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मेरे मानस के राम : अध्याय 30, माल्यवान का रावण को उपदेश

माल्यवान रावण का नाना था। वह बहुत बुद्धिमान था । माल्यवान जानते थे कि रावण ने जो कुछ भी किया है ,रामचंद्र जी उसका दंड उसे अवश्य देंगे। वह यह भी जानते थे कि यदि उस दंड को अकेला रावण भोग ले तो कोई बात नहीं। पर इस समय रावण के साथ-साथ उसके राज्य की प्रजा के लिए भी कष्ट के दिन आ चुके हैं। द्वार पर खड़े विनाश को देखकर माल्यवान ने भी रावण को समझाने का प्रयास किया था। उन्होंने रावण को भरे दरबार में समझाते हुए कहा था :-

राज करे राजा सदा, नीति के अनुसार।
प्रजा का कल्याण हो , राजा की जयकार।।

बलशाली राजा यदि , चढ़ आए निज द्वार।
संधि उससे कीजिए, बस एक यही उपचार।।

अनर्थ से देश बचाइए , सब की यही पुकार।
सीता राम को दीजिए, नीति के अनुसार।।

संधि राम से कीजिए , सीता दो लौटाय।
अनर्थ से हमें बचाइए , आन पड़ा निज द्वार।।

सीता को घर में रखो , बड़ा नीच यह काम।
काम तुम्हारे सर चढ़ा , बिगड़ेंगे सब काम।।

बढ़ी काम से कामना , करो काम का अंत।
भाव भावना में लो बसा, हो जाओगे संत।।

माल्यवान के इस सदुपदेश का भी रावण पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। अहंकार रावण के सिर पर चढ़कर बोल रहा था। जिसके कारण विनाश लीला उस समय लंका पर गिद्ध की तरह मंडरा रही थी। परिणामस्वरूप अपने नाना माल्यवान की सही बात को स्वीकार करने के स्थान पर उल्टे वह क्रोध में भर गया :-

रावण भर गया क्रोध में , भौहें लईं तरेर।
अहंकार सिर चढ़ गया, बिगड़ा अनुज कुबेर।।

माल्यवान मत बांटिए , ‘ मूल्यवान’ उपदेश।
राम न जीवित जाएगा, वचन करे लंकेश।।

माल्यवान घर को चला , अंतिम बांट विचार।
दीर्घायु लंकेश हों , होवे जय – जयकार।।

मनुज की बुद्धि भ्रष्ट हो, आए वक्त खराब।
अमृत पान को छोड़कर , पीता जाए शराब।।

बड़ों की अच्छी बात का, करता जो उपहास।
समझो उसके द्वार पर , आया हुआ विनाश।।

जिसकी बुद्धि भ्रष्ट हो , लक्षण नहीं यह नेक।
डाल भट्टी भूनता , काल उसे दिन एक।।

हितकारी वाणी चुभे, मिश्री भी कड़वाय।
नहीं बचे ऐसा मनुज , सौ सौ करो उपाय।।

रावण ने निज काल को , दिया निमंत्रण आप।
काल से ही जा भिड़ा , करते – करते पाप।।

डॉ राकेश कुमार आर्य

( लेखक सुप्रसिद्ध इतिहासकार और भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता है। )

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