हम परमात्मा की महिमा का गान क्यों करते हैं?
हम परमात्मा की महिमा का गान क्यों करते हैं?
हमारा प्राचीन संरक्षक कौन है?हमें शारीरिक और मानसिक रूप से कौन शुद्ध करता है?
भगवान के साथ हमारा सम्बन्ध बार-बार भोजन करने के समान किस प्रकार है?
अस्मा इदु प्रयइव प्र यंसि भराम्याङ््गूषं बाधे सुवृक्ति।इन्द्राय हृदा मनसा मनीषा प्रत्नाय पत्ये धियो मर्जयन्त ।।
ऋग्वेद मन्त्र 1.61.2 (कुल मन्त्र 696)
(अस्मै इत् उ) निश्चय से यह उसके लिए है (परमात्मा के लिए) (प्रयः) संतुष्टि देने वाला भोजन और सम्पदा (इव) जैसे कि (प्रयंसि) स्वयं को देता है (भरामि) धारण करना (आंङ््गूषम) परमात्मा की महिमाओं का गान (बाधे) शत्रुओं को रोकने योग्य (सुवृक्ति) उत्तम लक्षण पैदा करना (इन्द्राय) एक इन्द्र के लिए (हृदा) हृदय से (मनसा) मन से (मनीषा) बुद्धि से (प्रत्नाय) प्राचीन है, सनातन ळे (पत्ये) संरक्षक (धियः) बुद्धि तथा कार्य (मर्जयन्त) शुद्ध करता है।
व्याख्या:-हम परमात्मा की महिमा का गान क्यों करते हैं?
हमारा प्राचीन संरक्षक कौन है?
हमें शारीरिक और मानसिक रूप से कौन शुद्ध करता है?
आपको निश्चित रूप से स्वयं को ही परमात्मा के प्रति समर्पित कर देना चाहिए, जिस प्रकार आप संतोषजनक भोजन और सम्पदा स्वीकार करते हो और ग्रहण करते हो। आपको परमात्मा का महिमागान करके उसे धारण करना चाहिए, क्योंकि ये शत्रुओं और बुराईयों को रोकने में सक्षम है तथा हमारे अन्दर उत्तम आदतें और लक्षण पैदा करने में सक्षम हैं।
इसीलिए मननशील व्यक्ति सर्वोच्च इन्द्र की अनुभूति के लिए अपने हृदय, मस्तिष्क और बुद्धि से प्रयास करते हैं, जो कि हमारा प्राचीन संरक्षक है और हमारी बुद्धियों तथा कार्यों को शुद्ध करता है।
जीवन में सार्थकता: -भगवान के साथ हमारा सम्बन्ध बार-बार भोजन करने के समान किस प्रकार है?
हम बार-बार भोजन स्वीकार करते हैं और ग्रहण करते हैं, यह हमारी शारीरिक माँग है। इससे हमारा शरीर संरक्षित होता है। यह हमारे विकास में सहायक है। यह हमें बल देता है।
इसी प्रकार हमें स्वयं को परमात्मा के प्रति समर्पित कर देना चाहिए, अपने जीवन में परमात्मा की उपस्थिति के प्रति सचेत रहना चाहिए और हमारे भीतर उस मूल शक्ति के साथ प्रेम पूर्ण सम्बन्ध के प्रति भी सचेत रहना चाहिए। हमें इस उच्च स्तरीय चेतना में प्रतिक्षण बार-बार जीना चाहिए, क्योंकि परमात्मा के साथ हमारे इस चेतन रिश्ते से निम्न लाभ होंगे:-
1. मनसिक शुद्धि प्राप्त होगी।
2. बुराईयों और शत्रुओं के विरुद्ध हमें स्थाई संरक्षण मिलेगा।
3. हमारे अन्दर उत्तम आदतें और लक्षण पैदा होंगे।
सूक्ति:-
(इन्द्राय हृदा मनसा मनीषा) मननशील व्यक्ति सर्वोच्च इन्द्र की अनुभूति के लिए अपने हृदय, मस्तिष्क और बुद्धि से प्रयास करते हैं।(प्रत्ना पत्ये धियः मर्जयन्त) परमात्मा हमारा प्राचीन संरक्षक है और हमारी बुद्धियों तथा कार्यों को शुद्ध करता है।
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