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आज का चिंतन

बिना मांगे दूसरों को सलाह ना दें

आजकल यह देखा जाता है, कि लोग एक दूसरे को सुझाव या सलाह देने को तैयार रहते हैं। “उन्हें चाहे उस विषय का ज्ञान हो, या न हो, चाहे उन्हें सुझाव देने का अधिकार हो, या न हो, फिर भी सुझाव देने के लिए बहुत उत्सुक रहते हैं। दिन भर दूसरों को सलाह देते ही रहते हैं।” और “दूसरे अज्ञानी लोग भी उनकी सलाह को सुनकर तत्काल प्रभावित हो जाते हैं, और वे जैसी सलाह देते हैं, वैसा ही काम करना आरंभ भी कर देते हैं। इस बात पर विचार नहीं करते, कि जो सलाह दी गई है, वह ठीक भी है, या नहीं?”
“वे सही या ग़लत का निर्णय करें भी, तो कैसे करें? उनके पास कोई कसौटी ही नहीं है।” यूं तो संसार में अनेक वस्तुओं की परीक्षा करने की कसौटियां बनी हुई हैं। जैसे भार तोलने की, लंबाई नापने की, मौसम की ठंडक या गर्मी नापने की, आदि सारी कसौटियां हैं। सारे उपकरण हैं, जिनके आधार पर सही गलत का बहुत कुछ निर्णय हो जाता है। “परंतु विशेष रूप से आध्यात्मिक क्षेत्र में अधिकांश लोगों के पास कोई कसौटी ही नहीं है, तो लोग इस क्षेत्र में सही या ग़लत का निर्णय कैसे कर पाएंगे? नहीं कर पाते।”
उसका परिणाम यही होता है, कि “बस, जो बात किसी के मन को भा गई, अच्छी लगी, वह तत्काल उसके पीछे चल पड़ता है। ऐसी स्थिति में तो व्यक्ति भटकता ही है।” “कभी-कभी कहीं किसी का तुक्का लग जाए, तो वह ठीक रास्ते पर चल पड़ता है। अन्यथा अधिकांश लोग तो भटक ही रहे है।” ऐसी स्थिति में यह पता लगाना बहुत कठिन होता है, कि “सही मार्ग कौन सा है।” जी हां, यह कठिन अवश्य है, परंतु असंभव नहीं है।
“सही मार्ग तो केवल ईश्वर ही बता सकता है, क्योंकि वह सर्वज्ञ है। ईश्वर ने चार वेदों में सही मार्ग बताया है। ईश्वर के बाद ऋषि लोगों ने भी गुरु शिष्य परंपरा से वेदों को बहुत अच्छा और सही समझा। और वे भी वही बातें कहने लगे, जो वेदों में ईश्वर ने बताई थी। इस प्रकार से वेद और ऋषियों के ग्रंथ ही सत्य असत्य का निर्णय करने की सबसे बड़ी कसौटी हैं।”
आप भी यदि ऐसा चाहते हों, कि “संसार में भटक न जाएं, किसी के बहकावे में न आ जाएं, तो आपको भी वेदों और ऋषियों के ग्रंथों को ही योग्य विद्वान गुरुजनों से पढ़ना होगा। उन पर वर्षों तक चिंतन मनन करना होगा। अपने मन को शुद्ध करना होगा, और तब जो सत्य आप को समझ में आएगा, उसे अपने जीवन में धारण भी अवश्य करना होगा।” “यदि आप ऐसा कर लेंगे, तो आप संसार में इधर-उधर भटकने से बच जाएंगे। क्योंकि तब आपके पास सत्य और असत्य को पहचानने की सही कसौटी होगी। तब आप सत्य और असत्य को पहचान कर सही मार्ग पर चलेंगे, और कहीं नहीं भटकेंगे। इसके अतिरिक्त भटकने से बचने का और कोई मार्ग नहीं है।”
—– “स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक, निदेशक दर्शन योग महाविद्यालय रोजड़, गुजरात।”

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