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लोकतंत्र का शिकार करता पड़ोसी देश

             प्रभुनाथ शुक्ल 

बांग्लादेश हिंसा की आग में जल रहा है। प्रधानमंत्री शेख हसीना अपात स्थिति में त्यागपत्र देकर भारत में शरण लिया है। बांग्लादेश में जो कुछ हो रहा है यह बांग्लादेश और उसके भविष्य के लिए ठीक नहीं है। सरकार विरोधी हिंसक और अराजक लोगों ने पूरे बांग्लादेश को अपने कब्जे में लें लिया है। इसके पीछे सिर्फ छात्र आंदोलन नहीं एक बड़ी साजिश है। यह साजिश बांग्लादेश के साथ -साथ सरकार को अस्थिर करने की थीं। क्योंकि हिंसक भीड़ प्रधानमंत्री आवास में घूस गई। गृहमंत्री का सरकारी आवास भी जला दिया गया। बांग्लादेश सरकार में कई हिंदू नेताओं का कत्ल कर दिया गया।

पाकिस्तान से बांग्लादेश को मुक्त कराने वाले और मुक्ति आंदोलन के प्रणेता मुजीबुर्र रहमान जो शेख हसीना के पिता हैं उनकी आदमकद प्रतिमा को जहाँ तोड़ दिया गया। वहीं उनके संग्रहालय को आगे हवाले कर दिया गया।हिंसक भीड़ हिंदू मंदिरों को भी तोड़ दिया। बांग्लादेश में जो कुछ हो रहा है यह सब एक सोची समझी रणनीति है। शेख हसीना को अपदस्त करना छात्र आंदोलन के बस की बात नहीं थीं। पूरी हिंसा को नियोजित ढंग से अंजाम दिया गया है। इस साजिश को समय रहते शेख हसीना और उनकी सरकार समझ नहीं पायी। इस पूरी साजिश में सेना, विपक्ष बेगम खलिदा जिया, पाकिस्तान और चीन की आंतरिक सहमति हो सकती है। जिसकी साजिश का शिकार शेख हसीना बन गई। हिंसा के बीच खालिदा जिया की रिहाई का आदेश आखिर क्या कहता है।

बंगलादेश में छात्र सरकार की उच्चश्रेणी की नौकरियों में आरक्षण को खत्म करना चाहते थे। हलांकि सरकार उनकी मांगो पर विचार भी कर रहीं थीं। दूसरी तरफ मामला सुप्रीमकोर्ट में विचाराधीन भी था। सरकार बांग्लादेश मुक्ति मोर्चा के लिए निर्धारित आरक्षण कोटे को थोड़ा कम भी किया था, लेकिन छात्र मानने को तैयार नहीं थे। वह सीधे हसीना सरकार को बदलना चाहते थे। छात्रों की यह मांग उचित भी हो सकती है लेकिन यह विल्कुल जायज थीं ऐसा भी नहीं था।

बांग्लादेश में छात्रों और सरकार के बीच बातचीत न होना और छात्रों के प्रति सरकार की दमनकारी नीति ने भी हसीना की सत्ता के लिए अंतिम कील साबित हुईं। हसीना बल प्रयोग के जरिए छात्रों के आंदोलन को कुचलना चाहती थीं। लेकिन तक़रीबन 15 साल से सत्ता पर काबिज होना उनके लिए मुश्किल हो गया। जिसकी वजह से छात्र आंदोलन की आड़ में पाकिस्तान समर्थित ताकतें सेना के साथ मिलकर साजिश रचने में कामयाब रहीं। बांग्लादेश की सेना में भी अब पाकिस्तान और आईएसआई परस्त लोगों की आमद बढ़ने से बांग्लादेश की यह दुर्गति हुईं है।

बांग्लादेश में शेख हसीना को उखाड़ फेंकना बेगम खलिदा जिया की पार्टी नेशलिस्ट और जमाती के बस की बात नहीं रह गई थीं। क्योंकि हसीना साल 2009 से लगातार सत्ता में बनी थीं। जबकि खलिदा जिया 2018 के बाद से भ्र्ष्टाचार के मामले में जेल में बंद हैँ। बांग्लादेश में हसीना की आवामी लीग पार्टी पर लोगों का बड़ा भरोसा रहा है। हसीना के परिवार पर बांग्लादेश के लोग अटूट विश्वास रखते हैं। हाल के सालों में हसीना सरकार बांग्लादेश की आर्थिक विकास के लिए अच्छे खासे कदम उठाए थे।

बांग्लादेश, पाकिस्तान से बेहतर अर्थव्यवस्था बन गया था। ढाई करोड़ लोगों सरकार ने गरीबी से बाहर निकला था। लोगों की आय भी तिगुना हो चली थीं।लेकिन विपक्ष के खिलाफ हसीना सरकार की कड़ी नीति उनके खिलाफ माहौल बनाने का काम किया। इस साजिश में छात्रों का आंदोलन आग में घी का काम किया। लेकिन असली साजिश किसी तीसरे की है। बांग्लादेश में स्वतंत्रता सेनानियों के लिए सरकारी नौकरियों में 30 फीसदी आरक्षण है। जबकि छात्र सरकारी नौजरियों में आरक्षण को खत्म करने की मांग कर रहे थे। उनका आरोप है कि सरकार अपने लोगों को सरकारी नौकरी का लाभ देती है। यह भी सच है की हसीना सरकार और अवामी लीग की लागातार जीत की वजह ऐसे भी लोग परेशान थे। पाकिस्तान से बांग्लादेश को मुक्त कराने के लिए जिन लोगों ने अपना बलिदान दिया था यह आरक्षण उन्हीं परिवारों के लिए है। जबकि छात्र इसे हटाने की माँग कर रहे हैं।

बांग्लादेश की घटना पूरी तरह एक साजिश का हिस्सा है। क्योंकि शेख हसीना सरकार हमेशा से भारत के करीब रहीं हैं। इसका कारण भी है भारत ने ही पूर्वी पाकिस्तान को विभजीत करा बांग्लादेश बनाया। शेख हसीना के पिता और भारत की दोस्ती इसमें बड़ा हाथ रहा है। बांग्लादेश भारत का मित्र देश है। वह भारत पर अटूट भरोसा करता है। शेख हसीना का परिवार जब भी संकट में आया भारत ने खुलकर मदद किया। कभी इंदिरा गाँधी ने बांग्लादेश की खुलकर सहायता किया। बांग्लादेश देश से भागने के बाद शेख हसीना ने भारत में शरण लिया है। वह भारत को सबसे अपना दूसरा घर मानती हैं। हसीना की पढ़ाई -लिखाई भारत में हुईं है। जब उनके पिता बांग्लादेश में घिरे थे तो वे भारत में आ गई थीं। भारत हमेशा बांग्लादेश के साथ खड़ा है।

बांग्लादेश देश की सेना ने हसीना सरकार को अपदस्त करने के लिए अहम भूमिका निभाई है। क्योंकि अगर वह चाहती तो बांग्लादेश संकट का हल निकल सकता था। लेकिन सरकार के आदेश के बाद भी उसने एक चुनी हुईं लोकतान्त्रिक सरकार का गला घोंटने का काम किया है। उसने आंदोलनकारी छात्रों के खिलाफ सख्त कदम नहीं उठाए। देश भर में हिंसा और आगजनी के बाद सेना कहती रहीं कि हम अपनों पर गोली नहीं चलाएंगे। क्योंकि वह सरकारी सम्पत्ति और ईमारतों को आग के हवाले करने एवं कत्लेआम के बाद भी चुप बैठी दिखीं। सवाल उठता क्या सरकारी सम्पत्ति, संसद, संग्राहालय, सरकारी ईमारत बंगलादेश की नहीं थीं। जिस मुजीबर्र रहमान ने बांग्लादेश को आजादी दिलाई उसे ही आग और हिंसा की भेंट चढ़ा दिया। जिस व्यक्ति ने बांग्लादेश के लिए क्या कुछ नहीं किया। अगर ऐसा न होता क्या शेख हसीना वहां लागातार सत्ता में बनी रहती। बांग्लादेश की बहुतायत आबादी हसीना के साथ ख़डी थीं यहीं बात सेना, विपक्ष और विरोधियों और पाकिस्तान को खल रहीं थीं। जिसकी वजह में छात्र आंदोलन की आड़ में अपदस्त करने की साजिश रची गई।

क्योंकि भारत और बांग्लादेश के मजबूत होते सम्वन्ध से चीन और पाकिस्तान बौखलाया था। बांग्लादेश में विकास की सारी परियोजनाओं पर भारत का कब्जा हो रहा था जिसकी वजह से चीन की परेशानी बढ़ रहीं थीं। दूसरी तरफ बांग्लादेश में हसीना की बढ़ती लोकप्रियता पाकिस्तान को खल रहीं थीं। पाकिस्तान, बांग्लादेश को कभी खुश नहीं देखना चाहता है। वह बांग्लादेश में चरमपंथ की नई जमीन तैयार कर भारत से बदला लेना चाहता है। इसलिए वहां हिंदूओं की हत्या की जा रहीं और धार्मिक स्थल तोड़े जा रहे हैं। भारत सरकार फिलहाल बांग्लादेश की स्थति पर नजर रख रहीं है। पूरा विपक्ष सरकार के साथ खड़ा है। हम चाहते हैं कि बांग्लादेश में एक स्थिर सरकार का गठन हो। बांग्लादेश में सैनिक शासन नहीं रहना चाहिए। इस संकट का हल निकलना चाहिए।

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