भारत ने 2023 में लगभग 125 बिलियन डॉलर का जीवाश्म ईंधन (क्रूड ऑयल, एलपीजी और सीएनजी) आयात किया था और 2024 में लगभग 101 बिलियन डॉलर का जीवाश्म ईंधन आयात किया था। संसद की 2023- 24 की स्टैंडिंग समिति ने अपने रिपोर्ट में इंटरनेशनल एनर्जी एसोसिएशन (IEA) का हवाला देकर कहा है कि 2040 तक भारत में ऊर्जा खपत दुगुना हो जाएगी। फाइनेंसियल एक्सप्रेस ने भी एक संस्था का हवाला देकर कहा है कि 2045 तक भारत में खनिज तेल का आयात दुगुने से अधिक हो जाएगा। अर्थात भारत 2040 में 200 बिलियन से 250 बिलियन डॉलर का जीवाश्म ईंधन आयात करेगा। अर्थात आज के रुपए के बाजार मूल्य के अनुसार 16.8 लाख करोड़ रुपए से लेकर 21 लाख करोड़ रुपए तक का जीवाश्म ईंधन का आयात ! अगर भारत आने वाले 10 वर्षों में योजना और रणनीति बनाकर धीरे धीरे जीवाश्म ईंधन के आयात को 50% तक कम कर दे, तो हर वर्ष 100 बिलियन डॉलर ( 8 लाख करोड़ रुपए ) से 125 बिलियन डॉलर ( 10.5 लाख करोड़ रुपए) की विदेशी मुद्रा की बचत होगी। क्या “विकसित भारत” बनाने के लिए वह सबसे महत्वपूर्ण कार्य नहीं होगा ? सवाल है -हो कैसे ? उसी पर इस लेख में विचार करते हैं।
2015 में भारत सरकार ( आजकल मोदी सरकार बोलने का प्रचार है) ने खनिज तेल ( Crude oil) के आयात के विषय में लक्ष्य तय किए थे। उसके अनुसार 2013-14 में भारत खपत का 77% खनिज तेल आयात कर रहा था, उसे 2022 तक 67% तक नीचे लाने का लक्ष्य रखा गया। 2023 में भारत ने खपत का 87% खनिज तेल आयात किया ! 2024 में हमने खपत का 88% खनिज तेल आयात किया, 60% रसोई गैस (एलपीजी) और 50% प्राकृतिक गैस ( सीएनजी) का आयात किया है। अर्थात खनिज तेल और अन्य जीवाश्म ईंधन का आयात कम करने पर विचार तो हुआ है, पर उसे हम कम नहीं कर पाए। ऐसा क्यों हुआ होगा ? यह भी विचारणीय है।
जीवाश्म ईंधन का आयात कम करना क्यों महत्वपूर्ण है ? –
वैसे कुछ विचारक लोगों को सायकल की सवारी करने की सलाह भी दे सकते हैं या वाहनों के मूल्य बढ़ाने की भी सलाह दे सकते हैं, पर इन सब से अलग सोचने की आवश्यकता है। सुजुकी के वरिष्ठतम अधिकारी के अनुसार इस वर्ष भारत में 42 लाख कारें बिकी थीं, 2047 में भारत में 2 करोड़ कारें बिक सकती हैं। अर्थात आज से पांच गुना ! फिर सवाल उठता है कि जीवाश्म ईंधन की खपत कम कैसे हो सकती है ?
विद्युत वाहनों का प्रचलन बढ़ेगा, पर 2047 तक पेट्रोल डीजल पर चलने वाले पुराने और नए वाहन सड़कों पर बने रहेंगे। अभी तो उन पर कानूनी रोक लगाने का विकल्प दिख नहीं रहा है। लेकिन अगर भारत का जीवाश्म ईंधन का आयात घटता है तो विकसित भारत बनाने के लिए उसके अनेक सकारात्मक परिणाम होंगे। जैसे –
1) जीवाश्म ईंधन के उपाय के कारण पर्यावरण में कार्बन की मात्रा बढ़ रही है, जिससे जलवायु परिवर्तन का भीषण संकट खड़ा हो गया है। उस संकट को दूर करने में योगदान के लिए जीवाश्म ईंधन की खपत कम करना अपरिहार्य हो गया है।
2) भारत को बहुमूल्य विदेशी मुद्रा को जीवाश्म ईंधन के आयात पर खर्च करना पड़ता है, अगर आयात में कमी होती है, तो बचत को अन्य विकास कार्यों पर खर्च करके विकास कार्यों की गति बढ़ सकती है। 50%आयात कम मतलब धीरे धीरे 5 लाख करोड़ से 10 लाख करोड़ रुपए की हर वर्ष बचत। इतनी विशाल राशि का उपयोग भारत के भाग्य को बदलने में सक्षम है।
3) आयात अधिक और निर्यात कम होने के कारण भारतीय रुपए पर दबाव बना रहता है। विदेशी मुद्रा की मांग अधिक होने से रुपए का अवमूल्यन होता रहता है। अगर योजना बना कर जीवाश्म ईंधन के आयात को कम किया जाता है, तो रुपए के अवमूल्यन पर नियंत्रण हो जाएगा। उसका अनेक प्रकार से देश की अर्थव्यवस्था को लाभ होगा। विश्व बाजार में भारत की साख बढ़ेगी, और 30 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने में भी सहयोग हो जाएगा।
4) आयात अधिक और निर्यात कम होने से हमेशा व्यापार घाटा (Trade Deficit) बना रहता है। जिससे विश्व बाजार में देश की साख कम होती है। जीवाश्म ईंधन का आयात कम करके व्यापार घाटा को दूर किया जा सकता है, और देश के अर्थव्यवस्था की एक और दुर्बलता को दूर हो सकती है।
ये चार महत्वपूर्ण कारक हैं, जिस कारण से जीवाश्म ईंधन का आयात आने वाले 10 वर्षों में 50% कम करना विचारणीय और करणीय हो जाता है।
जीवाश्म ईंधन के आयात को कम करने की योजना और रणनीति –
विद्युत वाहनों के आर्थिक और तकनीकी दृष्टि से सफल होने कारण विश्व में उनके बढ़ते प्रयोग से जीवाश्म ईंधन का उपयोग कम होते जाने के बारे में सभी आश्वस्त हैं। इसी प्रकार से ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन की तकनीकी का भी आर्थिक दृष्टि से किफायती होने की आशाएं सभी लगाए बैठे हैं। अगर ग्रीन हाइड्रोजन को जीवाश्म ईंधनों की लागत से सस्ते में बनाने की तकनीकी सफल हो गई, तो वह एक और चमत्कार होने जा रहे है। फिर इस लेख को लिखने का क्या प्रयोजन ? ऐसा प्रश्न उठाना स्वाभाविक है।
भारत के विषय में विशेषज्ञों द्वारा बताई जीवाश्म ईंधन के आयात की जो भविष्यवाणियां हमने ऊपर देखीं हैं, वे इन सब बातों को ध्यान में रखने के बाद ही की गईं हैं, यह भी तथ्य है। विद्युत वाहनों की संख्या बढ़ते जाने वाली है, पर साथ ही जीवाश्म ईंधन पर चलने वाले वाहनों की संख्या भी 2047 तक बढ़ते जाने वाली है। इसी प्रकार से हाइड्रोजन तकनीकी अभी भविष्य की गोद में है, वह आने वाले दशक में सफल हो जाएगी, या और अनेक वर्ष लगेंगे, उसका अभी अनुमान लगाना कठिन ही है। उपरोक्त सब बातों का साथ में विचार करने के बाद ही भारत में जीवाश्म ईंधन की खपत की भविष्यवाणी की गई हैं और उसके अनुसार 2040 से लेकर 2047 तक भारत में जीवाश्म ईंधन का आयात कम से कम दुगुना होने वाला है। इसलिए जीवाश्म ईंधन के आयात को 50% तक घटाने पर विचार करना आवश्यक हो जाता है।
सड़क पर चलने वाले वाहनों के विकल्प जैसे विद्युत वाहन, या वैकल्पिक ईंधन जैसे ग्रीन हाइड्रोजन पर ही विचार करने से जीवाश्म ईंधन की खपत को 50% तक कम करना आज कठिन कार्य है, इसलिए यातायात के अन्य विकल्पों और ऊर्जा बचत के अन्य विकल्पों पर भी विचार करना होगा और अन्य विकल्पों में भी सही विकल्प चुनने का विचार करना होगा। तभी हम निर्धारित लक्ष्य तक पहुंच सकते हैं।
पर हो कैसे ? अगले 10 वर्षों में जीवाश्म ईंधन के आयात को क्रमशः 50% तक कम करने के निम्न सुझाव हैं –
यात्री रेलगाड़ियों की संख्या दुगुना करना – सबसे पहला कार्य है हर वर्ष यात्री रेलगाड़ियों की संख्या बढ़ाते जाना। लोगों को जहां रेल मार्ग से यात्रा करना संभव है या भविष्य में संभव हो सकती है, वहां सड़क मार्ग से यात्रा न करनी पड़े। पर रेल गाड़ी उस समय होती नहीं है या रेल में सीट खाली नहीं मिलती है। इसलिए लोगों को या तो सड़क मार्ग से यात्रा करने में मजबूर होना पड़ता है या हवाई जहाज से। हवाई जहाज से यात्रा करना तो जलवायु परिवर्तन के लिए और भी खतरनाक सिद्ध हुआ है। उदाहरण के लिए – अगर दिल्ली से आगरा, दिल्ली से हरिद्वार, दिल्ली से जयपुर, दिल्ली से चंडीगढ़, मुंबई से पूना, मुंबई से नासिक, मुंबई से बड़ोदरा, अहमदाबाद से सूरत, चेन्नई से बैंगलोर, हैदराबाद से विशाखापत्तनम आदि स्थानों पर आने जाने के लिए लगातार रेलगाड़ियां उपलब्ध हों, तो सड़क मार्ग से यात्रा करना कितने लोग छोड़ देंगे ? रेलगाड़ियों कुछ मार्गों पर चार गुना करना पड़ सकता है, कहीं तीन दुगुना और कहीं यथावत चल सकता है। रेलमार्ग में कितनी वृद्धि करनी होगी, केवल कुछ किमी रेलमार्ग में अतिरिक्त लाइन बिछाकर काम चल जाएगा, रेलवे की समयसारिणी में बदलाव करके कितनी रेलगाड़ियों को अतिरिक्त बढ़ाया जा सकता है, किन स्थानों के बीच रात्रि में ट्रेन चला कर काम चल सकता है, ऐसे सभी विषयों का विचार करना होगा। अभी सरकार का ध्यान रेलवे के घाटे को कम करने के लिए केवल एसी रेलगाड़ियां और एसी डब्बे बढ़ाने में लगी है। जबकि देश की 80% आबादी के लिए एसी ट्रेन या डिब्बे में यात्रा करना, विलासिता बनी हुई है। इसीलिए बंदे भारत जैसी एसी ट्रेनें अधिकांश समय खाली चल रहीं हैं। उपरोक्त बातों को ध्यान में रखकर अधिकांश ट्रेनें जनशताब्दी प्रकार की बढ़ानी होगी, जिसमें 5 डब्बे अगर एसी हों तो दस डब्बे नॉन एसी हों। या लंबी दूरी की ट्रेनों में 3 डब्बे सेकंड एसी, 6 डब्बे थर्ड एसी और कम से कम 9 डब्बे स्लीपर क्लास के होने चाहिए, साथ में 4 डब्बे अनारक्षित क्लास के भी होने चाहिए। इस प्रकार भिन्न भिन्न स्थानों पर रेलगाड़ियों की संख्या औसत से दो गुना करके लोगों को सड़क मार्ग से यात्रा करने से नियंत्रित किया जा सकता है। हम सभी जानते हैं कि रेलमार्ग से यात्रा में ईंधन की खपत आधी से कम होती है। 2019 में देश में लगभग 13 हजार यात्री रेलगाड़ियां चल रहीं थीं, अर्थात उन्हें अगले 10 वर्ष 25 हजार से अधिक करना होगा। इस पर हर स्तर पर विचार करके आने वाले 10 वर्षों में यात्री रेलगाड़ियों की संख्या दुगुनी करके जीवाश्म ईंधन का आयात और खपत घटाने का कार्य हो सकता है।
रेलवे मालगाड़ियों की संख्या दुगुना करना – 1950 में माल ढुलाई में रेलवे का हिस्सा 85% था, जो 2001 आते आते केवल 39% रह गया। 2017 -18 में 26% बचा था। भारत सरकार ने माल ढुलाई में रेलवे का हिस्सा 2030 तक 45% करने की योजना घोषित की थी। पर अनुमान के अनुसार वह 2030 में केवल 23% रह जाएगा। सड़क मार्ग से सामान को ले जाने में जितना ईंधन खर्च होता है, उसके आधा से कम खर्च रेलगाड़ी से ले जाने से होता है। भारत सरकार ने जितना ध्यान रेलवे पर देना चाहिए था, उतना कभी दिया नहीं। अतिरिक्त रेलवे लाइनें बिछाना और नई मालगाड़ियां हर वर्ष बढ़ाना, जीवाश्म ईंधन की खपत घटाने के लिए दूसरा आवश्यक कदम है। यात्री रेल हो या मालगाड़ी, उनकी सारी तकनीक देश में उपलब्ध है, उनका कच्चा माल देश में ही उपलब्ध है, इसलिए रोजगार बढ़ाने और विकास दर बढ़ाने में रेलगाड़ियों और उनकी लाइनों को बिछाने का महत्वपूर्ण योगदान होगा। अभी 12 लाख रेल कर्मचारी जितनी रेल गाड़ियां चला रहें हैं, अगर उतने ही रेल कर्मचारी दुगुनी रेल गाड़ियां चलाने लगें, तो रेलवे और देश, दोनों का कायापलट हो जाएगा।
पहले केवल टैक्सी और ऑटोरिक्शा के लिए विद्युत वाहनों को सब्सिडी दी जाए – देश में कारों और दो पहियों की संख्या 95% है और टैक्सियों और ऑटोरिक्शाओं की संख्या केवल 5% है। पर जीवाश्म ईंधन की खपत ये 5% टैक्सियां और ऑटोरिक्शाएं अधिक करती हैं। कैसे ? देश में जितने भी निजी दो पहिया हैं या निजी कारें हैं, वे दिन में औसत 15 किमी चलती हैं। अर्थात देश भर की सभी कारों और दो पहियों का दिन में चलने का राष्ट्रीय औसत निकालें, तो वे दिन 15 किमी ही चलते हैं। कुछ निजी वाहन बहुत अधिक चलते हैं, पर अधिकांश घर की शोभा बढ़ाने के लिए खडे रहते हैं, सप्ताह में एक या दो दिन ही चलती हैं ! पर टैक्सी और ऑटो अगर 150 किमी से कम प्रतिदिन चलेगा, तो वह घाटे का सौदा हो जाएगा। इसलिए अगर सरकार टैक्सी और ऑटोरिक्शा को ही सब्सिडी देने में प्राथमिकता देती है और धीरे धीरे टैक्सी और ऑटोरिक्शा क्षेत्र में विद्युत वाहनों को अनिवार्य कर देती है, तो जीवाश्म ईंधन के आयात और खपत में भारी बचत प्रारंभ हो सकती है। सरकार टैक्सी और ऑटोरिक्शा में विद्युत वाहनों को अनिवार्य करने के लिए रणनीति बना कर उसे लागू कर सकती है – जैसे महानगरों में जनवरी 2025 से केवल विद्युत चलित टैक्सी और ऑटो ही बिकेंगे, 2026 से 1 लाख से अधिक आबादी वाले नगरों में, 2027 से अन्य नगरों में और 2028 से सभी स्थानों पर केवल विद्युत चालित टैक्सी और ऑटो बिकेंगे।
देश में बसों की संख्या बढ़ाना – एक अध्ययन के अनुसार 2021 में देश के पब्लिक ट्रांसपोर्ट व्यवस्था में सरकारी -गैर सरकारी मिलाकर 2.5 लाख बसें हैं। यह प्रति लाख वयस्क आबादी पर केवल 24 बसें हैं, जबकि विशेषज्ञों के अनुसार पब्लिक ट्रांसपोर्ट में 50 बसें प्रति लाख आबादी होनी चाहिए। बसों की संख्या कम है, इसलिए निजी वाहनों की आवश्यकता मजबूरी में बढ़ रही है, टैक्सी और ऑटो का चलन बढ़ रहा है। अर्थात जीवाश्म ईंधन की खपत बढ़ रही है। अन्य देशों के समान पब्लिक ट्रांसपोर्ट में बसों की संख्या को आवश्यकता के अनुसार बढ़ाना सरकारों का अनिवार्य कार्य है। अधिकांश पुरानी बसें भी खस्ताहाल हैं। अब विद्युत चालित बसों का विकल्प भी उपलब्ध हो रहा है। अभी राज्य सरकारों के स्टेट ट्रांसपोर्ट विभाग में प्रति बस के हिसाब से अधिक कर्मचारी हैं। जिस कारण से बसों को चलाना, घाटे का सौदा बना हुआ है। प्रति बस 3 से 4 कर्मचारी के बदले 2 कर्मचारी तक लाने के लिए बसों की संख्या बढ़ाना बेहतर विकल्प है। स्टेट ट्रांसपोर्ट में कर्मचारियों की संख्या भी स्थिर रहे और बसों में सीटें भी खाली न रहें, इसके लिए 20 से 30 सीटों की विद्युत चालित मिनी बसों को स्थान देना, उन्हें बिना टिकट वितरक ( कंडक्टर) के चलाने के लिए उपाय करना, सबसे अच्छा विकल्प है। इस प्रकार देश में बसों की संख्या को अगले 10 वर्षों में दुगुना करने जीवाश्म ईंधन की खपत को आधा करने में सहयोग किया जा सकता है।
कोयला खानों के ऊपर ही विद्युत उत्पादन ( पावर प्लांट्स) को अनुमति देना – देश में रेलवे की मालगाड़ियां जो माल ढुलाई आजकल करती हैं, उसमें 50% हिस्सा केवल कोयले का है। वैसे विद्युत उत्पादन के लिए अब सोलर पावर, विंड पावर जैसे सस्ते और हरित विकल्प उपलब्ध हैं, पर भारत में विद्युत उत्पादन में कोयले का हिस्सा आने वाले अनेक दशकों तक बना रहेगा। इसलिए पुराने पड चुके कोयला से संचालित विद्युत संयंत्रों को बंद किया जाना चाहिए और नए संयंत्रों को केवल कोयला खदानों के पास ही लगाने की अनुमति दी जानी चाहिए। इससे कोयला परिवहन का रेलवे पर भार कम होता जाएगा, जिससे अन्य समानों के परिवहन के लिए रेलगाड़ियां उपलब्ध होने लगेंगी। इसी प्रकार जहां लोहे और एल्युमीनियम की खदानें हैं, उसी के आसपास कारखाने लगाने की अनुमति सरकारें दें। इससे भी परिवहन में होने वाले ईंधन में बचत होने लगेगी।
सोलर पावर को बढ़ाने के उपाय करना – ऊपर सोलर पैनल्स और नीचे खेती के प्रयोग सफल सिद्ध हो गए हैं। खेती के साथ सोलर पैनल्स लगाने से तेज धूप और अधिक गर्मी से सोलर पैनल्स को राहत मिलती है, जिससे विद्युत बनने में कमी नहीं आती है। सोलर पावर बनाने के लिए केंद्र सरकार ने किसानों के लिए ‘प्रधानमंत्री कुसुम योजना’ लाई है। इसमें किसानो को 500 किलोवाट से लेकर 2 मेगावाट तक सोलर पावर प्लांट्स लगाने देने की अनुमति देने की योजना है। केंद्र सरकार को इस योजना को और अधिक सरल करना चाहिए। इसमें सुधार करके 200 किलोवाट (एक एकड़ भूमि) से लेकर 5 किलोवाट ( 20 एकड़ भूमि) तक के सोलर पावर प्लांट्स लगाने की अनुमति होनी चाहिए । जहां सोलर पावर प्लांट्स लगाने का अधिक लाभ हो, ऐसे ग्रामों में सोलर संकुल विकसित करने की बात कुसुम योजना में जोड़नी चाहिए। अर्थात उन गांवों के आसपास आधारभूत संरचनाएं सरकार विकसित करे। इससे लाखों परिवारों को लाभदायी रोजगार और देश को प्रचुर सोलर पावर की उपलब्धता इससे सुनिश्चित हो सकती है।
पूर्व में बने बांधों पर पंप स्टोरेज सोलर प्लांट्स लगाने की व्यवस्था हो – देश में लगभग 5 हजार से अधिक बड़े बांध (Large Dams) बने हैं । उनमें से केवल 50 के आसपास बांधों में जल विद्युत उत्पादन का कार्य भी होता है। अन्य बांधों को केवल पेयजल और सिंचाई के लिए जलसंग्रह करने के लिए बनाया गया है। सोलर पावर और विंड पावर के साथ एक समस्या है कि जब जरूरत हो तब तब उनसे विद्युत मिलना संभव नहीं है। जैसे सोलर पावर तभी बनेगी, जब दिन का प्रकाश हो। लेकिन अधिक विद्युत चाहिए शाम को 5 या 6 बजे के बाद, जब सूर्य ढल चुका होता है। सोलर पावर का अधिकतम सदुपयोग के लिए दिन में उत्पादित सौर विद्युत का संग्रह करना आवश्यक कार्य हो गया है। इस हेतु अनेक प्रकार की बैटरी बनाने पर शोध चल रहें हैं। वर्षा जल को ऊपर नीचे दो जलाशयों में संग्रह करके उसी जल का विद्युत उत्पादन के लिए बार बार उपयोग करना, सबसे सरल बैटरी है। इसमें शाम को ऊपर के जलाशय से पानी छोड़कर विद्युत बनाई जाती है, और अगले दिन सोलर विद्युत से उस पानी को निचले जलाशय से ऊपर के जलाशय में चढ़ाया जाता है। देश में 5 हजार से अधिक बड़े बांध हैं, उनमें से अनेकों में सुधार करके उनको भी इस पंप स्टोरेज सोलर पावर प्लांट्स में परिवर्तित किया जा सकता है। निचला जलाशय बनाकर उसमें कुछ अतिरिक्त पानी एकत्र किया जाए और उसका ही उपयोग जल विद्युत बनाने में होता रहे, पहले वाले जल का उपयोग पूर्ववत अन्य कार्यों के लिए होते रह सकता है। इससे ऊर्जा की समस्या को बड़े पैमाने पर हल किया जा सकता है।
रसोई में विद्युत चूल्हों और विद्युत चालित बर्तनों को बढ़ावा देना – भारत केवल 87% खनिज तेल ही आयात कर रहा है, ऐसा नहीं है। बल्कि 60% रसोई गैस ( एलपीजी) और 50% प्राकृतिक गैस ( सीएनजी) भी आयात कर रहा है। इन दोनों का उपयोग अधिकांशत रसोई में खाना बनाने के लिए हो रहा है। अगर सोलर पावर, विंड पावर और पंप स्टोरेज पावर प्लांट्स से प्रचुर मात्रा में विद्युत निर्माण किया जाए, तो रसोई में भी विद्युत का उपयोग बढ़ाकर जीवाश्म ईंधन के आयात को घटाया जा सकता है। विद्युत चालित चूल्हे, विद्युत चालित कूकर, विद्युत चालित हॉट प्लेट्स जैसे अनेक उपकरण हैं, जिनका उपयोग बढ़ाया जा सकता है। इसके लिए सरकार को पहले सोलर पावर प्लांट्स और पंप स्टोरेज पावर प्लांट्स को बढ़ावा देना होगा, ताकि प्रचुर विद्युत उपलब्ध हो।
जीवाश्म ईंधन ( Fossil fuels) के आयात और खपत को घटाने के लिए ऊपर 8 उपाय बताए हैं, जो आसानी से उपलब्ध हैं और आर्थिक और तकनीकी दृष्टि से सफल हैं। देश के अंतर्गत ही इनको किया जा सकता है। इनको शीघ्र अपना कर जीवाश्म ईंधन का आयात आने वाले 10 वर्षों में 50% तक घटाया जा सकता है। अगर सोडियम बैटरी सफल हो गई और ग्रीन हाइड्रोजन बनाना सफल हो गया, तो फिर जीवाश्म ईंधन के आयात को 50% से भी कम किया जा सकता है। पर दोनों की सफलता अभी भविष्य की गोद में हैं। उनका इंतजार किए बिना, ऊपर सुझाए गए उपायों पर शीघ्र विचार करने का सभी प्रबुद्ध जानों से अनुरोध है।
सुरेंद्र सिंह बिष्ट
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