संगीत से औरंगजेब का अल तकिया !!!

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अहले सुन्नत के मुताबिक संगीत हराम है। इसलिये जो कोई भी मुसलमान इसमें अतीत में शामिल रहा है या वर्तमान में है या भविष्य मेंं होगा वह सुन्नत ए रसूल के मुताबिक क्या कहलाया जायेगा ? ऐसा ही एक हरामखोर था औरंगजेब। क्योंकि उसने जहां एक तरफ संगीत को दफन किया वहीं दूसरी तरफ संगीत का ही सहारा लेकर अपने भाई दारा शिकोह को शिकस्त भी दी। कैसे ? यह जानने से पहले औरंगजेब के संगीत विरोध को समझ लिया जाये।
* ” औरंगजेब संगीत को फूटी आंखों भी देखना पसंद नहीं करता था। उसका यह पूर्ण विश्वास था कि संगीत चरित्र का दीवाला निकालने में सबसे अधिक सहायक सिंबल है। संगीत के द्वारा मानव हैवान तक बन जाता है। संगीत मनुष्य को पशु बना डालता है। उसको धर्म से पृथक कर देता है। मानव फिर कर्तव्यशील नहीं रहता है। इसी विश्वास से परिपूर्ण होकर उसने भारतीय संगीत के प्रति बहुत कड़ा रुख अख्तियार किया था। ”
(‘भारतीय संगीत का इतिहास’ – उमेश जोशी)
* ” मुसलमान पैगंबरों के आदेश पर औरंगजेब ने संगीत और नृत्य को नष्ट करने की पूरी कोशिश की। उसे संगीत से घृणा थी और इसलिये उसने संगीत का आरोप शीघ्र ही शैतान पर कर दिया। औरंगजेब की इस कठोरता से संगीतज्ञ असंतुष्ट हो गये, और शांति रक्षा के लिये संगीत अनुष्ठान बंद कर दिये। सम्राट इस कला का अंत करने पर तुला हुआ था, और वैसे ही निर्मम आदेशों का प्रचार हुआ। संगीतज्ञों के जलसों पर नगर-रक्षकों के आक्रमण हुये तथा उनके वाद्य यंत्र जला दिये गये। ”
(‘A Short Historical Survey of the Music of Upper India’ – Shri Bhatkhande)
* ” औरंगजेब निहायत ही रूखा-फीका इंसान था। उसे मेलों, नाच-रंग और गाने-बजाने से नफरत थी। ”
– मौलाना शिब्ली
एक शुक्रवार जब औरंगजेब मस्जिद जा रहा था तो उसने संगीतज्ञों की एक भीड़ को रुदन करते हुये एक शवयात्रा में देखा। औरंगजेब ने पूछा यह क्या है तो लोगों ने बताया यह संगीत की शव यात्रा है जिसकी हत्या उसी के कारण हुयी है। सुनते ही औरंगजेब ने तपाक से कहा-
” मैं आपके कर्तव्य ज्ञान की प्रशंसा करता हूं। शव को इतनी गहरायी से गाड़ दो कि उसकी आवाज़ फिर कभी सुनायी ना दे सके। ”
सभी मुगल शासकों की तरह औरंगजेब के पिता का भी संगीत प्रेम केवल अपने हरम में ऐय्याशियों के लिये ही था। लोगों ने इसे मुगलों का भारतीय संगीत में योगदान समझ लेने की भूल कर दी है। हरम की ऐय्याशियों पर पर्दा डालने के लिये ये ही मुगल बादशाह अपने दरबार में हिंदू गायकों को प्रश्रय दे देते थे। इसे मुगलों का संगीत प्रेम समझ लिया जाता है। इसके पिता शाहजहां के हरम में अनेक महिला संगीतज्ञ थीं जहां औरंगजेब का पालन पोषण हुआ। इसलिये हरम के जीवन में अन्य सभी मुगल शासकों की तरह औरंगजेब संगीत और सुंदरी का रसिक था। उसने अपने भाई दारा शिकोह से गायकियां और नर्तकियां भी मांगी थीं। सुंदर महिलायें शुरु से उसकी कमजोरी थीं। एक बार अपने मौसा की उपपत्नी गायिका नर्तकी हीराबाई (काफिर रखैल) पर उसका दिल आ गया तो उसने अपने मौसा से उसे मांग लिया। हीराबाई को औरंगजेब ने जैनाबादी का नाम दिया और उसपर बुरी तरह आसक्त होकर उसके हाथ की कठपुतली बन गया था। औरंगजेब शराब नहीं पीता था लेकिन अपनी रखैलों को अपने हाथों शराब पिलाता था। जैनाबादी की हठ पर एक बार स्वयं शराब पीने को राजी भी हो गया था। ”
अब तो सैकड़ों सालों से औरंगजेब लाखों ह़िदुओं के कत्ल के इनाम में जन्नत में मोती जैसी आंखों वाले गिलमा के हाथों शराब खुल्लमखुल्ला पी ही रहा है।
प्रख्यात संगीतविद् पंडित विजयशंकर मिश्र जी ने अपनी पुस्तक ‘ संगीत के इंद्रधनुषी शिलालेख’ में संगीत को लेकर औरंगजेब के व्यक्तित्व में विभाजन कर मत व्यक्त किया है कि औरंगजेब ने राजनीतिक कारणों से ही संगीत पर प्रतिबंध लगाया था लेकिन वह व्यक्तिगत रूप से संगीत द्रोही नहीं था। अपने अंत:पुर (हरम पढ़ें) में संगीत समारोह करवाता था, पुरस्कार बांटता था और उसके अंत:पुर के संगीतज्ञ उसके दरबार में बैठा भी करते थे। लेकिन संगीत पर राजनीतिक प्रतिबंध की बात को भी मिश्रा जी स्वीकार करते हैं। इसका कारण यह है कि लेखक को कुरान और हदीस की जानकारी ही नहीं है। इसलिये जितना इस्लाम को अपने संगीत के जीवन में जाना उसे ही कुरान और हदीस की शिक्षा समझने की अनजानी भूल कर बैठे। जो कुरान में वो पढ़े होते कि अल तकिया यानी झूठ बोलना कलामुल्लाह है तो ऐसा विभाजन ना करते। जन्म से लेकर जन्नत तक ईमानवाले का एक ही चरित्र रहता है यदि वह सच्चा ईमानवाला है तो। इसमें विभाजन हुआ कि दीन से गया।
संगीत पर औरंगजेब ने क्यों राजनीतिक प्रतिबंध लगाया इसपर मिश्रा जी ने अपनी पुस्तक ‘संगीत के इंद्रधनुषी शिलालेख’ में स्व. कैलाशचंद्र देव बृहस्पति की पुस्तक ‘खुसरो, तानसेन तथा अन्य कलाकार’ में ‘खुलासतुल् ऐश आलम शाह’ के हवाले से एक अत्यंत रोचक और मनोरंजक घटना उद्धृत की है जब औरंगजेब सम्राट नहीं बना था-
” सन् 1653 में औरंगजेब पुन: दक्षिण का सूबेदार नियुक्त हुआ। शाहजहां के महामंत्री अली मर्दान खान की राय थी कि मुर्शिद कुली खां शाहजहां के जिस पुत्र का साथ देगा वही सम्राट होगा। इसलिये शाहजहां ने मुर्शिद कुली खान को दारा शिकोह की सेवा में नियुक्त कर.दिया। औरंगजेब कुली खान को अपने साथ दक्षिण ले जाना चाहता था। यह इच्छा उसने महामंत्री मर्दान खान से जाहिर की।शाहजहां कुली खान को कभी औरंगजेब के साथ दक्षिण नहीं भेजता। अत: तानसेन के पुत्र बिलास खान के दौहित्र खुशहाल खान कलावंत को एक लाख रुपये घूस देकर इस बात के लिये तैयार किया गया कि वह नौरोज के उत्सव में वह शाहजहां का प्रिय राग तोड़ी गाकर उन्हें रसमग्न कर दे।उसी समय अली मर्दान खान , मुर्शिद कुली खान को.दक्षिण भेजने के विषय में बादशाह की सेवा में अर्जी पेश कर दे, जिससे बिना पढ़े ही वह अर्जी पर स्वीकृत सूचक हस्ताक्षर कर दे। योजनानुसार कार्य हो गया। खुशहाल खान को एक लाख रुपये मिल गये और औरंगजेब का मनोरथ सिध्द हो गया। मुर्शिद कुली खान दक्षिण चला गया। शाहजहां मूर्ख बना और दारा के दुर्भाग्य का सूत्रपात हो गया। कुछ समय पश्चात् शाहजहां को षड़यंत्र का ज्ञान हो गया और खुशहाल खान को पदच्युत कर दिया गया।”
पं. विजय शंकर मिश्रा जी इस रोचक घटना से यहां केवल संगीत की चमत्कारिक शक्ति को ही सिध्द करना चाहते हैं। इस्लाम के विद्वान ना होने के कारण मासूमियत से उन्होंने इस घटना से औरंगजेब की फितरत का विभाजन कर दिया।
(इस लेख का आधार पंडित विजयशंकर मिश्र की पुस्तक ‘ संगीत के इंद्रधनुषी शिलालेख’ है)
– अरुण लवानिया

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