बाली पुत्र अंगद बहुत ही वीर थे । रामायण में उनकी वीरता को कवि ने बड़े ही प्रशंसनीय शब्दों में प्रस्तुत किया है। उनकी वीरता का लोहा स्वयं रावण ने की माना था। रावण ने उन्हें धर्म के पक्ष से मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के पक्ष से हटाकर अधर्म के साथ अर्थात अपने साथ जोड़ने का भी प्रयास किया। परंतु उस वीर ने रावण के इस प्रकार के प्रत्येक प्रयास पर पानी फेर दिया। यह आर्य वीरों की ही परंपरा थी कि वे सत्य के पक्ष में खड़े होकर अपने आप को धन्य अनुभव करते थे। संसार के प्रलोभन या किसी भी प्रकार की संकीर्ण मानसिकता से उपजी छोटी बातें उन्हें अच्छी नहीं लगती थीं।
अंगद से कहने लगे , दशरथ नंदन राम।
अंगद जी ! तुम कीजिए , एक जरूरी काम।।
रावण को जा दीजिए, आज मेरा संदेश।
महल को अब त्यागिए और युद्ध करो लंकेश।।
मैं आया तुझे मारने, सुन पापी लंकेश।
अपयश का भागी बना , तेरे कारण देश।।
अंगद ने जाकर कहीं , ज्यों की त्यों सब बात।
रावण जल गया क्रोध से, भारी लगा आघात।।
यह धारणा मिथ्या है कि अंगद ने रावण के दरबार में अपना पांव जमा दिया था और यह घोषणा कर दी थी कि आप में से जो भी अपने आपको वीर समझता है वह मेरे पैर को उठाकर दिखाए ? इस घटना का उल्लेख वाल्मीकि कृत रामायण में नहीं मिलता। स्पष्ट है कि इस प्रकार की भ्रांति को आगे चलकर पैदा किया गया।
अंगद ने दिखला दिया, अपना सही स्वरूप।
वीर पुरुष को देखकर , हिल गया रावण भूप।।
चार-चार से लड़ गया, और न मानी हार।
अहंकार पर चढ़ गया, हुआ रावण लाचार।।
अपमान हुआ लंकेश का, अंगद जी के हाथ।
लज्जित रावण ने कहा, करो युद्ध का नाद।।
युद्ध शुरू अब हो गया, बड़ा भयंकर रूप।
रावण को पता चल गया, वानर का सही रूप।।
इस युद्ध क्षेत्र में बाली पुत्र अंगद का महातेजस्वी इंद्रजीत के साथ भयंकर युद्ध हुआ। जबकि महाबली गज तपन नाम के राक्षस के साथ और महातेजस्वी नील राक्षस निकुंभ के साथ युद्ध करने लगे। युद्ध बहुत ही भयंकर हो चुका था। इसके उपरांत भी वानर सेना अपने मनोयोग और मनोबल को बनाए रखकर युद्ध में रत थी। उनके भीतर अपने मनोयोग और मनोबल से अपने मनोरथ को पाने की प्रबल इच्छा थी।
बाली पुत्र अंगद भिड़े , इंद्रजीत के साथ।
गज तपन से भिड़ गए , नील निकुंभ के साथ।।
वानर राज सुग्रीव जी , भिड़े प्रघस के साथ।
लक्ष्मण जी भी भिड़ गए, विरुपाक्ष के साथ।।
चार-चार शत्रु भिड़े , रामचंद्र के साथ।
युद्ध क्षेत्र में हो रही , भयंकर मारामार।।
अग्निशिखा से राम ने , काट दिए थे शीश।
हजारों शत्रु जान की , मांग रहे थे भीख।।
डॉ राकेश कुमार आर्य
( लेखक सुप्रसिद्ध इतिहासकार और भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता है। )