जिस वस्तु को जानना सरल हो, उसे स्थूल कहते हैं। अर्थात जो वस्तु जल्दी समझ में आ जाए, उसका ज्ञान ‘स्थूल ज्ञान’ कहलाता है। “संसार की वस्तुओं का ज्ञान हमें आंखों से तथा अन्य इंद्रियों से शीघ्र प्राप्त हो जाता है, और बहुत स्पष्ट भी होता है। इसका अर्थ यह मानना चाहिए कि संसार स्थूल विषय है। संसार का ज्ञान स्थूल है।”
परंतु आत्मा को जानना उससे अधिक कठिन है। इससे पता चलता है कि “आत्मा का ‘ज्ञान सूक्ष्म’ है। और परमात्मा को जानना तो सबसे अधिक कठिन है, इसलिए ईश्वर का ज्ञान तो ‘सबसे सूक्ष्म’ है।”
प्रायः लोग संसार की वस्तुओं को थोड़ा बहुत समझ कर अपना जीवन जीते रहते हैं और यह मान लेते हैं कि “हमने बहुत कुछ जान लिया।” “स्कूल कॉलेज में भौतिक विज्ञान वाणिज्य व्यापार अर्थव्यवस्था खेती भवन बनाना सड़क बनाना इत्यादि संसार की वस्तुओं के संबंध में ज्ञान प्राप्त करके वे संतुष्ट हो जाते हैं, कि “अब हम पूरे विद्वान बन गए।” जबकि वास्तव में ऐसा नहीं है। वे तो मोटी मोटी बातें जानते हैं।
“संसार को जानना सरल है। इसलिए लाखों लोग डॉक्टर बनते हैं। इंजीनियर बनते हैं। व्यापारी बनते हैं इत्यादि।” “बहुत कम लोग आत्मा और परमात्मा को जानने का प्रयास करते हैं। और उनमें से भी कुछ गिने चुने लोग ही जान पाते हैं। क्योंकि इन वस्तुओं को जानना बहुत कठिन या बहुत परिश्रम साध्य है। इसलिए आत्मा परमात्मा के ज्ञान को ‘सूक्ष्म ज्ञान’ कहते हैं।”
आप भी देखिए। “यदि आपमें इतना धैर्य साहस उत्साह जिज्ञासा पुरुषार्थ तपस्या आदि हो, तो आप भी आत्मा परमात्मा को जान सकते हैं। और जानने के बाद आपको भी पूरी शांति आनंद संतोष मिलेगा। उसी से आप का जीवन सफल होगा, अन्यथा लाखों करोड़ों जन्मों तक ऐसे ही संसार में चक्कर काटते तथा दुखों को भोगते रहेंगे।”
“जब तक आत्मा परमात्मा को नहीं जानेंगे तब तक इन सांसारिक दुखों से छुटकारा नहीं मिलेगा अर्थात मोक्ष नहीं होगा।” “मोक्ष का अर्थ है जन्म मरण से चक्र से छूटकर सब दुखों से छूटना, और ईश्वर के आनन्द को भोगना। जो व्यक्ति जन्म मरण चक्र से छूट जाता है, फिर उसे कोई दुख नहीं सताता। तब वह ईश्वर के साथ अरबों-खरबों वर्षों तक आनन्द में रहता है। इसी को मोक्ष कहते हैं।”
—– “स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक, निदेशक दर्शन योग महाविद्यालय रोजड़, गुजरात।”
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