वेदो में गाय के महत्व का वर्णन यों मिलता है

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एक अजूबा पशु
सारे पशु जगत में केवल मात्र गाय ही ऐसा पशु है जिसका बछड़ा /बछडी गाय के गर्भ से बाहर निकलते ही छलांगे/फुदकने लग जाता है ( मैं इस दृश्य का स्वयं साक्षी रहा हूँ) मुझे गूजर जाति की एक महिला ने पाला है। बचपन में मैनें गाये चराई थी। हालांकि मैं जाति से अग्रवाल महाजन हूँ।
गाय के बछड़े / बछडी की यह विशेषता है कि एक ही रुप रंग की दर्जनो गायो के झुन्ड में भी वह अपनी मां को पहचान लेता/लेती है।
* उत्तम पशु*
वेदों में मनुष्य योनि में सदाचारी व सर्वहितकारी मनुष्य को उत्तम पुरुष माना गया है। इसी तरह भोग योनि में गाय के सर्वहितकारि उपयोग को देखते हुए उत्तम पशु गाय को माना गया है।
वेदो में कहा गया है कि जिस देश के प्रत्येक घर में गोपालन होता है, उस देश में अकाल नहीं पडता। *गाय का प्रत्येक उत्पाद-दूध,गोबर व मूत्र अपना महत्व रखते है। आज के वर्तमान काल में केवल देशी गाय के संदर्भ में ही यह महत्व जानना चाहिए। देशी गाय के दूध की मलाई पीला रंग लिये होती है,अन्य प्रकार की गायो के दूध में यह विशेषता नहीं होती। बताया जाता है कि पीले रंग की मलाई में स्वर्ण/सोना का अंश होता है जो बहुत ही स्वास्थ्य के लिए हितकारी माना गया है।
यजुर्वेद 33-48 में कहा गया है कि ज्ञान के लिए सूर्य की उपमा है, द्युलोक के लिए समुद्र की उपमा है तथा पृथ्वी बहुत बड़ी है तो भी उससे इन्द्र अधिक समर्थ है परन्तु गाय के साथ किसी की भी तुलना नहीं होती।
यजुर्वेद 13 -42 में कहा गया है कि गाय तेजस्वी और अवध्य है, इसलिए इसकी हत्या मत कर ।
वेदों में गाय की हत्या को महापाप माना गया है।

गाये सब प्राणियों की माताएँ है।ये सब सुख प्रदान करने वाली होती है।

डा. गोवर्धन लाल गर्ग
जयपुर/गंगापुरसिटी,राजस्थान।

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