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*व्यक्तित्व का समुन्नयन गुरु कृपा से ही सम्भव है*

            समुत्कर्ष समिति द्वारा गुरु पूर्णिमा की पूर्व संध्या पर *तस्मै श्री गुरवे नमः* विषयक 124 वीं समुत्कर्ष विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया l सामाजिक एवं राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में गुरु गौरव पुनर्स्थापना के प्रयास में *समुत्कर्ष समिति* के समाज जागरण के ऑनलाइन प्रकल्प *समुत्कर्ष विचार गोष्ठी* में अपने विचार रखते हुए वक्ताओं कहना था कि भारतीय समाज में गुरु तत्त्व की जैसी महिमा है, वैसी अन्यत्र कहीं नहीं है। गु शब्द का अर्थ होता है अंधकार और रु शब्द का अर्थ है प्रकाश। अत: गुरु वह तत्त्व है, जो जीवन में अंधकार रूपी अज्ञान को दूर कर ज्ञान रूपी प्रकाश भर देता है। गुरु सामान्य व्यक्ति नहीं है। वह ज्ञान का मूर्तरूप है। वह केवल अक्षर ज्ञान नहीं करवाता, अपितु व्यक्ति के जीवन को आलौकित कर देता है।

विचारगोष्ठी में सर्वप्रथम मंगलाचरण एवं विषय का प्रवर्तन करते हुए आर्य सत्यप्रिय ने कहा कि चर-अचर सब जीवों में वह परमात्म तत्त्व विद्यमान है। हमारी आत्मा स्वयं ज्ञान का भंडार है, परन्तु अज्ञान ने उस आत्मा को ढ़क रखा है। गुरु हमारी आत्मा को जो अज्ञान से आवृत्त हुई है, उसे अनावृत्त कर देता है। और हमारे भीतर जो ज्ञान जन्मपूर्व से ही विद्यमान है उसे प्रकट कर देता है। ज्ञान का प्रकटीकरण गुरु कृपा से ही सम्भव है। इसीलिए हमारी संस्कृति में प्रत्येक मत-पंथ ने गुरु की बार बार महिमा गाई है।

मोटिवेशनल स्पीकर संदीप आमेटा ने इस अवसर पर कहा कि गुरु ज्ञान के प्रकाश स्तंभ की तरह हैं, जो हमें समृद्धि और ज्ञान की ओर मार्गदर्शन करते हैं। गुरु को हमारे समाज की महत्वपूर्ण संस्था माना जाता है। वे शिष्य के जीवन में प्रभावी प्रेरणा स्रोत हैं और उन्हें ज्ञान और संस्कार देते हैं। गुरु अपने शिष्यों के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, उन्हें नई सोच और दृष्टिकोण प्रदान करते हैं। एक अच्छे गुरु का महत्वपूर्ण कार्य होता है बाल विकास, शिक्षा के माध्यम से समाज के साथियों का निर्माण करना और राष्ट्रीय निर्माण में मदद करना।

शिक्षाविद विद्यासागर ने शिक्षक और गुरु के भेद को स्पष्ट करते हुए बताया कि गुरु शिष्य सम्बन्ध मित्रता की उच्चतम अभिव्यक्ति है-क्योंकि यह नि:शर्त दिव्य प्रेम और बुद्धिमता पर आधारित होता है। यह सभी सम्बन्धों में सबसे उन्नत एवं पवित्र होता है। व्यक्ति को अपनी दिव्यता को पुनः पाने के लिए एक ऐसा ही सद्गुरु चाहिए। जो निष्ठापूर्वक सद्गुरु का अनुसरण करता है वह उसके समान हो जाता है, क्योंकि गुरु अपने शिष्य को अपने ही स्तर तक उठने में सहायता करता है।

मोहन लाल प्रजापत ने एकलव्य और गुरु द्रोण की कथा सुनते हुए कहा कि गुरु समाज की आधारशिला होते हैं, जो व्यक्ति को बेहतर इंसान बनने में मदद करते हैं। वास्तव में, गुरु शब्द का अनुवाद नहीं किया जा सकता है और ‘शिक्षक’, ‘मास्टर’, ‘शिक्षक’ या अन्य समतुल्य शब्द केवल आंशिक अर्थ देते हैं। माता-पिता के साथ-साथ वे सभी व्यक्ति, जो शिष्यों के भविष्य निर्माण में सहायक होते हैं, उनके गुरु होते हैं।

आभार प्रकटीकरण समुत्कर्ष पत्रिका के उप संपादक गोविन्द शर्मा द्वारा किया गया l समुत्कर्ष विचार गोष्ठी का संचालन शिवशंकर खण्डेलवाल ने किया ।

इस ऑनलाइन विचार गोष्ठी में सुदर्शना भट्ट, गोपाल लाल माली, लोकेश जोशी, निर्मला मेनारिया, राम मोहन शर्मा, राजेश गोराणा, चिराग सैनानी, अनिल कुमार दशोरा, पीयूष दशोरा तथा रामेश्वर प्रसाद शर्मा भी सम्मिलित हुए।

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