राम ने सुवेल पर्वत पर चढ़कर लंका का निरीक्षण करने का निर्णय लिया। यहां से उन्हें लंका की सुंदरता बड़ी मनोहारी लग रही है। उनके मन में कई प्रकार के विचार आ रहे थे। वह सोच रहे थे कि रावण की मूर्खता के कारण इतनी सुंदर रमणीक नगरी और साथ-साथ यह देश आने वाले भयंकर युद्ध में उजड़ जाएगा। आज यहां पर शांति की फुहारें अनुभव हो रही हैं पर आने वाले कल में यहां पर विधवाओं के विलाप सुनने को मिलेंगे।
राम भरे विश्वास से , चले सुवेल की ओर।
लंका नगरी देखकर , हो गए भाव – विभोर।।
लगे सोचने राम जी, कोई दुष्ट करे एक पाप।
उसके एक अपराध से, होता कुल का नाश।।
इसी समय सुग्रीव ने , दिया रावण ललकार।
नीच अधर्मी मारकर , करूं सुखी संसार।।
मल्ल – युद्ध सुग्रीव ने , किया रावण के साथ।
समझ गया लंकेश भी, किसके थे ये हाथ।।
लौट गए निज पक्ष में , खुशी से वानर राज।
बोले राम – नहीं ठीक था, किया जो तुमने काज।।
रामचंद्र जी को सुवेल पर्वत पर छोड़कर सुग्रीव जी अचानक रावण से जा भिड़े । इस प्रकार उनका रामचंद्र जी को छोड़कर अकेले रावण से जा भिड़ना रामचंद्र जी को अच्छा नहीं लगा। इस समय उनके मन मस्तिष्क में कई प्रकार के विचार आते जाते रहे। रामचंद्र जी इस बात को लेकर अत्यंत व्याकुल हो गए कि यदि सुग्रीव को कुछ हो गया तो लोग उनके लिए क्या कहेंगे ? यही कि अपनी पत्नी के लिए सुग्रीव जैसे मित्र को रामचंद्र जी ने ऐसे ही खो दिया? मर्यादा पुरुषोत्तम किसी प्रकार का कलंक अपने लिए लगवाना नहीं चाहते थे। इसलिए उन्होंने बड़े प्यार से अपने मित्र सुग्रीव को लताड़ लगाई।
मैं चिंता में पड़ गया, आये कई विचार।
बुद्धि ने निर्णय लिया , करके सोच विचार।।
आप यदि आते नहीं , सुनिए मेरे मीत।
रावण को मैं मारता , लंका लेता जीत।।
पहुंच अयोध्या धाम में, भरत को देता राज।
प्राणों का फिर अंत में , करता मैं भी त्याग।।
डॉ राकेश कुमार आर्य
( लेखक सुप्रसिद्ध इतिहासकार और भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता है। )