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विश्वगुरू के रूप में भारत

मेरे मानस के राम अध्याय 23 , हनुमान लंका जलाकर लौट आए राम के पास

हनुमान जी ने रावण की लंका को जलाया । इसका अभिप्राय यह नहीं है कि उन्होंने सारे लंका देश को ही जलाकर समाप्त कर दिया था। भारतीय धर्म और परंपरा भी ऐसा नहीं कहती कि निरपराध लोगों को आप अपने बल के वशीभूत होकर समाप्त कर दें। हमारे यहां पर संध्या में भी ‘यशोबलम’ की कामना की गई है । जहां बल पर यश की नकेल डाली जाती है। प्रभु से प्रार्थना की जाती है कि हमारी इंद्रियां बलशाली तो हों , पर उन पर यश की नकेल भी हो। कभी भी वह शक्ति या बल के वशीभूत होकर किसी दूसरे का अहित न कर बैठें । जैसे रावण ने कर दिया था। शक्ति के प्रयोग से पहले मनुष्य अपने यश के बारे में भी विचार करें। हनुमान जी आर्य परंपरा के जागरूक योद्धा थे । अतः उनसे ऐसी अपेक्षा नहीं की जा सकती कि वह भी रावण की भांति कोई अविवेक पूर्ण निर्णय ले लें। ऐसे में उनके द्वारा लंका जलाये जाने की बात को केवल इतने तक सीमित करके देखना चाहिए कि उन्होंने अपने लांगूल से उन चिन्हित की गई कुछ खास जगहों पर आग लगाई जहां से संपूर्ण लंका देश में उनकी उपस्थिति का संदेश जा सकता था। जैसे कभी-कभी हम देखा करते हैं कि जब आतंकवादी किसी शहर में सीरियल बम ब्लास्ट करते हैं तो चाहे उन बम ब्लास्टों में 2 – 4 लोगों की ही जान जाए, पर समाचार पत्र उन पर अपने लेख का हेडिंग बनाते हैं कि आतंकवादी घटना से अमुक शहर दहल गया। बस यही बात लंका दहन के बारे में माननी चाहिए।

लगे जलाने आग से , लंका को हनुमान।
बल उनका न कर सका , कोई भी अनुमान।।

जलती लंका देखकर , हुआ बड़ा अफसोस।
अपने किए को वीरवर, देख रहे खामोश।।

महावीर खुद आपको, रहे बहुत धिक्कार।
दुर्बुद्धि निर्लज्ज हूं, किया घोर अपराध ।।

सफल मनोरथ हो गए, रहा नहीं कुछ खास।
हनुमंत अब चल दिए, रघुनन्दन के पास।।

महेंद्र पर्वत के निकट , पहुंच गए हनुमान।
इंतजार सब कर रहे , कब आवें बलवान।।

जामवंत प्रसन्न थे , अंगद हर्ष अपार।
सुग्रीव ने आनंद से , दिखलाया था प्यार ।।

समाचार सबको दिए , जो कुछ देखा हाल।
सीता जी मुझको मिलीं , दिया बता तत्काल।।

उछल पड़े आनंद से , वानर सुन समाचार।
ढोल बजाते चल दिए , खुशी थी उन्हें अपार।।

पुरुषोत्तम को जा दिया, सीता का संदेश।
चूड़ामणि दिया हाथ में , सीता का उपदेश।।

जो कुछ लंका में हुआ , बतलाया सब हाल।
सीता की सुनकर व्यथा , राम हुए बेहाल।।

चूड़ामणि को देखकर , रोने लगे श्री राम।
हृदय द्रवित हो गया , लक्ष्मण जी का साथ।।

डॉ राकेश कुमार आर्य

( लेखक सुप्रसिद्ध इतिहासकार और भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता है। )

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