✍️मनोज चतुर्वेदी “शास्त्री
दिल्ली से लखनऊ तक और कार्यपालिका से लेकर न्यायपालिका तक “नेमप्लेट” को लेकर जबरदस्त बहस छिड़ी हुई है। कोई “नेमप्लेट” लगाए जाने के आदेश के साथ खड़ा है, तो कोई दूसरा उसके विरुद्ध खड़ा है। परन्तु सबको “नेमप्लेट” की चिंता है।
कल तक बेरोजगारी, भुखमरी, ग़रीबी, महंगाई और संविधान को लेकर आवाज बुलंद करने वाला समूचा विपक्ष भी केवल “नेमप्लेट” पर ध्यान केंद्रित किये हुए है।
विलियम शेक्सपियर ने कहा था- “नाम में क्या रखा है?” अरे साहब, जब नाम में कुछ नहीं रखा तो भला “नेमप्लेट” में क्या रखा है?
गौरतलब है कि “ममता दीदी” में कभी आपको ममता दिखाई दी है? “मुलायम” तो हमेशा रामभक्तों के लिये “कठोर” ही रहे। “योगी” कभी “भोग” नहीं छोड़ पाए।
केवल “नेमप्लेट” लगाने मात्र से इस देश की समस्याओं का समाधान नहीं हो सकता।
“कशिश” ऐसा नाम है जो हिन्दू भी रखते हैं और मुसलमान भी। कशिश का एक अर्थ है- आकर्षक और वहीं दूसरा अर्थ- काशीनाथ अर्थात शिव।
अब ऐसे में आप कैसे पहचानेंगे कि “कशिश” कौन है? हिन्दू या मुसलमान?
सनातन एक ऐसा धर्म है जो था, है और सदा रहेगा। कुछ लोग मंगलवार को प्याज़-लहसुन नहीं खाते, शराब नहीं पीते, लेकिन बाक़ी दिन मांस और मदिरा में डूबे रहते हैं। अब भला ऐसे लोगों को क्या कहेंगे??
दाढ़ी रखने वाला हर शख़्स मुल्ला जी नहीं होता, और न ही ख़तना करवाने से कोई मुसलमान बन जाता है। खतना तो किसी “गुप्तरोगी” की भी हो सकती है।
अब्दुल की भैंस, दुहने वाला रामकिशोर पांडे और दूध बांटने वाला रामखिलावन यादव। भैंस को चारा डालने वाला अब्दुल। तो दूध हिन्दू या मुसलमान??
खाने-पीने की चीजों में थूकने वाला, मूतने वाला इंसान हो ही नहीं सकता। और जो इंसान ही नहीं है, उसका क्या धर्म और क्या अधर्म।
सनातन हो या वैदिक , हमारे यहां हलाल-हराम नहीं है। हम किसी को भी यह प्रमाण पत्र नहीं दे सकते हैं कि अमुक हलाल है या हराम.
अगर “नेमप्लेट” ही लगानी है तो वह हिन्दू लगाए जो जनेऊ धारण करता है, शुद्ध शाकाहारी है, गायत्री मंत्र का जाप करता है, मांस-मदिरा से घृणा करता है। जो मन-कर्म और वचन से शुद्ध है।
वह नेमप्लेट लगाए और कांवड़ यात्रा पर आ-जा रहे समस्त भोले भक्तों को अपने पवित्र हाथों से दूध-फल-मेवे इत्यादि दे।
परन्तु इस घोर कलियुग में ऐसे “पवित्र” मिलेंगे कहाँ? शायद मंगलवार को ही मिलें।
✍️समाचार सम्पादक, हिंदी समाचार-पत्र,
उगता भारत
9058118317
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