रावण अपनी मूर्खता और अहंकार के कारण दिन प्रतिदिन अपने अनेक साथियों को खोता जा रहा था। उसके अनेक वीर योद्धा स्वर्ग सिधार चुके थे। यद्यपि ऊपरी तौर पर वह अभी भी घमंड के वशीभूत होकर पराजित होने का नाम नहीं ले रहा था। पर भीतर ही भीतर वह टूट चुका था। उसे अपने कर्मों पर प्रायश्चित भी हो रहा था। यद्यपि उसे वह स्वीकार करने को तत्पर नहीं था।
लड़ते गए मिटते गए , शत्रु युद्ध के बीच।
युद्ध क्षेत्र को चल दिया , अंत में रावण नीच।।
समझ लिया लंकेश ने , ग्रह नहीं अनुकूल।
भूल हुई है मूल में चुभ रही बनकर शूल।।
फल करनी का सामने , मर रहे वीर हजार।
शेष रहे मर जाएंगे , बुरी कर्मों की मार।।
प्रहस्त वीर के अंत ने , हिला दिया लंकेश।
रावण को चिंता हुई, बचता नहीं अब देश।।
रामचंद्र जी को रावण की सही-सही जानकारी भी विभीषण जी ने दी। विभीषण जी ने बताया कि युद्ध क्षेत्र में रावण कहां खड़ा है और उसका कैसा वेश है? वास्तव में विभीषण जी के द्वारा युद्ध क्षेत्र में इस प्रकार की जानकारियां रामचंद्र जी के लिए बहुत महत्वपूर्ण सिद्ध हो रही थीं। यदि विभीषण युद्ध क्षेत्र में नहीं होते तो निश्चय ही रावण या उसके अन्य साथियों की दुर्बलता को तात्कालिक आधार पर समझने में रामचंद्र जी और उनके पक्ष के योद्धाओं को कई प्रकार की कठिनाइयों का आना स्वाभाविक था।
विभीषण ने बतला दिया, रावण का सही वेश।
परिचय दिया श्री राम को, कहां खड़ा लंकेश।।
कौन बचा है मृत्यु से ? आती सबके पास।
कौन मृत्यु को खोजता ? स्वयं ही आती पास।।
मौत को न दे सका , कोई जगत में मात।
हर ‘रावण’ गया छोड़कर, सजी संवरी चौपाल।।
हमला किया लंकेश ने, उधर चले कपिराज।
तीखे बाण लंकेश के , धरा गिरे कपिराज।।
जब रावण अपना भयंकर रूप धारण कर श्री राम जी के पक्ष के लोगों का धड़ाधड़ संहार कर रहा था ,तब हनुमान जी ने उसकी शक्ति का सामना करने के लिए अपने आप को प्रस्तुत किया :-
मार काट था कर रहा, भयंकर हो लंकेश।
पवन पुत्र हनुमान जी , जा पहुंचे उस देश।।
छाती पर हनुमान की, तीव्र किया आघात।
संभल गए हनुमान जी , दे दिया ठोस जवाब।।
हनुमान की चोट से , घूम गया लंकेश।
प्रशंसा करने लगा, बहुत खूब वीरेश।।
हनुमान के साथ थे , सत्य धर्म और न्याय।
इनके हित रण में खड़े, नहीं धर्म मिट जाए।।
डॉ राकेश कुमार आर्य
( लेखक सुप्रसिद्ध इतिहासकार और भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता है। )