मेरे मानस के राम : अध्याय – 34 ,रावण के अनेक वीरों का अंत

मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम और लक्ष्मण जी के स्वस्थ होने से वानर दल में खुशी की लहर दौड़ गई। अब उन्हें यह विश्वास हो गया कि अगले दिन होने वाले युद्ध में उनकी विजय निश्चित है। रावण के गुप्तचरों ने उसे जाकर बता दिया कि राम और लक्ष्मण दोनों भाई स्वस्थ हो गए हैं और आने वाले कल में वे फिर युद्ध क्षेत्र में आपका स्वागत करेंगे :-

गुप्तचरों ने जा कहा – सही – सही सब हाल।
रावण को दिखने लगा , सामने अपना काल।।

नींद गई और चैन भी , हो गया था काफूर।
लंकेश बड़ा बेचैन था , गायब था सब नूर।।

तब रावण ने धूम्राक्ष नाम के महाबली राक्षस को विशाल सेना लेकर श्रीराम और वानर सेना का विनाश करने के लिए युद्ध क्षेत्र में भेजा। रावण का एक ही उद्देश्य था कि जैसे भी हो राम और लक्ष्मण को मार दिया जाए। वह जानता था कि इन दोनों के मारे जाते ही यह युद्ध समाप्त हो जाएगा।

धूम्राक्ष को दे दिया , रावण ने आदेश।
राम लखन को मारकर, रक्षित करो निज देश।।

धूम्राक्ष ने की शुरू , रण में भयंकर मार।
विशाल शिला हनुमान ने, दी शत्रु को मार।।

अंत किया धूम्राक्ष का , हो गई जय जयकार।
वानर सेना में हुई , सचमुच खुशी अपार।।

धूम्राक्ष का मारा जाना रामचंद्र जी की सेना के लिए बहुत ही प्रसन्नता का विषय था। जबकि रावण के लिए इससे बड़ा दु:खद समाचार उस समय कोई नहीं हो सकता था।

मायावी लंकेश ने , भेजे कई – कई वीर।
कोई भी न कर सका , राम लखन पर जीत।।

हनुमान ने कर दिया , अकंपन का अंत।
मारा गया प्रहस्त भी , फौज में हुआ आतंक।।

चार वीर लंकेश के , समुन्नत और महानाद ।
दो साथी अभी और थे , कर रहे खूब विनाश।।

गजब वीरता देखकर , रावण हो गया दंग।
शत्रु दल में मच गया , सभी ओर आतंक।।

संख्या बल नहीं जीतता , समर क्षेत्र के बीच।
होती आई है सदा , सत्य पक्ष की जीत।।

छली कपटी का अंत में , होता आया नाश।
न्याय सदा पाता वही , धर्म हो जिसके साथ।।

सत्य सनातन है यही, यही प्रभु का न्याय।
मिटना उसको ही पड़ा , करता जो अन्याय।।

डॉ राकेश कुमार आर्य

( लेखक सुप्रसिद्ध इतिहासकार और भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता है। )

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