Categories
आज का चिंतन

हमारी आत्मा किस प्रकार मन की वृत्तियों का नाश करने के योग्य हो सकती है?

आध्यात्मिक मार्ग पर शुद्ध भोजन का क्या महत्त्व है?

अस्येदु मातुः सवनेषु सद्यो महः पितुं पपिवांचार्वन्ना।
मुषायद्विष्णुः पचतं सहीयान्विध्यद्वराहं तिरो अद्रि मस्ता ।।
ऋग्वेद मन्त्र 1.61.7 (कुल मन्त्र 701)

(अस्य इत् उ) निश्चय से यह उसके लिए है (परमात्मा के लिए) (मातुः) निर्माता के लिए (सवनेषु) निर्माण करने के लिए (उसके प्रकाश को गहरे हृदय में धारण करने के लिए) (सद्यः) अतिशीघ्र (महः) महान् (पितुम) संरक्षक (पपिवान) खाना और पीना (चारू) सुन्दर, शुद्ध (अन्ना) अन्नों से (मुषायत) निचोड़ निकालना (विष्णुः) व्यापक आत्मा (शरीर में) (पचतम) परिपक्व (सहीयान) सहन करता है और पराजित करता है (विध्यत) भेदन करता है, विनाश करता है (वराहम) बादल, वृत्तियाँ (मन की) (तिरः) बहुत दूर (अद्रिम) विशाल पर्वत (अज्ञानता के) (अस्ता) फेंकता है।

व्याख्या:-
हमारी आत्मा किस प्रकार मन की वृत्तियों का नाश करने के योग्य हो सकती है?
यह निश्चित रूप से निर्माता का ही दायित्व है कि वह स्वयं को और अपने प्रकाश को हमारे गहरे हृदय में धारण करे। एक महान् रक्षक साधक बहुत शीघ्र सुन्दर और शुद्ध रूप में भोजन के सार तत्त्व को खाता और पीता है। सर्वोच्च आत्मा, जो हमारे शरीर में व्याप्त है, भोजन के उस सार और परिपक्व तत्वों की सहायता से मन की वृत्तियों तथा बादलों को सहन करता है और उन्हें भेदकर, उनका नाश करके उन्हें पराजित कर देता है। इस प्रकार अन्ततः वह अज्ञानता और बादलों के बड़े-बड़े पर्वतों को दूर फेंक देता है।

जीवन में सार्थकता: –
आध्यात्मिक मार्ग पर शुद्ध भोजन का क्या महत्त्व है?
हमें अपने गहरे हृदय में उस निर्माता के प्रकाश और उसके प्रेम को धारण करके एक चेतना का विकास कर लेना चाहिए।
उच्च चेतना के इस पथ का प्रारम्भ करना अत्यन्त सरल है। साधक को केवल पवित्र भोजन और पवित्र पेय ही ग्रहण करने चाहिए। पवित्र भोजन का सार परिपक्व बहुमूल्य तरल अर्थात् वीर्य के रूप में होता है। यह हमारे शरीर और मन की मूल शक्ति है जो हमें उच्च चेतना के जीवन में सहायता करती है। यही हमारे मन की वृत्तियां का नाश करती है जो परमात्मा के दिव्य प्रकाश को चारो तरफ से घेर लेती हैं। एक बार यह वृत्तियाँ नष्ट हो जायें तो अज्ञानता भी समाप्त हो जायेंगी और परमात्मा के प्रकाश का उदय होगा जो हमें मन पर शासन करने के लिए मार्गदर्शन प्रदान करेगा। इस प्रकार उत्तम स्वास्थ्य और आध्यात्मिक प्रगति दोनों ही पवित्र भोजन पर निर्भर करती हैं।


अपने आध्यात्मिक दायित्व को समझें

आप वैदिक ज्ञान का नियमित स्वाध्याय कर रहे हैं, आपका यह आध्यात्मिक दायित्व बनता है कि इस ज्ञान को अधिक से अधिक लोगों तक पहुँचायें जिससे उन्हें भी नियमित रूप से वेद स्वाध्याय की प्रेरणा प्राप्त हो। वैदिक विवेक किसी एक विशेष मत, पंथ या समुदाय के लिए सीमित नहीं है। वेद में मानवता के उत्थान के लिए समस्त सत्य विज्ञान समाहित है।

यदि कोई महानुभाव पवित्र वेद स्वाध्याय एवं अनुसंधान कार्यक्रम से जुड़ना चाहते हैं तो वे अपना नाम, स्थान, वाट्सएप नम्बर तथा ईमेल 0091 9968357171 पर वाट्सएप या टेलीग्राम के माध्यम से लिखें।

अपने फोन मैं प्लेस्टोर से टेलीग्राम डाउनलोड करें जिससे आप पूर्व मंत्रो को भी प्राप्त कर सके।
https://t.me/vedas4

आईये! ब्रह्माण्ड की सर्वोच्च शक्ति परमात्मा के साथ दिव्य एकता की यात्रा पर आगे बढ़ें। हम समस्त पवित्र आत्माओं के लिए परमात्मा के इस सर्वोच्च ज्ञान की महान यात्रा के लिए शुभकामनाएँ देते हैं।

टीम
पवित्र वेद स्वाध्याय एवं अनुसंधान कार्यक्रम
द वैदिक टेंपल, मराठा हल्ली, बेंगलुरू, कर्नाटक
वाट्सएप नम्बर-0091 9968357171

Comment:Cancel reply

Exit mobile version