क्या सचमुच निरंकुश हो गई थीं शेख हसीना?

-ललित गर्ग-

बांग्लादेश में जनभावना को दबाने एवं अनसूना करने से पनपे विद्रोह, आक्रोश एवं विरोध की निष्पत्ति है शेख हसीना सरकार का पतन। लम्बे समय से चला आ रहा आरक्षण विरोधी आंदोलन का आक्रोश उग्रतम होता गया, मगर इस आक्रोश की बुनियाद सात माह पूर्व हुए चुनाव में अनियमितताओं के बाद ही पड़ गई थी। हाल के दिनों में व्यापक पैमाने पर हुए हिंसक प्रदर्शनों ने शेख हसीना को प्रधानमंत्री पद त्यागकर देश छोड़ने को मजबूर कर दिया। पिछले करीब तीन सप्ताह में हुई आरक्षण विरोधी हिंसा में तीन सौ से अधिक लोगों की जान चली गई। दरअसल, इस संकट की मूल वजह एक लोकतांत्रिक नेतृत्व का तानाशाह एवं निरंकुश बनना बड़ा कारण रहा। जनभावनाओं को कुचला जाना एवं अनसूना करने के कारण ही हसीना आनन-फानन देश छोड़कर भारत आने के लिए विवश होना पड़ा। उससे यही पता चलता है कि हालात किस कदर उनके खिलाफ हो गए थे। इसे इस तरह भी समझा जा सकता है कि उनका इस्तीफा मांग रहे बगावती प्रदर्शनकारियों ने उनके सरकारी आवास में घुसकर तो तोड़फोड़ की ही, उनके पिता एवं बांग्लादेश के राष्ट्रपिता कहे जाने वाले शेख मुजीब की प्रतिमा को क्षतिग्रस्त करने के साथ उनके नाम पर बने एक संग्रहालय को भी जला दिया। बांग्लादेश बेहाल हो गया, हिंसक एवं अराजक घटनाएं कहर बन कर हसीना के खिलाफ विद्रोह का बिगुल बजा रही थी। जैसी आशंका थी, शेख हसीना के पलायन करते ही सेना ने सत्ता संभाल ली और मिली-जुली अंतरिम सरकार बनाने की घोषणा की। शायद सेना इसकी तैयारी पहले से कर रही थी। भारतीय उपमहाद्वीप के श्रीलंका, नेपाल के बाद अब बांग्लादेश में उत्पन्न होने वाली प्रतिकूल परिस्थितियों के प्रति भारत सरकार को सतर्क एवं सावधान रहने के साथ अपनी रणनीति में बदलाव करने की जरूरत है।
जब-जब जिन-जिन देशों में जनता की आवाज को दबाया गया, एक विस्कोटक स्थिति बनी, क्रांति का शंखनाद हुआ। मान्य सिद्धान्त है कि आदर्श ऊपर से आते हैं, क्रांति नीचे से होती है। बांग्लादेश में क्रांति एवं विद्रोह का कारण भी यही स्थिति बना कि ऊपर से आदर्श की स्थितियों पर धुंधलका छाने लगा तो क्रांति नीचे से होने लगी, बांग्लादेश हिंसा की आग में झुलसने लगा, आगजनी, तोड़फोड, हिंसक प्रदर्शनों में सैकड़ों लोग मारे गये, सरकारी सम्पत्ति का भारी नुकसान हुआ। वास्तव में लगातार चार बार प्रधानमंत्री बनने वाली शेख हसीना ने जनाक्रोश एवं जनता के विद्रोह को हल्के में लिया। वास्तव में हसीना लगातार विस्फोटक होती स्थितियों का सावधानी से आकलन नहीं कर पायी। आरक्षण आंदोलन को दबाने के लिये की गई सख्ती ने आग में घी का काम किया। जिससे बांग्लादेश के जनमानस में गहरे तक यह भाव एवं घाव पैदा हुआ कि उनकी आकांक्षाओं के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है।
चूंकि शेख हसीना ने अपने लंबे शासनकाल में बांग्लादेश को स्थिरता प्रदान की और उसे आगे बढ़ाया, इसलिए उनकी सत्ता को कोई खतरा नहीं दिख रहा था, लेकिन कुछ समय पहले आरक्षण के खिलाफ छात्रों की ओर से शुरू हुआ आंदोलन उनके लिए मुसीबत बन गया। इस आंदोलन को शीघ्र ही शेख हसीना के सभी विरोधियों और साथ ही ऐसे कट्टरपंथी संगठनों ने भी समर्थन दे दिया, जो पाकिस्तान की कठपुतली माने जाते हैं। इसके चलते आरक्षण विरोधी आंदोलन सत्ता परिवर्तन के हिंसक अभियान में बदल गया। निश्चित ही पाक परस्त राजनीतिक दलों ने इस आक्रोश को अपने लिये सत्ता का रास्ता बनाने में इस्तेमाल किया, लेकिन इस संकट को शह देने में कई विदेशी ताकतें भी पीछे नहीं रही। शेख हसीना लगातार चौथी बार सत्ता में तो आई, लेकिन विपक्षी दल जनता में यह संदेश देने में कामयाब रहे कि चुनावों में धांधली हुई है। इस तरह चुनावों के संदिग्ध तौर-तरीकों ने शेख हसीना की जीत को धूमिल कर दिया। जिसका अंतर्राष्ट्रीय जगत में भी अच्छा संदेश नहीं गया। तभी पिछले महीनों में अपनी सरकार के लिये अंतर्राष्ट्रीय समर्थन जुटाने हेतु शेख हसीना ने भारत व चीन की यात्रा की थी। हालांकि, इस दौरान देश में स्थितियां उनके अनुकूल नहीं थी। बीजिंग और नई दिल्ली के बीच संतुलन साधने की शेख हसीना की नीति से चीन भी उनसे रुष्ट था और इसी कारण उन्हें हाल की अपनी चीन यात्रा बीच में छोड़कर लौटना पड़ा था। इसकी भरी-पूरी आशंका है कि चीन ने पाकिस्तानी तत्वों के जरिये शेख हसीना विरोधी आंदोलन को हवा दी। निश्चित ही शेख हसीना की छवि एक अधिनायकवादी शासक की बनी और पश्चिमी देश विशेषकर अमेरिका उनकी निंदा करने में मुखर हो उठा। अमेरिका उनकी नीतियों से पहले से ही खफा था, क्योंकि वह मानवाधिकार और लोकतंत्र पर उसकी नसीहत सुनने को तैयार नहीं थीं। उनका सत्ता से बाहर होना भारत के लिए अच्छी खबर नहीं है, बांग्लादेश में एक अर्से से भारत विरोधी ताकतें सक्रिय हैं। उनका भारत विरोधी चेहरा आरक्षण विरोधी आंदोलन के दौरान भी दिखा। यह ठीक नहीं कि हिंसक प्रदर्शनकारी अभी भी हिंदुओं और उनके मंदिरों के साथ भारतीय प्रतिष्ठानों को निशाना बना रहे हैं।
हालांकि, शेख हसीना के खिलाफ उपजे आक्रोश के मूल में तात्कालिक कारण अतार्किक एवं असंगत आरक्षण ही रहा, लेकिन विपक्षी राजनीतिक दल व उनके आनुषंगिक संगठन सरकार को उखाड़ने के लिये बाकायदा मुहिम चलाये हुए थे। दरअसल, वर्ष 1971 में बांग्लादेश को पाकिस्तान के दमनकारी शासन से आजादी दिलाने वाले स्वतंत्रता सेनानियों की तीसरी पीढ़ी के रिश्तेदारों के लिये उच्च सरकारी पदों वाली नौकरियों में तीस प्रतिशत आरक्षण का विरोध छात्रों ने किया। उनका तर्क था कि उनकी कई पीढ़ियां आरक्षण का लाभ उठा चुकी हैं, फलतः बेरोजगारों को नौकरियां नहीं मिल रही हैं। लेकिन इस आंदोलन को हसीना सरकार ढंग से संभाल नहीं पायी। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण को घटाकर पांच प्रतिशत कर दिया था, लेकिन सरकार इस संदेश को जनता में सही ढंग से नहीं पहुंचा सकी। फिर छात्र नेताओं की गिरफ्तारी ने आंदोलन को उग्र बना दिया। जनाक्रोश के चरम का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि आक्रामक भीड़ ने मुक्ति आंदोलन का नेतृत्व करने वाले ‘बंगबंधु’ शेख मुजीबुर रहमान की मूर्ति तक को तोड़ दिया। निस्संदेह, सत्ता से चिपके रहने के लिये किए जाने वाले निरंकुश शासन की परिणति जनाक्रोश एवं जनान्दोलन के चरम के रूप में सामने आता ही है।
ताजा घटनाक्रम एवं हिंसक आंधी श्रीलंका में 2022 के विरोध प्रदर्शन की याद ताजा कर गया, जिसमें वहां राजपक्षे बंधुओं को सत्ता से उतरकर विदेश भागने को मजबूर होना पड़ा था। हालांकि, फिलहाल बांग्लादेश में सेना ने कमान अपने हाथ में ली है लेकिन आने वाली सरकार को उच्च बेरोजगारी, आर्थिक अस्थिरता, मुद्रास्फीति जैसे ज्वलंत मुद्दों का समाधान करना होगा। नयी व्यवस्था एवं सोच में व्यापक सकाकरात्मक परिवर्तन हो, विदेशी ताकतों विशेषतः पाकिस्तान की कठपूतली बनने से बचना होगा। हालांकि, भारत के हसीना सरकार से मधुर संबंध थे, भारत बांग्लादेश का सबसे करीबी, सहयोगी और दुख के दिनों का साथी रहा है। शेख हसीना बांग्लादेश के बंग बंधु शेख मुजीबुर रहमान की बेटी हैं। 1975 में परिवार के ज्यादातर सदस्यों के साथ एक सैन्य तख्तापलट में उनकी मौत हो गई थी। लेकिन शेख हसीना और उनकी बहन रेहाना उस वक्त जर्मनी में थी। इसलिए जिंदा बच गई थी। तब तत्कालिन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने शेख हसीना और उनकी बहन को भारत बुलाया था एवं संरक्षण प्रदान किया था। लेकिन हालिया उथल-पुथल को देखते हुए हमें अपनी रणनीति में बदलाव करना होगा। पाकिस्तान परस्त बीएनपी और जमात-ए-इस्लामी की आसन्न वापसी भारत के लिये सावधान होकर अग्र-स्थितियों पर गंभीरता से ध्यान देने की है। बांग्लादेश के नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस देश के अंतरिम प्रधानमंत्री बन सकते हैं। बताया जा रहा है कि शेख हसीना का विरोध कर रहे छात्रों ने मोहम्मद यूनुस के नाम का समर्थन किया है। शेख हसीना और यूनुस का आपस में बहुत तनाव रहता था। अब यूनुस से उम्मीद की जा रही है कि वह देश को स्थिरता की ओर ले जा सकते हैं। भारत पडोसी देश के नाते बांग्लादेश में स्थिरता, शांति एवं सौहार्दपूर्ण स्थितियों की कामना करता है।

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