9 अगस्त 1925 की घटना है । जब हमारे क्रांतिकारियों ने रेल डकैती की योजना बनाकर उसको अंजाम तक पहुंचाया था । रामप्रसाद बिस्मिल , चंद्रशेखर आजाद , अशफाक उल्ला खान और उनके कई साथियों ने मिलकर इस क्रांतिकारी कार्य को संपन्न किया था । इस डकैती के पीछे उनका उद्देश्य केवल यह था कि इससे जो धन मिलेगा उससे हथियार खरीदकर अंग्रेजों के विरुद्ध सेना खड़ी कर क्रांतिकारी गतिविधियों को आगे बढ़ाया जाएगा । इसमें अनेकों गिरफ्तारियां हुई , लेकिन इस घटना को अंजाम देने वाले हमारे 10 क्रांतिकारी ही विशेष थे जिनके नेता थे रामप्रसाद बिस्मिल ।
उस दिन बसंत पंचमी का दिन था । हमारे क्रांतिकारियों की कोर्ट में पेशी थी । लखनऊ जेल से कोर्ट के लिए जाने से पहले राम प्रसाद बिस्मिल के दोस्तों ने उनसे कहा कि कल के लिए कोई फड़कती हुई कविता लिखिए । जिसे हम सब कोर्ट के बीच में खड़े होकर मस्ती के साथ गाएंगे । तब उनसे वह कविता बन गई थी ,जिसे आजकल हम मेरा रंग दे बसंती चोला के नाम से गाते हैं।
सब क्रान्तिकारियों ने मिलकर तय किया कि कल बसन्त पंचमी के दिन हम सभी सर पर पीली टोपी और हाथ में पीला रूमाल लेकर कोर्ट में इस कविता को गाएंगे। कविता के बोल कुछ इस प्रकार थे :—
मेरा रँग दे बसन्ती चोला….
हो मेरा रँग दे बसन्ती चोला….
इसी रंग में रँग के शिवा ने माँ का बन्धन खोला,
यही रंग हल्दीघाटी में था प्रताप ने घोला;
नव बसन्त में भारत के हित वीरों का यह टोला,
किस मस्ती से पहन के निकला यह बासन्ती चोला।
मेरा रँग दे बसन्ती चोला….
हो मेरा रँग दे बसन्ती चोला….
बाद में शहीदे आजम सरदार भगत सिंह जब लाहौर जेल में बंद थे तो उन्होंने इस कविता में कुछ और पंक्तियां जोड़ दीं ।
इसी रंग में बिस्मिल जी ने “वन्दे-मातरम्” बोला,
यही रंग अशफाक को भाया उनका दिल भी डोला;
इसी रंग को हम मस्तों ने, हम मस्तों ने;
दूर फिरंगी को करने को, को करने को;
लहू में अपने घोला।
मेरा रँग दे बसन्ती चोला….
हो मेरा रँग दे बसन्ती चोला….
माय! रँग दे बसन्ती चोला….
हो माय! रँग दे बसन्ती चोला….
मेरा रँग दे बसन्ती चोला….
जो लोग यह मानते हैं कि देश में क्रांतिकारी आंदोलन का कोई योगदान स्वतंत्रता को प्राप्त कराने में नहीं रहा , उन्हें क्रांतिकारियों के इन भावों का मोल समझना चाहिए । उनकी दृष्टि में राणा प्रताप और शिवाजी क्रांतिकारी थे और वह उन्हीं क्रांतिकारियों के नक्शे कदम पर चलते हुए भारत को आजाद कराने का सपना देख रहे थे । सचमुच कितनी बड़ी श्रंखला है हमारे क्रांतिकारी योद्धाओं की ,? – इस कविता से यह भी स्पष्ट हो जाता है ।
काकोरी कांड में राम प्रसाद बिस्मिल , राजेंद्र नाथ लाहिड़ी , रोशन सिंह , अशफाक को फांसी की सजा दी गई थी । जबकि सचिंद्रनाथ सान्याल को 14 साल की सजा सुनाई गई । योगेश चंद्र चटर्जी , मुकुंदी लाल , गोविंद चरणकर , राजकुमार सिंह , रामकृष्ण खत्री को 10 – 10 वर्ष की सजा दी गई थी।
हमारे इन क्रांतिकारियों को फांसी तक पहुंचाने में पंडित मोतीलाल नेहरू के भाई नंदलाल के समधी जगतनारायण मुल्ला नाम के अधिवक्ता ने विशेष पैरोकारी की थी।
आज के दिन घटी इस घटना के अवसर पर हम काकोरी कांड में सम्मिलित रहे अपने सभी क्रांतिकारियों को अपनी विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत
मुख्य संपादक, उगता भारत