हमारे मन की वृत्तियों और इच्छाओं को कौन कमजोर कर सकता है?
उच्च ज्ञान की तरफ किसे ले जाया जाता है?
एक लक्ष्य की तरफ किस प्रकार प्रगति और प्राप्ति की सफलता हो सकती है?
अस्येदेव शवसा शुषन्तं वि वृश्चद्वज्रेण वृत्रमिन्द्रः।
गा न व्राणा अवनीरमुंचदभि श्रवो दावने सचेताः ।।
ऋग्वेद मन्त्र 1.61.10 (कुल मन्त्र 704)
(अस्य इत् एव) केवल इसका (परमात्मा का) (शवसा) बल के साथ (शुषन्तम) कमजोर करने वाला (वि वृश्चत) नष्ट करने के लिए काटना (वज्रेण) वज्रों के साथ (वृत्रम) वृत्तियाँ, इच्छाएं (इन्द्रः) इन्द्रियों का नियंत्रक (गाः) गऊओं को गऊशाला से छुड़ाने वाला (न) जैसे (व्राणाः) इच्छाओं के आवरण में (अवनीः) मूल शक्तियाँ (अमुंचत) मुक्त करता है (आवरणों से) (अभि) की तरफ ले जाना
(श्रवः) सुनने योग्य ज्ञान (दावने) त्याग करने वाले के लिए (सचेताः) चेतन।
व्याख्या:-
हमारे मन की वृत्तियों और इच्छाओं को कौन कमजोर कर सकता है?
उच्च ज्ञान की तरफ किसे ले जाया जाता है?
केवल परमात्मा की शक्ति के साथ और इन्द्रियों के नियंत्रक के वज्र के साथ ही हमारे मन की वृत्तियाँ और इच्छाएँ कमजोर होती हैं और अन्ततः नष्ट होने के लिए कट जाती हैं। हमारी मुख्य शक्तियाँ जो इच्छाओं के आवरण से ढंक गई थीं वे उन आवरणों से मुक्त हो जाती हैं जैसे – गाय गौशाला से मुक्त होती है।
जो व्यक्ति पूर्ण त्यागी साधक है और अपने लक्ष्य के प्रति सदैव सचेत रहता है, उसी को उच्च ज्ञान की तरफ ले जाया जाता है जो सुनने के योग्य होता है।
जीवन में सार्थकता: –
एक लक्ष्य की तरफ किस प्रकार प्रगति और प्राप्ति की सफलता हो सकती है?
एक बार जब हम अपना कोई भी लक्ष्य निर्धारित कर लेते हैं और उस लक्ष्य की प्राप्ति की तरफ प्रगति करने लगते हैं तो हमें केवल एक ही सबसे महत्त्वपूर्ण लक्षण अपने अन्दर सुनिश्चित करना चाहिए कि हम अपनी इन्द्रियों को पूरी तरह से अपने नियंत्रण में रखें, अपनी इन्द्रियों को इधर-उधर इच्छाओं के पीछे भागने के लिए अनुमति नहीं देनी चाहिए। एक लक्ष्य का अर्थ है उस लक्ष्य के प्रति पूरी साधना और सदैव उस लक्ष्य के प्रति पूरी तरह सचेत रहना। चेतना का अर्थ है अपने मन और इन्द्रियों की कलाओं को अलग-अलग दिशाओं में जाने से रोककर लगातार हम गहरी जागृत अवस्था में रहें। ऐसी गहरी चेतना के साथ मन की सभी कलाएँ दिव्य हो जाती हैं और सफलता को प्राप्त करने के लिए परमात्मा की दिव्य सहायता को आकर्षित कर लेती हैं।
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