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संपादकीय

मॉरीशस की “कश्मीर समस्या” और भारत का दृष्टिकोण

अंग्रेजों का यह इतिहास रहा है कि उन्होंने अपनी कुटिलता का प्रयोग करते हुए अपने प्रत्येक उपनिवेश को छोड़ते समय या तो उसका विभाजन किया या उसमें ऐसी कोई स्थानीय समस्या खड़ी की, जो उस देश के लिए आज तक जी का जंजाल बनी हुई है। भारत छोड़ते समय अंग्रेजों ने न केवल भारत का विभाजन कराया अपितु कश्मीर समस्या को भी उन्होंने जन्म देकर भारत के लिए एक स्थाई सिर दर्द के रूप में छोड़ दिया। इसी प्रकार अमेरिका को छोड़ते समय उन्होंने उसको काटकर कनाडा बनाया । अब एक ऐसा ही विवाद मॉरीशस के बारे में अंतरराष्ट्रीय मंचों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर रहा है। इस विवाद को भी अंग्रेजों ने ही जन्म दिया और एक स्थाई सिरदर्द के रूप में मॉरीशस के लोगों के लिए उसे छोड़कर अपनी कुटिलतायुक्त नीतियों का परिचय दिया। अंग्रेजों ने मॉरीशस को आजाद करते समय हिंद महासागर में स्थित चागोस दीप समूह को उसे देने से इनकार कर दिया था। बात स्पष्ट थी कि अंग्रेजों ने इस दीप समूह को अपने पास रखकर एक प्रकार से मॉरीशस का विभाजन ही कर दिया था। बाद में उसने अत्यंत कुटिलता का प्रदर्शन करते हुए इस द्वीप समूह को अमेरिका को दे दिया। अमेरिका ने हिंद महासागर में स्थित इस द्वीप समूह का अपने सैनिक हितों की दृष्टि से उपयोग करना आरंभ किया।
भारत के विदेश मंत्री एस0 जयशंकर ने अभी हाल ही में मॉरीशस की अपनी दो दिवसीय यात्रा संपन्न की है। विदेश मंत्री एस0 जयशंकर ने अपनी यात्रा के दौरान हिंद महासागर में चागोस द्वीप समूह के मुद्दे पर द्वीपीय देश मॉरीशस को भारत के समर्थन की आत्मिक पुष्टि की है। हिंद महासागर में स्थित मॉरीशस भारत का ‘ पार्ट ऑफ हार्ट ‘ है। जिसे भारत की वर्तमान मोदी सरकार इसी दृष्टिकोण से देखती है। मॉरीशस के लोग भी भारत के प्रति अपनी पूरी निष्ठा बनाए हुए हैं। ऐसे में भारत का यह दायित्व भी बनता है कि वह मॉरीशस के लोगों की भलाई और उनकी राष्ट्रीय एकता एवं अखंडता को बनाए रखने के दृष्टिकोण से अपना हर संभव सहयोग उन्हें प्रदान करता रहे। हमारे विदेश मंत्री एस0 जयशंकर बहुत ही सरल किंतु अति स्पष्टवादी नेता हैं।
भारत के राष्ट्रीय हितों के मुद्दे पर वह अनेक बार अपनी स्पष्टवादिता का परिचय दे चुके हैं। वह किसी भी मुद्दे पर अपनी बेबाक और दो टूक राय रखने से किसी भी ताकत के सामने हिचकते नहीं हैं। यही कारण है कि प्रधानमंत्री श्री मोदी ने उन्हें अपने तीसरे कार्यकाल में दूसरी बार निरंतर विदेश मंत्री के पद पर नियुक्ति दी है।
ज्ञात रहे कि चागोस द्वीप समूह पिछले 50 से अधिक वर्षों से लंदन और पोर्ट लुइस के बीच विवाद का अहम कारण बना हुआ है। इसे लेकर भारत के विदेश मंत्री श्री जयशंकर ने मॉरीशस की राजधानी पोर्ट लुईस में भारत की आधिकारिक राय रखते हुए कहा कि भारत मॉरीशस की प्रगति और समृद्धि की दिशा में “निरंतर और सतत” समर्थन की पुष्टि करता है। बात स्पष्ट है कि यदि कोई बाहरी शक्ति मॉरीशस के विकास और समृद्धि में किसी प्रकार की बाधा पहुंचाती है तो भारत उस का विरोध करेगा और अपने आत्मीय मित्र मॉरीशस के उत्थान एवं समृद्धि में किसी प्रकार की कोई कमी नहीं छोड़ेगा। मॉरीशस की क्षेत्रीय एकता और अखंडता पर जिस प्रकार कुछ अंतरराष्ट्रीय शक्तियां अपने षड़यंत्र रचती रहती हैं , उन पर भी भारत के विदेश मंत्री ने भारत के मत की पुष्टि करते हुए कहा कि चागोस के मुद्दे पर भारत राष्ट्रों की अखंडता और उपनिवेशवाद के उम्मूलन के संदर्भ में निरन्तर मॉरीशस को अपना हर प्रकार का सहयोग और समर्थन जारी रखेगा। भारत की मान्यता रही है कि ब्रिटेन द्वारा मॉरीशस के क्षेत्र चागोस दीप समूह पर जिस प्रकार कब्जा किया गया है, वह अनैतिक है और अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन करने वाला है। इस प्रकार की गतिविधियों और कार्यवाहियों को 21वीं सदी में भी यदि संसार के अन्य देश मौन होकर देखते हैं तो इससे बड़े दुर्भाग्य की कोई बात और नहीं हो सकती। विशेष रूप से आज जब संयुक्त राष्ट्र जैसी वैश्विक संस्थाएं हैं और उनका उद्देश्य भी केवल यही है कि कोई भी देश किसी दूसरे देश की क्षेत्रीय एकता और अखंडता को तार-तार करने की गतिविधियों में संलिप्त ना रहे, तब भी ऐसी गतिविधियों का होना बहुत ही निराशाजनक है. निश्चित रूप से इस प्रकार की अनैतिक और अवैधानिक गतिविधियों से संयुक्त राष्ट्र के अस्तित्व पर ही पर प्रश्नचिह्न लग जाता है।
भारत के विदेश मंत्री श्री एस0 जयशंकर द्वारा भारत के सकारात्मक और सहयोगी मत की पुष्टि करने से मॉरीशस के लोगों में भी उत्साहजनक प्रतिक्रिया देखने को मिली। उन्हें इस बात पर हार्दिक प्रसन्नता और संतोष की अनुभूति हुई कि भारत उनकी क्षेत्रीय एकता और अखंडता के प्रति गंभीर है।
श्री जयशंकर ने भारत के सहयोगी और सकारात्मक दृष्टिकोण की पुष्टि करते हुए मॉरीशस के प्रधानमंत्री प्रविंद कुमार जगन्नाथ के साथ एक कार्यक्रम में बोलते हुए स्पष्ट किया कि, “प्रधानमंत्री जी, जैसा कि हम अपने गहरे और स्थायी संबंधों को देखते हैं, मैं आज आपको फिर से आश्वस्त करना चाहूंगा कि चागोस के मुद्दे पर भारत उपनिवेशवाद के उन्मूलन और राष्ट्रों की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के लिए अपने मुख्य रुख के अनुरूप मॉरीशस को अपना निरंतर समर्थन जारी
रखेगा।”
हमें ध्यान रखना चाहिए की चागोस द्वीप समूह लगभग 60 छोटे-छोटे द्वीपों से मिलकर बना है। जो करीब ढाई लाख वर्ग मील क्षेत्र में फैला हुआ है। मूल रूप से मॉरीशस का ही एक भाग होने के उपरांत भी उपनिवेशवादी व्यवस्था में विश्वास रखने वाले लोकतंत्र के कथित अलंबरदार ब्रिटेन ने इस समुद्री भूभाग पर आज भी अपना कब्जा किया हुआ है। इसे मॉरीशस के लोग अपनी क्षेत्रीय एकता और अखंडता में ब्रिटेन का अनुचित हस्तक्षेप मानते हैं। जब ब्रिटेन ने मॉरीशस को स्वतंत्रता प्रदान की तो उसके कुछ समय पूर्व 1967 में ही उसने इस द्वीप समूह को संयुक्त राज्य अमेरिका को सैनिक अड्डे के लिए किराए पर दे दिया था। तब से लेकर ही यह विवादग्रस्त क्षेत्र बना हुआ है। दिएगोगार्सिया इस द्वीप समूह का एक महत्वपूर्ण द्वीप है। इस पर अमेरिका ने अपना अपने सैनिक अड्डे का बेस स्टेशन बनाया है। वैश्विक शांति की पैरोकारी करने वाले ब्रिटेन और अमेरिका यदि आज भी छोटे देशों के प्रति अपनी इस प्रकार की क्षेत्रीय भूभाग हड़प करने की नीति पर काम कर रहे हैं तो इससे कभी भी विश्व शांति स्थापित नहीं हो सकती। यही कारण है कि भारत संयुक्त राष्ट्र प्रस्तावों के अनुरूप संसार के प्रत्येक क्षेत्र से उपनिवेशवादी व्यवस्था के प्रत्येक प्रतीक को मिटाने के लिए कृत संकल्प है । जहां तक मॉरीशस की बात है तो मॉरिशस को भारत पहले से ही अपने लिए अत्यंत महत्वपूर्ण और बहुत ही अधिक विश्वसनीय साथी मानता आ रहा है। जिसकी क्षेत्रीय एकता और अखंडता को भारत कभी भी मिटने नहीं देगा।
जिस प्रकार भारत ने 1947 में मजबूरी में अपने देश का विभाजन स्वीकार कर लिया था, उसी प्रकार 12 मार्च 1968 को अपनी आजादी के समय मॉरीशस के महान नेता सर शिव सागर रामगुलाम ने भी ब्रिटेन के अड़ियल दृष्टिकोण को तात्कालिक आधार पर स्वीकार कर लिया था। अपने देश की आंतरिक व्यवस्थाओं को सुव्यवस्थित कर सर शिव सागर रामगुलाम ने अपने देश के लिए ‘ कश्मीर समस्या ‘ बन गई चागोस समस्या पर 1980 में संयुक्त राष्ट्र में चागोस द्वीप समूह को ब्रिटेन के चंगुल से मुक्त कराने की बात स्पष्ट रूप से उठाई थी। अब भारत के विदेश मंत्री ने अपनी मॉरीशस यात्रा के दौरान मॉरीशस के दावे पर अपने मत की मोहर लगाते हुए सर शिव सागर रामगुलाम जी को विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित की है। आशा करनी चाहिए कि संयुक्त राष्ट्र इस विषय पर अपनी गंभीरता दिखाते हुए कोई ठोस निर्णय लेगा।

डॉ राकेश कुमार आर्य

( लेखक सुप्रसिद्ध इतिहासकार और भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता हैं )

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