क्या हिन्दू इतिहास केवल हार और असफलता का इतिहास है?

क्या हिन्दू इतिहास केवल हार और असफलता का इतिहास है? क्या हिन्दूओं ने संघर्ष न करके आत्मसर्मपण किया है? हिन्दू आत्मगौरव और आत्मग्लानि का ऐतिहासिक सत्य क्या है? हिन्दू शासन, सत्ता और वीरता का ऐसा इतिहास जो पाठ्यक्रम (Syllabus) में छुपा दिया गया। उस इतिहास को बताने वाली 2 पुस्तकें।
1- हिन्दू पद पादशाही
2- हिन्दू इतिहास- वीरों की दास्तान।
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शिवाजी महाराज द्वारा स्थापित हिंदू पद पादशाही:

इस्लामिक शासक तलवार के बाल पर पूरे हिंदू समाज को मुस्लिम बनाना चाहते थे। अधिकतर बड़े—छोटे हिंदू राजाओं को तलवार के ज़ोर पर या लालच दे कर अपने साथ मिला चुके थे। ऐसे में ये कल्पना भी करना कि कोई उस इस्लामी ताक़त के ख़िलाफ़ अपना राज्य खड़ा करेगा कल्पनातीत माना जाता। शिवाजी महाराज द्वारा स्थापित हिंदू पद पादशाही वीर सावरकर ने लिखा है।

शिवाजी महाराज के साथ ही एक नए युग की शुरुआत हुई। अपने जीवन में छत्रपति शिवाजी और समर्थ गुरु रामदास ने एक ऐसे राज्य की नींव रखी जो वास्तव में “सुशासन” था। परंतु इस “सुशासन” समझना आसान नहीं है, तो भी जिन परिस्थितियों में हिंदू पद पादशाही तथा इस सुशासन की स्थापना हुई वह प्रशंसनीय तथा उल्लेखनीय है। पिछले लगभग 900 साल से भारत छोटे छोटे राज्यों बँटा रहा या कोई न कोई विदेशी शक्ति भारत पर शासन करती रही।

ऐसे में ये कल्पना भी करना कि पूरे देश में राज करने वाले मुग़लों के विरुद्ध कोई हिंदू राजा नए सिरे से राज स्थापित करके उसे सुचारु रूप से चला लेगा अकल्पनीय था। सुशासन माने जवाबदेही, पारदर्शिता, पूर्वानुमान- क्षमता, सहभागिता, न्ययाचार। राम राज्य या जो संकल्पना भगवान कृष्ण ने अर्जुन को समझाई वो सुशासन ही है अर्थात् सही ग़लत, न्याय-अन्याय, नैतिक-अनैतिक के बीच का अंतर जहां समझ आए वो सुशासन है। सुशासन की व्यवस्था के लिए अष्ट प्रधान (मंत्री मंडल) की कल्पना थी। राज्य संचालन को दो भागों में बाँटा गया एक सामान्य प्रशासन तथा दूसरा सैन्य शक्ति। शिवाजी ने कभी भी सैन्य शक्ति को लोक शासन या प्रशासन से ऊपर नहीं रखा बल्कि उसके आधीन ही रखा। अष्ट प्रधान व्यवस्था में प्रधान मंत्री या पेशवा, अमात्य या वित्तमंत्री, पन्त सचिव या सूरनवीस, मंत्री, सेनापति, सुमन्त, पंडितराव या धर्मस्व तथा न्यायाधीश थे। सबके काम,अधिकार क्षेत्र, तथा मानदेय भी तय थे।

संभाजी की गिरफ़्तारी तथा उसके बाद निर्मम हत्या इतिहास में दर्ज है। उसे मुसलमान बनने को कहा गया। मना करने पर पहले आँखें निकली गयीं, फिर जीभ काटी गयी और अंत में शरीर के टुकड़े टुकड़े कर दिए गए। इससे पूरे महाराष्ट्र मंडल में दुःख और क्षोभ का वातावरण बन गया। जिस प्रकार संभाजी का बलिदान हुआ, उसने एक क्रांति को जन्म दिया। तदुपरांत शिवाजी के दूसरे पुत्र राजा राम का राज्याभिषेक किया गया। खंडो बलाल उसके पालक नियुक्त हुए। छत्रपति शिवाजी के विषय में तो फिर भी सही या ग़लत कुछ तो हमारी पाठ्यपुस्तकों में बताया—पढ़ाया जाता है, परंतु उसके बाद जिस प्रकार उत्तर की मुग़लिया सल्तनत, बुंदेलखंड के आस पास नजीबजंग, दक्षिण में आदिलशाह और निज़ामशाही से मराठों ने चौथ या सरदेसाई वसूली की वह जनमानस की जानकारी में ही नहीं है। शिवाजी के राज्याभिषेक के समय अधिकार क्षेत्र में केवल एक प्रांत था, परंतु उनके उत्तराधिकारी राघोबा दादाजी के आधिपत्य में पंजाब की राजधानी लाहौर में धूमधाम से मराठे प्रविष्ट हुए और उस से आगे सिंध के किनारे तक पहुंचे।

शिवाजी के द्वारा स्थापित राज्य को एक के बाद एक शूरवीर सरदार मिलते रहे और इसकी एक अखंड परंपरा पानीपत की तीसरी लड़ाई बाद तक चलती रही। खंडो बलाल, धाना जी, संताजी, बाला जी, बाज़ीराव भाऊ, मल्हार राव, दत्ताजी शिंदे, माधव राव, परशुराम पन्त और बापू जी जैसे महान व्यक्तित्व क्रमशः अपने आपको इस राष्ट्र तथा धर्म की बलिवेदी पर चढ़ाते रहे। वास्तव में हिंदू पद पादशाही का इतिहास शिवाजी के देह त्याग के बाद एक नए स्वरूप में प्रारम्भ होता है। औरंगज़ेब की सशक्त, सुसंगठित तथा सुसज्जित सेना के आगे मराठों की शक्ति तुच्छ थी तो भी उन्होंने अद्भुत युद्ध कला जिसे “गानिमि काबा” कहते हैं ईजाद की और इस युद्ध कला से मुग़लों को खूब छकाया और युद्ध कौशल के कारण मुग़लों को ही जगह से दुम दबा कर भागना पड़ा। तीन लाख की सेना लेकर दक्षिण विजय को निकाले औरंगजेब का निराश हो कर 1707 में अहमद नगर में इंतकाल हो गया। मुग़लों से खानदेश, गोंडवाना, बरार, गुजरात के क्षेत्रों और दक्षिण के छह सूबों सहित मैसूर, त्रावणकोर आदि रियासतों को अपने आधिपत्य में लेकर हिंदू साम्राज्य स्थापित हुआ। इन सब को एक सूत्र में बांध कर महाराष्ट्र मंडल को वास्तविक हिंदू पद पादशाही बनाया।

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