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विश्वगुरू के रूप में भारत

मेरे मानस के राम, अध्याय 27 , राम द्वारा विभीषण का स्वागत

विभीषण जी के आगमन पर हनुमान जी ने उनके उदार चरित्र और धर्म प्रेमी व्यक्तित्व के विषय में रामचंद्र जी को पहले ही सब कुछ बता दिया था। न्याय, नीति और धर्म में निपुण विभीषण जी का उनके व्यक्तित्व के अनुरूप सम्मान करने के लिए रामचंद्र जी ने भी मन बना लिया । रामचंद्र जी भली प्रकार जानते थे कि लंका को जीतने के लिए विभीषण जी की उन्हें बहुत आवश्यकता पड़ेगी। इसके अतिरिक्त उस समय आर्य राजाओं की यह परंपरा भी थी कि यदि कहीं पर कोई राज्य जीता जाता था तो वहां का शासन स्थानीय लोगों को ही दिया जाता था। रामचंद्र जी ने निर्णय लिया कि यदि लंका के रावण को मारा जाता है तो उसके उत्तराधिकारी के रूप में विभीषण जी को ही यह सम्मान दिया जाएगा। यद्यपि रामचंद्र जी के पक्ष के कई लोगों ने विभीषण जी के आगमन पर कई प्रकार के शंका संदेह व्यक्त किए। पर रामचंद्र जी ने उन सबको अलग रखते हुए विभीषण जी पर किसी प्रकार की शंका नहीं की और उनका राजोचित सम्मान किया।

किया  स्वागत  राम  ने ,   किया   बहुत    सत्कार।
परिचय में झलका  दिया,  अपना   चित्त   उदार।।

मित्र – भाव  सम्मान से ,  किया  विभीषण  से  प्रेम।
विनम्र भाव से कर दिया, फिर  उसका  अभिषेक।।

विभीषण   ने  श्री  राम  को,  बतलाए  सब  भेद।
कैसे  किसको   मारना ,  बचे   नहीं  कोई   शेष।।

इसी समय रावण ने शार्दूल और शुक नाम के अपने गुप्तचरों को रामचंद्र जी की गुप्तचरी करने के लिए भेजा। उनके प्रति भी रामचंद्र जी ने उदारता का प्रदर्शन किया :-

शार्दूल  एक   गुप्तचर,  शुक  का भी  यही  काम।
लांघ   समुद्र  आ   गए ,  जान   गए  श्री   राम।।

कपि राज  सुग्रीव   ने , बंधवा  लिया  शुक  दूत।
दयालु   श्री राम   ने ,  छुटवाया  दिया  वह   दूत।।

नल और नील ने समुद्र पर पुल बांधने का ऐतिहासिक कार्य कर रामचंद्र जी की वानर सेना को समुद्र पार करने में सहायता प्रदान की। कहा जाता है कि नल और नील जब समुद्र पर पुल बांध रहे थे तो वह राम का नाम लेकर पत्थर गिराते और वह अपने स्थान पर स्थिर हो जाता। इस प्रकार पुल को उन्होंने यथाशीघ्र पूरा कर दिया। वस्तुतः यह कथानक वाल्मीकि कृत रामायण में कहीं भी उल्लिखित नहीं किया गया है। इस कथानक को वाल्मीकि कृत रामायण में न होने के उपरांत भी केवल राम जी का महिमा मंडल करने के लिए आगे चलकर जोड़ा गया।

नल और नील की योग्यता, गौरव का अध्याय।
पुल का किया निर्माण था, नाम प्रभु का ध्याय।।

वानर  सेना   ने  किया ,   शीघ्र    समुद्र    पार।
धनुर्धारी  श्री  राम  ने,   लंकेश दिया ललकार।।

भारत ने दिया विश्व को, सदा  अनोखा  ज्ञान।
विश्व गुरु बनकर रहा ,  अपना   देश   महान।।

गर्व हमें  निज  देश  पर,  जिसकी  हम  संतान।
देश  अनोखा  है  यह,  अनोखा  इसका   ज्ञान।।

राकेश कुमार आर्य

( लेखक सुप्रसिद्ध इतिहासकार और भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता है। )

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