#डॉविवेकआर्य
स्वामी भद्राचार्य जी का एक वीडियो प्रचारित हो रहा हैं। भद्राचार्य जी ने स्वामी दयानन्द जी पर अनावश्यक टिप्पणी करते हुए कहा कि स्वामी जी ने रामायण और महाभारत को काल्पनिक बताया हैं। भद्राचार्य जी का कहना है कि श्री राम और श्री कृष्ण जी का वेदों में वर्णन हैं।
भद्राचार्य जी ने यह टिप्पणी कर अपनी अज्ञानता का परिचय दिया है। उनकी भ्रान्ति का निवारण आवश्यक है। राम और कृष्ण मानवीय संस्कृति के आदर्श पुरुष हैं। कुछ बंधुओं के मन में अभी भी यह धारणा है कि महर्षि दयानन्द और उनके द्वारा स्थापित आर्यसमाज राम और कृष्ण को मान्यता नहीं देता है। प्रत्येक आर्य अपनी दाहिनी भुजा ऊँची उठाकर साहसपूर्वक यह घोषणा करता है कि आर्यसमाज राम-कृष्ण को जितना जानता और मानता है, उतना संसार का कोई भी आस्तिक नहीं मानता। कुछ लोग जितना जानते हैं, उतना मानते नहीं और कुछ विवेकी-बंधु उन्हें भली प्रकार जानते भी हैं, उतना ही मानते हैं।
- मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम के संबंध में स्वामी दयानन्द ने सत्यार्थ प्रकाश लिखा है,
“प्रश्न-रामेश्वर को रामचन्द्र ने स्थापित किया है। जो मूर्तिपूजा वेद-विरुद्ध होती तो रामचन्द्र मूर्ति स्थापना क्यों करते और वाल्मीकि जी रामायण में क्यों लिखते?
उत्तर- रामचन्द्र के समय में उस मन्दिर का नाम निशान भी न था किन्तु यह ठीक है कि दक्षिण देशस्थ ‘राम’ नामक राजा ने मंदिर बनवा, का नाम ‘रामेश्वर’ धर दिया है। जब रामचन्द्र सीताजी को ले हनुमान आदि के साथ लंका से चले, आकाश मार्ग में विमान पर बैठ अयोध्या को आते थे, तब सीताजी से कहा है कि-
अत्र पूर्वं महादेवः प्रसादमकरोद्विभुः।
सेतु बंध इति विख्यातम्।।
वा0 रा0, लंका काण्ड (देखिये- युद्ध काण्ड़, सर्ग 123, श्लोक 20-21)
‘हे सीते! तेरे वियोग से हम व्याकुल होकर घूमते थे और इसी स्थान में चातुर्मास किया था और परमेश्वर की उपासना-ध्यान भी करते थे। वही जो सर्वत्र विभु (व्यापक) देवों का देव महादेव परमात्मा है, उसकी कृपा से हमको सब सामग्री यहॉं प्राप्त हुई। और देख! यह सेतु हमने बांधकर लंका में आ के, उस रावण को मार, तुझको ले आये।’ इसके सिवाय वहॉं वाल्मीकि ने अन्य कुछ भी नहीं लिखा।
(द्रष्टव्य- सत्यार्थ प्रकाश, एकादश समुल्लासः, पृष्ठ-303)
इस प्रकार उक्त उदाहरण से यह स्पष्ट हो जाता है कि भगवान राम स्वयं परमात्मा के परमभक्त थे। उन्होंने ही रामसेतु बनवाया था।
- स्वामी दयानन्द रामायण और महाभारत को काल्पनिक मानते तो सत्यार्थ प्रकाश के तृतीय सम्मुलास में पठन-पाठन विषय के अंतर्गत स्वामी जी वाल्मीकि रामायण और महाभारत के पढ़ने का विधान नहीं करते।
स्वामी दयानन्द लिखते है,
” तत्पश्चात मनुस्मृति, वाल्मीकि रामायण और महाभारत के उद्योगपर्व अंतर्गत विदुरनीति आदि अच्छे प्रकरण जिनसे दुष्ट व्यसन दूर हों और उत्तम सभ्यतागति हो , वैसे काव्यरीति अर्थात पदच्छेद , पदार्थोक्ति, अन्वय, विशेष्य, विशेषण और भावार्थ को अध्यापक लोग जनावें और विद्यार्थी लोग जानते जायें। ”
इससे स्पष्ट प्रमाण नहीं मिल सकता।
- स्वामी दयानन्द और आर्यसमाज श्री कृष्ण जी को योगिराज के रूप में सम्मान देता हैं। स्वामी दयानंद जी ने अपने अमर ग्रन्थ सत्यार्थ प्रकाश में श्री कृष्ण जी महाराज के बारे में लिखते हैं,
” पूरे महाभारत में श्री कृष्ण के चरित्र में कोई दोष नहीं मिलता एवं उन्हें आप्त (श्रेष्ठ) पुरुष कहा है। स्वामी दयानंद श्री कृष्ण जी को महान् विद्वान् सदाचारी, कुशल राजनीतीज्ञ एवं सर्वथा निष्कलंक मानते हैं फिर श्री कृष्ण जी के विषय में चोर, गोपिओं का जार (रमण करने वाला), कुब्जा से सम्भोग करने वाला, रणछोड़ आदि प्रसिद्ध करना उनका अपमान नहीं तो क्या है? “
बोलो योगिराज श्री कृष्ण जी की जय।
- स्वामी दयानन्द के पूना प्रवचन में इक्ष्वाकु से लेकर महाभारत पर्यन्त इतिहास पर विस्तार से चर्चा की हैं। अगर स्वामी जी रामायण और महाभारत को काल्पनिक मानते तो इनकी चर्चा क्यों करते?
-
रामभद्राचार्य जी वेद मन्त्रों में श्री राम जी का वर्णन बता रहे हैं। स्वामी दयानन्द वेदों को इतिहास की पुस्तक नहीं मानते क्यूंकि वेदों का ज्ञान सृष्टि के आदि में प्रकट हुआ हैं। ऐसे में उनमें इतिहास कहाँ से वर्णित होगा।
स्वामी दयानन्द इस विषय पर सत्यार्थ प्रकाश में लिखते है,
” इतिहास जिसका हो, उसके जन्म के पश्चात् लिखा जाता है। वह ग्रन्थ भी उसके जन्मे पश्चात् होता है । वेदों में किसी का इतिहास नहीं। किन्तु जिस-जिस शब्द से विद्या का बोध होवे, उस-उस शब्द का प्रयोग किया है। किसी विशेष मनुष्य की संज्ञा या विशेष कथा का प्रसंग वेदों में नहीं है।”
- क्या वेदों में रामायण के श्रीराम-सीता का वर्णन है ?
वेदों में राम, कृष्ण आदि शब्दों के नाम पर ही नामकरण हुए हैं। इसका अर्थ यह नहीं कि वेदों में श्री राम और श्री कृष्ण जी आदि का वर्णन हैं।
ऋग्वेद 2/2/8 में आये राम्याः का अर्थ स्वामी दयानन्द ने रात्रि किया है। ऋग्वेद 6/ 65/1 में आये राम्यासु का अर्थ स्वामी दयानन्द ने रात्रि किया है। ऋग्वेद 3/34/12 में आये रामी: का अर्थ स्वामी दयानन्द ने आराम की देने वाली रात्रि किया है। ऋग्वेद 10/3/3 में आये राम शब्द का सायण ने अर्थ कृष्ण रंग वाला किया है। इस प्रकार से राम शब्द के अर्थ वेदों में काले रंग, अन्धकार और रात्रि के रूप में हुए हैं। इनसे रामायण के पात्र श्रीराम किसी भी प्रकार से सिद्ध नहीं होते। वैद्यनाथ शास्त्री और अमर सिंह जी निरुक्त 12/13 का उद्धरण देकर राम शब्द से काला ग्रहण करते हैं।
अथर्ववेद 13/3/2668 में अर्जुन को द्रौपदी (कृष्णा) का पुत्र बताया गया है। वेदों में इतिहास मानने वाले क्या यह स्वीकार कर सकते हैं कि अर्जुन द्रौपदी का पुत्र था ? नहीं । स्वामी विद्यानन्द शतपथ ब्राह्मण 9/2/3/30 का प्रमाण देते हुए लिखते हैं कि यहाँ कृष्णा अर्थ रात्रि का है एवं रात्रि से उत्पन्न होने आदित्य अथवा दिन (अर्जुन) उसका पुत्र है । इस प्रकार से यहाँ इतिहास वर्णन नहीं है ।
- क्या वेदों में श्रीकृष्ण-राधा, अर्जुन आदि महाभारत के पात्रों का वर्णन है ?
वेदों में कृष्ण-राधा शब्द अनेक मन्त्रों में आया है। वेदों में इतिहास मानने वाले प्रायः कृष्ण शब्द से महाभारत के श्रीकृष्ण जी का वेदों में वर्णन दर्शाने का प्रयास करते हैं। राधा का वर्णन महाभारत में नहीं मिलता। वेदों में कृष्ण शब्द का अर्थ काला रंग, आकर्षक, काला दिन, काला बादल आदि हैं ।
स्वामी दयानन्द भाष्य अनुसार ऋग्वेद 1/58 /4 में कर्षणरूप गुण, ऋग्वेद 1/73/7 और ऋग्वेद 1/92/5 में काला रंग, ऋग्वेद 1/101/4 में विद्वान्, ऋग्वेद 1/115/4 में काले-काले अन्धकार, ऋग्वेद 1/164/47 में खींचने योग्य, ऋग्वेद 6/9/1 में रात्रि, ऋग्वेद 7/3/2 में आकर्षण करने योग्य, यजुर्वेद 21/52 में भौतिक अग्नि से छिन्न अर्थात् सूक्ष्मरूप और पवन के गुणों से आकर्षण को प्राप्त, यजुर्वेद 24/30 में काला हरिण, यजुर्वेद 24/40 में काले रंग वाला, यजुर्वेद 29/58 में काले गरने वाला पशु, यजुर्वेद 29/59 में काला बकरा, यजुर्वेद 30/21 में काले रंग वाले आदि अर्थ किया है।
ऋग्वेद 3/51/10 में राधा पद आता है जिससे कुछ लोगों में राधा का वर्णन मानते हैं। स्वामी दयानन्द ने राधा का अर्थ धन किया है। ऋग्वेद 1/ 22/7 में आये राधम का अर्थ स्वामी दयानन्द ने विद्या सुवर्ण वा चक्रवर्ती राज्य आदि धन के यथायोग्य किया है।
ऋग्वेद 6/9/1 में आये कृष्ण और अर्जुन का अर्थ स्वामी दयानन्द रात्रि और सरलगमन आदि गुण क्रमशः करते हैं। यजुर्वेद 23/18 में आये अम्बा, अम्बिका और अम्बालिका का अर्थ स्वामी दयानन्द माता, दादी और परदादी करते हैं।
- वेदों में इतिहास होने की मान्यता अज्ञानता का बोधक है।
अथर्ववेद 3/17/8 में आया है कि जिस प्रकार से ईश्वर ने इस कल्प में सृष्टि की रचना की है, वैसे ही पूर्व कल्प में की थी और आगे भी करेगा। कल्प के आरम्भ में ईश्वर वेदों का ज्ञान प्रदान करता है। इसलिए हर कल्प के आरम्भ में भी वैसे ही करेंगे जैसे करते आये हैं जो लोग वेदों में श्रीराम, कृष्ण आदि का इतिहास मानते हैं। क्या वे यह भी मानेंगे की हर सृष्टि के हर कल्प में श्रीराम को वनवास का कष्ट भोगना पड़ा ? क्या हर कल्प में सीता हरण हुआ ? क्या हर कल्प में कृष्ण को कारागार में जन्म लेना पड़ा ? क्या हर कल्प में यादव कुल का नाश हुआ ? नहीं ऐसा कदापि सम्भव नहीं है । ईश्वर द्वारा सभी सांसारिक वस्तुओं के नाम वेद से लेकर रखे गए हैं, न कि इन नाम वाले व्यक्तियों या वस्तुओं के बाद वेदों की रचना हुई है । जैसे किसी पुस्तक में यदि इन पंक्तियों के लेखक का नाम आता है तो वह इस लेखक के बाद की पुस्तक होगी । इस विषय में मनुस्मृति 1/21 में आया है कि ब्रह्मा ने सब शरीरधारी जीवों के नाम तथा अन्य पदार्थों के गुण, कर्म, स्वभाव नामों सहित वेद के अनुसार ही सृष्टि के प्रारम्भ में रखे और प्रसिद्ध किये और उनके निवासार्थ पृथक्-पृथक् अधिष्ठान भी निर्मित किये।
इन प्रमाणों से रामभद्राचार्य जी का विचार असत्य सिद्ध होता हैं। इस पर भी उन्हें शंका है तो आर्यसमाज के द्वार इस विषय पर शास्त्रार्थ के लिए खुले हैं।