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कविता

गोरा बादल के अंतस में जगी जोत की रेखा….

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गोरा बादल के अंतस में जगी जोत की रेखा
मातृ भूमि चित्तौड़दुर्ग को फिर जी भरकर देखा
कर अंतिम प्रणाम चढ़े घोड़ो पर सुभट अभिमानी
देश भक्ति की निकल पड़े लिखने वो अमर कहानी
जिसके कारन मिट्टी भी चन्दन है राजस्थानी
दोहराता हूँ सुनो रक्त से लिखी हुई कुर्बानी

जा पंहुची डोलियाँ एक दिन खिलजी के सरहद में
उधर दूत भी जा पहुँच खिलजी के रंग महल में
बोला शहंशाह पद्मिनी मल्लिका बनने आयी है
रानी अपने साथ हुस्न की कलियाँ भी लायी है

एक मगर फ़रियाद उसकी फकत पूरी करवा दो
राणा रत्न सिंह से एक बार मिलवा दो
खिलजी उछल पड़ा कह फ़ौरन यह हुक्म दिया था
बड़े शौक से मिलने का शाही फरमान दिया था

वह शाही फरमान दूत ने गोरा तक पहुँचाया
गोरा झूम उठे उस क्षण बादल को पास बुलाया
बोले बेटा वक़्त आ गया अब कट मरने का
मातृ भूमि मेवाड़ धरा का दूध सफल करने का

यह लोहार पद्मिनी भेष में बंदी गृह जायेगा
केवल दस डोलियाँ लिए गोरा पीछे धायेगा
यह बंधन काटेगा हम राणा को मुक्त करेंगे
घुड़सवार कुछ उधर आड़ में ही तैयार रहेंगे

जैसे ही राणा आएँ वो सब आँधी बन जाएँ
और उन्हें चित्तौड़दुर्ग पर वो सकुशल पहुँचाएँ
अगर भेद खुल जाये वीर तो पल की देर न करना
और शाही सेना आ पहुँचे तो फिर बढ़ कर रण करना

राणा जाएँ जिधर शत्रु को उधर न बढ़ने देना
और एक यवन को भी उस पथ पावँ ना धरने देना
मेरे लाल लाडले बादल आन न जाने पाए
तिल तिल कट मरना मेवाड़ी मान न जाने पाए

ऐसा ही होगा काका राजपूती अमर रहेगी
बादल की मिट्टी में भी गौरव की गंध रहेगी
तो फिर आ बेटा बादल सीने से तुझे लगा लूँ
हो ना सके शायद अब मिलन अंतिम लाड लड़ा लूँ

यह कह बाँहों में भर कर बादल को गले लगाया
धरती काँप गयी अम्बर का अंतस मन भर आया
सावधान कह पुनः पथ पर बढे गोरा सैनानी
पोंछ लिया झट से मुड़कर बूढी आँखों का पानी
जिसके कारन मिट्टी भी चन्दन है राजस्थानी
दोहराता हूँ सुनो रक्त से लिखी हुई कुर्बानी

गोरा की चातुरी चली राणा के बंधन काटे
छाँट छाँट कर शाही पहरेदारो के सर काटे
लिपट गए गोरा से राणा ग़लती पर पछताए
सेनापति की नमक हलाली देख नयन भर आये

पर खिलजी का सेनापति पहले से ही शंकित था
वह मेवाड़ी चट्टानी वीरो से आतंकित था
जब उसने लिया समझ पद्मिनी नहीं आयी है
मेवाड़ी सेना खिलजी की मौत साथ लायी है

पहले से तैयार सैन्य दल को उसने ललकारा
निकल पड़ा टिड्डी दल रण का बजने लगा नगाड़ा
दृष्टि फिरि गोरा की मानी राणा को समझाया
रण मतवाले को रोका जबरन चित्तौड़पठाया

राणा चले तभी शाही सेना लहरा कर आयी
खिलजी की लाखो नंगी तलवारें पड़ी दिखाई
खिलजी ललकारा दुश्मन को भाग न जाने देना
रत्न सिंह का शीश काट कर ही वीरों दम लेना

क्रमशः

( यह कविता मेवाड़ के राजकवि प. नरेंद्र मिश्र जी द्वारा लिखी गयी है.. )

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