परमात्मा की अनुभूति क्यों करें?
प्रसन्नता की मूल वर्षा करने वाला कौन है?
अपने जीवन में किसी भी महान् व्यक्तित्व का अनुसरण कैसे करें?
अस्मा इदु त्यमुपमं स्वर्षां भराम्याङ््गूषमास्येन।
मंहिष्ठमच्छोक्तिभिर्मतीनां सुवृक्तिभिः सूरिं वावृधध्यै।।
ऋग्वेद मन्त्र 1.61.3 (कुल मन्त्र 697)
(अस्मै इत् उ) निश्चय से यह उसके लिए है (परमात्मा के लिए) (त्यम) उस (उपमम) निकटता से उसका अनुसरण करने वाले (स्वर्षाम) प्रसन्नता की वर्षा करने वाले (भरामि) धारण करते हैं (आंङ््गूषम) परमात्मा की महिमा का गान करना (आस्येन) मुख से (मंहिष्ठम) अत्यन्त महान् (अच्छोक्तिभिः) श्रेष्ठ वाणियों के साथ (मतीनाम) सम्मानित और उदार लोगां का (सुवृक्तिभिः) बुराईयों का त्याग करके उत्तम लक्षणों का अनुसरण करने वाले (सूरिम) महान् ज्ञान (वावृधध्यै) प्रगति के लिए, बढ़ाने के लिए।
व्याख्या :-
परमात्मा की अनुभूति कैसे करें?
परमात्मा की अनुभूति क्यों करें?
कौन परमात्मा की महिमागान करता है और उसका अनुसरण करता है?
जो लोग अपनी उन्नति, अपनी वृद्धि के इच्छुक होते हैं वे परमात्मा का अनुसरण करते हुए बड़े निकट उसकी अनुभूति प्राप्त करते हैं। क्योंकि वह प्रसन्नता की वर्षा करने वाला है। ऐसे लोग अपने मुख से परमात्मा की महिमा का गान करते हैं और उसे धारण भी करते हैं। सम्मानजनक और उदार लोगों की श्रेष्ठ वाणियों के साथ परमात्मा महान् रूप में स्थापित होता है। ऐसे श्रेष्ठ वक्ता महान् ज्ञान वाले होते हैं और वे बुराईयों का त्याग करके उत्तम लक्षणों का अनुसरण करते हैं।
जीवन में सार्थकता : –
प्रसन्नता की मूल वर्षा करने वाला कौन है?
अपने जीवन में किसी भी महान् व्यक्तित्व का अनुसरण कैसे करें?
परमात्मा की महिमागान का उद्देश्य उसका आत्मा में अनुसरण करना है। एक बार जब हम उसे अपनी आत्मा में अनुभव कर लेते हैं तो हमें महसूस होता है कि हर प्रकार की प्रसन्नता की मूल वर्षा करने वाला अकेला वही है। हमें अपने जीवन में जो कुछ भी भौतिक वस्तुओं या विचारों का आनन्द प्राप्त करते हैं, उन सबका स्रोत वही है। अतः परमात्मा का महिमागान करने के बाद उसे अपने हृदय में तथा मन में धारण करना चाहिए जिससे जीवन में उसका अनुसरण कर सकें। परमात्मा का निकटता के साथ अनुसरण करने का अर्थ है उसकी महिमाओं का गान करना, उन्हें धारण करना और उनका अनुसरण करना।
यदि आप जीवन में किसी भी महान् व्यक्ति का अनुसरण करना चाहते हो तो उसका महिमागान करो, अपने मन और हृदय में इन महिमाओं को धारण करो और जीवन में उनका अनुसरण करो। उच्च स्तर की वह ऊर्जा, जिसकी आप प्रशंसा करते हो और जिसका महिमागान करते हो, बदले में आपको भी ऊर्जान्वित कर देती है।
सूक्ति:-
(अच्छोक्तिभिः मतीनाम् सुवृक्तिभि सूरिम वावृधध्यै) सम्मानजनक और उदार लोगों की श्रेष्ठ वाणियों के साथ परमात्मा महान् रूप में स्थापित होता है। ऐसे श्रेष्ठ वक्ता महान् ज्ञान वाले होते हैं और वे बुराईयों का त्याग करके उत्तम लक्षणों का अनुसरण करते हैं।
अपने आध्यात्मिक दायित्व को समझें
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