नये कानूनों को प्रैक्टिस मे ंतो आने दीजिये देश की तस्वीर बदल देंगे नये कानून ?
आचार्य विष्णु श्रीहरि
प्रत्याशित तीन नये कानून लागू हो गये। ये तीन नये कानून हैं पहला भारतीय दंड न्याय संहिता, दूसरा भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और तीसरा भारतीय साक्ष्य संहिता है। ये तीनों कानूनों को पिछले साल ही संसद ने पास किये गये थे। इन कानूनों को लागू करने के साथ ही साथ भारत सरकार के सामने नयी प्राथमिकताएं और नयी चुनौतियां भी खडी हुई है। भारत सरकार का दावा यह है कि नये कानूनों से देश की न्याय तस्वीरें पूरी तरह से बदल जायेगी, अपराधियों को सजा दिलाने में आसानी होगी, दोषी लचर और साक्ष्यविहीन जांच का लाभ नहीं उठा सकेंगे और कोई निर्दोष सजा काटने के लिए बाध्य नहीं होगा। नये कानूनों के सुविधा जनक होने का भी दावा किया गया है। स्मार्ट पुलिस, स्मार्ट थाने, स्मार्ट जज, स्मार्ट कोर्ट रूम की कितनी उम्मीद है, मुन्ना भाई एललएबी के दिन लदेंगे, पीड़ित पक्ष को न्याय मिलेगा, निर्दोष सजा से बचेगा?
नये कानूनों को लेकर पक्ष भी है और विपक्ष भी है। विरोध में कांग्रेस बौखलायी हुई है और नये कानूनों को वापस लेने या फिर से संसद में बहस कराने की मांग की है। कुछ विरोधी तत्व सुप्रीम कोर्ट तक दौड लगाये हैं और नये कानूनों को रोकने की मांग की है। हर नये कदमों और नीतियों का विरोध करना हमारे देश में एक फैशन बन गया है। गुण-दोष की भी कल्पना करना थोडी जल्दबाजी होगी। कोई भी कानून जब अस्तित्व में आता है तो उसको लेकर बहुत सी आशंकाएं होती ही है और उसको लेकर डर भी होता है। खासकर दुरूपयोग को लेकर चिंताएं होती हैं। हमारे देश में जो भी कानून बनते हैं उसका तोड निकालने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ा नहीं जाता है। फिर भी चाकचैबंद और प्रभावकारी कानून और नीतियां जनता को कुछ न कुछ राहत तो देती हैं ही। इसलिए यह कहना गलत होगा कि नये कानूनों को लेकर आशंकाओं को मानकर इसके लागू होने से रोक दिया जाना चाहिए या फिर नये कानूनों को वापस ले लिया जाना चाहिए। नये कानूनो के क्रांतिकारी और परिवर्तनकारी पक्ष का गंभीरता के साथ पड़ताल करने की जरूरत है, सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि नये कानूनों का स्वागत किया जाना चाहिए, आम जनता में नये कानूनों के प्रति जनजागरूकता उत्पन्न करने की जरूरत है।
नये कानूनों की प्रमुख विश्ेषताएं क्या-क्या हैं? कैसे ये कानून भारत की तस्वीर बदल देंगे? केैसे ये कानून अपराधियों की गर्दन मरोड़ कर ही दम लेगे? कैसे ये कानून निर्दोष लोगों को न्याय दिलायेंगे? कैसे ये कानून सभी लोगों को एक जिम्मेदार नागरिक बनने और कर्तव्य का पालन करने के लिए प्रेरित करेंगे? ये कानून क्या सही में स्मार्ट पुलिस के सपने को सच करेंगे? क्या ये कानून स्मार्ट वकील की फौज खडी करेंगे? क्या ये कानून अवैध और चोरी की डिग्री वाले वकीलों की जमात को भी स्मार्ट बनने के लिए बाध्य करेंगे? फिर जजों के स्मार्ट होने की भी कितनी उम्मीद है? न्यायालयों में लंबित करोड़ों मुकदमों को कम करने में ये कानून सहायक होंगे क्या?अभी तक मुन्ना भाई एलएलबी और खूंखार, रिश्वतखोर और अमानवीय पुलिस की करतूतें जनता झेलती रही है। न्याय तक पहुंच दूर रखने और न्याय का गला घोटने के लिए ही मुकदमें लंबित रखे जाते हैं, पुलिस जांच अधूरी रहती है, पक्षपाती रहती है और अपराधियों, बईमानों व रिश्वतखोरों के पक्ष में खडी रहती है। मोदी सरकार की मंथा इन्ही दुश्वारियों को दूर करने की है।
तकनीकी आधारित हंैं ये कानून। इस आधुनिक युग में तकनीकी का उपयोग हर क्षेत्र में लाभकारी है और आवश्यक भी है। इन कानूनों का आधार भी तकनीकी की सर्वश्रेष्ठता है। आधुनिक तकनीकी को अपनाना अनिवार्य कर दिया गया है। पुलिस, न्यायधीश, पीड़ित और आरोपी यानी सभी को तकनीकी से जोड़ दिया गया गया है, इतना ही नहीं बल्कि उनके लिए तकनीकी को अपनाना अनिवार्य कर दिया गया है। तकनीकी का विभिन्न रूप हैं जिसका इस्तेमाल किया जाना है। तकनीकी के रूप जैसे ईमेल, स्मार्ट फोन, लेपटाॅस, एसएमएस, वेबसाइट, लोकेशन वेब, डिवाइस पर उपलब्ध ईमेल और मैसेजेज को कानूनी मान्यताएं दी गयी हैं। आधुनिक तकनीकी के इस स्मार्ट रूटों पर साक्ष्य और गवाही सहित एफआईआर की व्यवस्थाएं हुई हैं। न्यायालय की कार्रवाई का भी डिजिटलाइजेशन किया जायेगा। न्यायालयों के डिजिटाइजेशन होने के बाद मुकदमों की सुनवाई में तेजी आने के साथ ही साथ, वीडीओ काॅन्फ्रेसिंग की अनिवार्यता होने के कारण पीड़ित को भी न्यायालयों को दौड़ लगाने और चक्कर काटने से राहत मिलेगा।
पुलिस जांच का ढरा बदलने वाला है। पुलिस की पुरानी मानसिकता का संहार होने वाला है। पुलिस पैसे लेने और अपराधियों को मदद करने के लिए जांच को लंबित रखने और उस पर लीपापोती करती थी। लेकिन अब पुलिस को न केवल स्मार्ट होने की अनिवार्यता के बोझ को उठाना पडेगा बल्कि डिजिटाइजेशन की मजबूरी से भी गुजरना होगा। पुलिस जांच में फोरेसिंक जांच भी अनिवार्य कर दिया गया है। गंभीर मुकदमों में फोरेसिंग जांच को अनिवार्य कर दिया गया है। फोरेंसिक जांच जब होगी तब साक्ष्य को मिटाने और साक्ष्य को कमजोर करने की घटनाओं पर लगाम लगेगा। फोरेंसिंक जांच में कई अनसुलझे और पेंचीदा मुकदमों का हल भी संभव है। बडी सुरक्षा एजेंसियां फाॅरेसिंक जांच को ज्यादा प्रयोग करती हैं। सीबीआई, एनआई और ईडी ने फोरेसिंक जांच के माध्यम से बडे-बडे अपराधियों और हिंसकों तथा आतंकवादियों की गर्दन नापी है। अब पुलिस भी गंभीर और पेंचींदा मुकदमों में फोरेंसिंक जांच का इस्तेमाल करेगी।
कई क्षेत्रों में पुलिस की ज्यादतियां और उदासीनता पर रोक लगाने का प्रावधान किया गया है। एफआईआर के क्षेत्र में पुलिस अब मनमानी नहीं कर सकेगी। एफआईआर को आॅनलाइन कर दिया गया। एफआईआर पर क्षेत्र की लक्ष्मण रेखा को समाप्त कर दिया गया है। अब कहीं से भी और किसी भी थाने में एफआईआर दर्ज करा सकते हैं। इसे जीरो एफआईआर का नाम दिया गया है। जीरो एफआईआर को पन्द्रह दिन के अंदर संबंधित थाने में भेजना होगा और संबंधित थाना एक सप्ताह के अंदर उस पर फैसला पीड़ित पक्ष को सुनायेगा, उस पर क्या एक्शन होगा वह भी डिजिटल डिवाईस पर बतायेगा। 90 दिनों के अंदर आरोप पत्र दाखिल करना होगा, अधिकतम 180 दिनों में कोई भी जांच पूरी करनी होगी। पुलिस द्वारा जांच रिपोर्ट समिट करने के बाद अधिकतर 60 दिनों के अंदर कोटै को संबंधित पक्षों को नोटिस देना होगा और बहस समाप्त होने के 30 दिन के बाद फैसला सुनना अनिवार्य होगा।
यौण अपराधों और सरकार की मनमानी पर भी विश्ेाष ध्यान दिया गया है। यौन अपराधों में पीड़िता के बयान को प्रमुखता दिया गया है। इसके अलावा कोई भी सरकार अब मनमाने ढंग से कोई भी मुकदमा वापस नहीं ले सकेगी। इस क्षेत्र में सरकारें मनमाना करती रही है। अपने नजदीकियों और अपनी पार्टी से संबंधित मुकदमों को वापस ले लेती है। इस तरह के मुकदमों में लाभकरी राजनीतिज्ञ ज्यादा होते हैं, पैसे वाले भी लाभकारी हो जाते हैं। अब नये कानूनों के लागू होने से राजनीतिज्ञों और पैसे वालों सहित अन्य को भी राहत का लाभ लेने में कठिनायी आयेगी। क्योंकि पीड़ित पक्ष का जवाब सुने बिना कोई भी सरकार मुकदमा वापस नहीं ले सकती है। मुकदमा वापस लेने में सरकार तभी सफल हो सकती है जब पीड़ित पक्ष भी रजामंद होगा।
नये कानूनों को पूरी तरह से लागू करने के क्षेत्र में चुनौतियां क्या-क्या हैं। चुनौतियां तो बहुत ही खतरनाक है और खर्जीली भी है। सबसे बडी चुनौती तो पुलिस की दक्षता और फिटनेश की है। पुलिस अभी भी पुरानी ढरे की है, तोद बढाने की संस्कृति से मुक्त नहीं है। प्रशिक्षण के बाद भी पुलिस स्मार्ट होगी, यह कहना मुश्किल है। पुलिस में नये स्मार्ट युवाओं की जरूरत होगी। इसके साथ ही साथ कोर्ट में जज भी पुलिस की तरह दक्ष नहीं है, उनमें डिजिटाइजनेश से उपन्न कर्तव्य को लेकर बहुत ज्यादा चिंता और दक्षता नहीं होगी। क्योंकि कोर्ट का स्टाप और जज भी डिजिटाइजेशन की कसौटी पर रौ मेटेरियल ही माने जायेंगे। निचली अदालतों के सामने कठिनाइयां बहुत ही ज्यादा है।
भारत सरकार ने 2027 तक देश के न्यायालयों का कम्युटरराइजेशन करने का लक्ष्य रखा है। कहने का अर्थ यह है कि 2027 के पहले नये कानूनो का समुचित लाभ मिलिने की उम्मीद नहीं है। जब देश के न्यायालयों और पुलिस थाने पूर्णरूप से कम्युटरराइजेशन हो जायेंगे तब आम जनता को नये कानूनो को समुचित लाभ मिलने लगेगा। फोरेसिंक विशेषज्ञ तैयार करने के लिए फोरेसिंक विश्वविद्यालय खोलने का प्रावधान है। फोरेसिंक विश्वविद्यालय का लक्ष्य कठिन है और फोरेसिंक विशेषज्ञ निकलने का इंतजार भी हमें करना होगा।
निसंदेह नये कानूनों में कुछ न कुछ कमियां होगी और नये कानूनों का तोड भी बदनाम पुलिस और अपराधी निकाल सकते हैं। जब नये कानून जैसे जैसे प्रैक्टिस में आना शुरू करेंगे वैसे नये कानूनों की खामियां भी सामने आयेगी। अगर कमियां सामने आयेगी तो उसे दूर करने का कर्तव्य भी भारत सरकार का है। अगर भारत सरकार कमियांें को दूर करते चलेगी तो निश्चित तौर पर ये कानून न केवल मील के पत्थर साबित होगे बल्कि देश की तस्वीर ही बदल जायेगी, अपराध, रिश्वतखोरी तक में कमी आयेगी।
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