्रिगुणातीत से पूर्ण रूप से होना तो मोक्ष और प्रलय में ही संभव है किंतु फिर भी साधक को अपना आत्मावलोकन करते रहना चाहिए और जीवन के इस श्रेय मार्ग पर निरंतर बढ़‌ते रहना चाहिए।
क्रमशः

Comment:Cancel reply

Exit mobile version