जन्म लिया तो दलित,राज्य पाल से राष्ट्र पति तक दलित ही रहेंगे ?
सृष्टि रचने वाले ने अपनी रचना में सबसे उत्कृष्ट, सबसे उत्तम, ज्ञान, विज्ञान का जाननेवाले, खोजने,परखने वाले,अपनी व्यवहार, आचरण से अपना जीवन ही नही,किन्तु प्राणीमात्र का कल्याण और अपने कृया कलापों से, औरों को आकृष्ट करने वाले, मानवतावादी विचारधारा से धरतीपर मात्र अपनी छाप छोड़ने वाले का नाम ही मानव बताया है | इसके विपरीत आचरण करनेवाले का.नाम मानव का होना संभव नही है | मानव नाम उसका है जो गुण कर्म स्वभाव से श्रेष्ठ है अपनी व्यबहार कुशलता से धरती से जाने के बाद जिसका गुणगान गाया जाय उसी का ही नाम मानव कहा गया है |
बात स्पष्ट समझ में आ गई, कि धरती पर जन्म ले कर जो अपनी योग्यता को अपनी तैयारी में लगादें तथा अपनी पहचान बनाये हर अच्छाई शिक्षा से ले कर हर उन्नति को हासिल करने वाले का नाम मानव है | खूबी की बात इसमें यह भी है की,जन्म से यह सभी गुणों को लेकर नही आया इसी धरती पर आकर ही जो अपनी पहचान बनाली उसीका ही नाम मानव है | यही कारण बना परमात्मा का उपदेश है, मनुर्भव:{मानवबनो } पता लगा धरती पर आकर जो यही ज्ञान विज्ञान, से लेकर सभी गुणों को धारण करनेवाले का नाम ही मानव पड़ा | इसके विपरीत आचरण करने वाले का ही नाम दानव है | बात बिलकुल साफ है यही धरती पर आकर ही कोई अपने आचरण से मानव बनता है,और कोई दानव |
जब धरती पर कोई दानवता पूर्ण कार्य करे,तो क्या मानव समाज में उसे किसी जाति से जोड़ा जाता है ? अपनी उन्नति से मानव, और अपनी अबनति से दानव अथवा अपने आचरण से मानव, और अपने आचरण से दानव | बिलकुल सीधा सपाटा बात है जिसमें सोचने, और देखने के लिए कोई दुर्विन लगाने की ज़रूरत ही नही है | यही शास्त्र का कहना है जो हमारे महापुरुषों ने कहा है, { समानप्रस्वत्मिका स:जाति: } अर्थात जो एक ही प्रकार से प्रसव करते हैं वह सब एक ही जाती के हैं |
मानव धरती पर एक ही प्रकारसे आते है, प्रसव होते हैं, उन मानवों की एक ही जाती है | अर्थात मानव मात्र के एक ही जाति है, मनुष्य जाति, इसमें, दो प्रकार हैं मानव और दानव | इन्हें चार विभागों में बांटा गया, कर्मानुसार, अपनी योग्यतानुसार, अपनी क़ाबलियत के आधार पर | जिसमें ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, और शूद्र नाम पड़ा,यही मानव कहलाने वाले ही इस नाम को पाते हैं, अपनी योग्यतानुसार ही, यह जन्म से, माता पिता से पूर्वजों से नही किन्तु मात्र अपनी क़ाबलियत,योग्यतानुसार ही इस नाम को प्राप्त करता हैं |
यह जरूरी नही की पिता पण्डित है तो पुत्र भी पण्डित होगा, अगर बेटे ने पढ़ा लिखा नही किसी सेवा कार्य में लगा है वह पण्डित नही कहलाता उसे ही लोग शूद्र कहते हैं | किसी के पिता शूद्र है सेवक है और पुत्र वेद विद्या में पारंगत है समाज में उसे ही पण्डित कहा जाता है, फिर यह पण्डित की जाति कौन सी हुई ? मनुष्य के कार्य पर ही उसके वर्ण को चिह्नित किया जायगा | वेद पढ़े पढ़ाये, यज्ञ करे कराएँ, दान दें दान लें | यही {6} गुण जिनमें हो वही पण्डित है |
जो रक्षा का काम करें वह क्षत्रिय, जो व्यापर करे वह वैश्य, और जो सेवा करें वह शूद्र, अब यहाँ दलित कौन हैं, कहाँ से पैदा हुवा यह दलित ? दलित कहाँ से टपके, वर्ण तो चार ही हैं, यह दलित का कौनसा वर्ण है ? कारण शूद्र तो इन चार वर्णों में से एक वर्ण का नाम शूद्र है, तो यहाँ दलित किसे कहा गया उसका वर्ण कौनसा है ?
यह सभी नाम कर्म के आधार पर चयन होता है, यह मनुष्यके गुण पर आधारित है, जो जिस काम को पसन्द करता है उसी नाम से उसे पुकारा जाता है | यह नाम जन्म से किसी को नही मिला और मिलना संभव भी नहीं है | कारण मिलता तो तब जब उसकी रूचि और कार्य भी वही होती ? पिता जुता सिलता है, कपड़ा बिनता है सफाई कर्मचारी है | किन्तु पुत्र वेद विद्यालय में पढ़ा, संस्कृतज्ञ है तो वही ब्राम्हण है पण्डित कहलाया | यह जन्म से नहीं किन्तु पुत्र अपने ही प्रयास और योग्यता अनुसार ही अपनी क़ाबलियत से इन पण्डित वर्णों को प्राप्त किया है |
इन परम्परा का प्रचार करने वाले को हम अगर देखें तो सबसे पहला नाम इतिहास में हमें मिलता है श्री चैतन्य महाप्रभु का, कि जिन्होंने एक मुस्लिम परिवार के युवा को अपना शिष्य बना कर पण्डित की उपाधी दिया था | दूसरा नाम हम देखते हैं राजा राममोहन राय का, जिन्होंने ब्राह्मण कुल में जन्म ले कर, प्रचार किया जन्म से कोई जाति नहीं मनुष्य मात्र की एक ही जाति होती हैं | सभी मनुष्य एक ही जाति के हैं | उसके बाद भी हम ऋषि दयानन्द, और पण्डित ईश्वरचन्द्र विद्यासागर जी को भी देख सकते हैं | जिन्हों ने डंके की चोट कहा जन्म से मानव मात्रके एक ही जाति हैं, कर्मों के अनुसार उनका वर्ण बनता है | जो जैसा कर्म करेंगे उन्ही वर्णों में उनकी गिनती होगी उन्हें उनहीं वर्णों में माना जायगा आदि |
सारा प्रमाण उन्हों ने शास्त्र से दिया है जो मानव मात्र को मान्य है, किन्तु दुर्भाग्य से डॉ भीमराव अम्बेडकर ने आर्यसमाज,तथा आर्य वैदिक विचारधारा को जानने के बाद भी उनका बौधिष्ट बन जाना, यह सरासर वैदिक मान्यता पर कुठाराघात हुवा है | अगर ब्राह्मणों ने उनके साथ कुछ दुर्व्यवहार किया भी था, तो क्या वह वैदिक विचारों को उनके सामने नही रख सकते थे ? की हमारे ऋषि मुनियों ने जन्म से किसी को जाति नही माना उन्ही परम्परा का उजागर नही कर सकते थे ?
बौधिष्ट बन कर वैदिक मान्यता को ही तिलांजली दिया, यहाँ तक की हमारे ऋषियों पर भी दोष लगा दिया | जिन ऋषियों ने प्रथम से ही मानवों के जन्म से कोई जाति नही होती, सब कर्मों के अनुसार ही उनकी पहचान होती है का प्रचार किया | जिसका प्रमाण हम मर्यादा पुरुषोत्तम राम, और योगेश्वर श्री कृष्णजी से ले सकते हैं जिन्होंने चतुरवर्ण मयासिष्टं गुण कर्म विभगसौ = वर्ण चार ही है गुण के आधार पर जिसका चयन किया जाता है वर्ण के यह चार विभाग है,जिसका प्रचार किया है |
अम्बेडकर ने बौधिष्ट महिला से शादी कर इन ऋषि परम्परा को छोड़ मानव समाज को धर्म के नाम से लोगों को अलग कर दिया, जब की धर्म मनुष्य मात्र के एक ही हैं | धन्यवाद दें ऋषि दयानन्द जी को, मुझ जैसे एक मुसलिम परिवार में जन्म लेने वाले को आज़ सम्पूर्ण विश्व भर लोगों से पण्डित कहलवा दिया | पूरी दुनिया के लोग आज मुझे पण्डित कह कर पुकार रहे हैं, क्या अगर डॉ भीमराव अम्बेडकर चाहते तो वह खुद भी तो पण्डित कहला सकते थे ? उन्हों ने सत्य को नकारा जिसका परिणाम आज के राज नेतागण उनके नाम से राजनीति करने लगे, कोई हाथी बनाया कोई उनकी मूर्ति, बनाकर मानव समाज को दूषित करने लगे और दलित कह कर सारा मानव समाज को, हमारे ऋषि मुनियों को,उनके बनाये शास्त्र को वैदिक मान्यता को भी कलंकित कर रहा हैं उन्हें बोलने वाला कोई नही, यह कैसी मानसिकता है लोगों की ? मानव कहला कर कोई सत्य को बोलना छोड़ दे, उसकी गिनती मानव में नहीं हो सकती |
यही मायावती को जब श्री मुलायमसिंह यादव जी लुच्ची कहा था, कांशीराम को लुच्चा बताया था उन दिनों, इन का अपमान नही हुवा था ? जब यह एक राष्ट्र भक्त चन्द्रशेखर आजाद को माया वती राष्ट्र द्रोही कही थी उस समय क्या सम्पूर्ण राष्ट्र का अपमान नही था ? यही मायावती जब महात्मागाँधी को शैतान के बच्चे बोली उस समय देश का अपमान नही था ? उस वक्त राहुल, माँ बेटा कहाँ सो रहे थे ? लालू मुलायम केजरी ममता सीताराम यचूरी आदि नेतागण कहाँ गायब हो गए थे | जब यही मायावती सम्पूर्ण भारत भर, तिलक, तराजू, और तलवार इनके मारो जुते चार, कह कर सम्पूर्ण ब्राह्मण, क्षत्रिय, और वैश्य को गाली दे रही थी वह मानव समाज पर कुठाराघात नही था ? देखें सत्यता तिलक –तराजू –और तलवार – बोला गया था, जिस में तीन वर्ण आये चौथा वर्ण शूद्र का नाम नहीं आया फिर जाती तो शूद्र की हुई, दलित कि कहाँ है जाती ? फिर यह दलित किसे कहा जा रहा है ? ना मालूम परमात्मा इन्हें अकल कब देंगे ?
महेन्र्नपाल आर्य =वैदिकप्रवक्ता = 20/7/24