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पतित पावनी सरयू की महिमा

आचार्य डॉ राधे श्याम द्विवेदी

भारतीय सनातन परम्परा में सप्त नगरियों का यह श्लोक विश्व विश्रुत है। इस श्लोक से इन नगरों का महत्व और स्पष्ट हो जाता है।

अयोध्या मथुरा माया काशी कांची अवंतिका।

पुरी द्वारावती चैव सप्तैता मोक्ष दायिकाः॥

ये सात शहर अलग-अलग देवी-देवताओं से संबंधित हैं। अयोध्या श्रीराम से संबंधित है। मथुरा और द्वारिका का संबंध श्रीकृष्ण से है। वाराणसी और उज्जैन शिवजी के तीर्थ हैं। हरिद्वार विष्णुजी और कांचीपुरम माता पार्वती से संबंधित है। रामायण में बताया गया है कि अयोध्या राजा मनु द्वारा बसाई गई थी। यह नगर सरयू नदी के किनारे बसा हुआ है। यहां आज भी हिन्दू, बौद्ध, इस्लाम, जैन धर्म से जुड़ी निशानियां दिखाई देती हैं। अयोध्या की महत्ता के बारे में पूर्वी उत्तर प्रदेश के जन साधारण में निम्न कहावतें प्रचलित हैं-

गंगा बड़ी गोदावरी तीरथ बड़ो प्रयाग,

सबसे बड़ी अयोध्या नगरी

जहँ राम लियो अवतार।

अयोध्या की सांस्कृतिक सीमा के 84 कोस की परिधि को सरयू मुख्य नदी रूप में अभिसिंचित करती ही है। साथ ही सरयू की अनेक सहायक नदियां जैसे वाशिष्ठी(,गोमती), घर्घर घाघरा महानद , सरयू, कुटिला मनोरमा,तमसा छोटी सरजू,वेदश्रुति बिसुही नदी,तिलोदकी गंगा’ तिलैया, कल्याणी, राम रेखा शारदा, सेती, बबई, अचिरावती /राप्ती,इरावती,छोटी गंडक और झरही आदि डेढ़ दर्जन अस्तित्व वाली और कुछ लुप्तप्राय नदियां भी इस भूभाग में अपनी खुशबू और शीतलता से आह्लादित और पाप शमन का काम करती रहती है।

पतित पावनी सरयू नदी :-

सरयू नदी का उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है और रामायण के अनुसार सरयू नदी अयोध्या शहर के पास बहती है । भगवान विष्णु के सातवें अवतार भगवान राम का जन्म अयोध्या में हुआ था। यह माना जाता है कि यह पवित्र नदी शहर की अशुद्धियों और पापों को धोती है। पुराणों में वर्णित है कि सरयू नदी से भगवान विष्णु के उत्सव प्रकट होते हैं। आनंद रामायण में उल्लेख है कि प्राचीन काल में शंखासुर दैत्य / मधु कैटभ ने वेद को चुराकर समुद्र में डाल दिया था । तब भगवान विष्णु ने मत्स्य रूप में धारण कर दैत्य का वध किया था और ब्रह्मा को वेदों में अपना वास्तविक स्वरूप धारण कराया था। उस समय हर्ष के कारण भगवान विष्णु की आंखों से प्रेमाश्रु टपक पड़े थे। ब्रह्मा ने उस प्रेमाश्रु को मानसरोवर में डाल कर उसे सुरक्षित कर लिया। इस जल को महापराक्रमी वैवस्वत महाराज ने मानसरोवर से बाहर तक बाण के प्रभाव से प्रकट किया। यह भी उल्लेख मिलता है कि ऋषि वशिष्ठ की तपस्या से सरयू का प्रादुर्भाव हुआ है। जिस प्रकार गंगा नदी को भगीरथ धरती पर लाए थे। उसी प्रकार सरयू नदी को भी धरती पर लाया गया था।राजा मनु के पुत्र इक्ष्वाकु हुए जिन्होंने अपने गुरु वशिष्ठ से अयोध्या में सरोवर निर्माण की बात कही। जिसके बाद वशिष्ठ ऋषि ने अपने पिता ब्रम्हा से सरयू के अवतरण की प्रार्थना किया था ।ब्रम्हा जी ने अपने कमंडल से ही सरयू का अवतरण कराया। इस प्रकार भगवान विष्णु की मानस पुत्री सरयू नदी को धरती पर लाने का श्रेय ब्रह्मर्षि वशिष्ठ को ही जाता है । सरयू नदी का नाम सुनते ही मन राम की नगरी में अनायास ही पहुंच जाता है।

जन्मभूमि मम पुरी सुहावनि,

उत्तर दिसि बह सरजू पावनि।

नेपाल से डोरीगंज (बलिया) तक कुल सरयू की लंबाई- 1080 किमी है। इनमे यह नेपाल में 507 किमी व भारत में 573 किमी तक विस्तारित है। इसकी लंबाई बस्ती में 80 किमी, गोरखपुर में 77 किमी है।

भौगोलिक दृष्टि से देखा जाए तो सरयू नदी वास्तव में शारदा नदी की ही एक सहायक नदी है। यह नदी उत्तराखंड में शारदा नदी से अलग होकर उत्तर प्रदेश की भूमि के माध्यम से अपना प्रवाह जारी रखती है। यह गंगा नदी की सात सहायक नदियों में से एक है और इतनी पवित्र मानी जाती है कि यह मानव जाति की पापों को धो देती है। कवि राम धारी सिंह दिनकर ने कहा है –

वह मृतकों को मात्र पार उतारती,

यह जीवितों को यहीं से तारती।

शिव और पार्वती मां भी इसे लाने का प्रयास किए :-

स्कंद पुराण में वर्णित कथा अनुसार एक समय मार्कंडेय नाम के ऋषि नील पर्वत पर तपस्या कर रहे थे और ब्रह्मर्षि वशिष्ठ देवलोक से विष्णु की मानस पुत्री सरयू को लेकर आ रहे थे। लेकिन तपस्या में लीन मार्कंडेय ऋषि के कारण सरयू नदी को आगे बढ़ने का रास्ता नहीं मिल रहा था। इस पर ब्रह्माजी और ब्रह्मर्षि वशिष्ठ ने शिवजी को अपनी व्यथा सुनाई और संकट को दूर करने का निवेदन किया। इस पर आदिदेव महादेव ने तब बाघ का रूप धारण किया और माता पार्वती ने गाय का रूप धारण किया। मां पार्वती गाय के रूप में पास ही घास चरने लगीं। तभी वहां बाघ के रूप में पहुंचे महादेव ने गर्जना की, भयंकर दहाड़ सुनकर गाय डर के कारण जोर-जोर से रंभाने लगी। इससे मार्कंडेय ऋषि की समाधि भंग हो गई। जैसे ही मार्कंडेय ऋषि गाय को बचाने को दौड़े तो सरयू नदी आगे बढ़ने का रास्ता मिल गया। भगवान शिव ने जिस स्थान पर शेर का रूप धारण किया था। बाद में उस स्थान का नाम व्याघ्रेश्वर तथा बागेश्वर पड़ा और यहां भगवान शिव के बागनाथ मंदिर की स्थापना की गई।

    अयोध्या में स्थित सरयू जी में स्नान करने से कलिकाल के समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं अब क्यूं अयोध्या में ही सरयू स्नान से पाप नष्ट हो जाते हैं इसका उत्तर है । अयोध्या अपने आप में पूर्ण ब्रम्ह है और सगुण रूप श्री सरयू जी हैं । यह मृत्यु लोक में नही है अयोध्या भगवान् विष्णु के चक्र पे बसी है ।

अयोध्या च पूर्ण ब्रम्ह सरयू सगुणन पुमान तन्नि बासी जगन्नाथम सत्यं सत्यं बदम्यहम।

अयोध्या में रहने वाले भगवान् विष्णु के तुल्य हैं । चुकी अयोध्या ब्रम्ह स्वरुप होने के कारण इनको ब्रम्ह स्वरूपिणी कहा गया । सरयू का तात्पर्य स से सीता रा से राम जू इसलिए सीता राम जू द्रव रूप में होके भक्त के भावों से इस जल को सीता राम जू का सगुण रूप माना गया है । जैसा की कहा गया है –

सरयू सगुणन पुमान

इसलिए धर्मावलम्बी सरयू जल से कुल्ला नही करते. सरयू जल से कुल्ला करने वालों की गति नही होती । भगवान् श्री राम जी का श्री मुख बचन है ।

जन्मभूमि मम पूरी सुहावनि,

उत्तर दिशि सरयू बह पावनि।

यह शब्द भी स्पस्ट करता है की सरयू माता का महात्म्य अयोध्या में सही स्थित सरयू से सम्बन्ध रखता है । आगे भगवान् राम फिर कहते हैं कि यहाँ स्नान करने वाले मेरा सायुज्य पाते हैं।

जा मज्जन ते विनाहि प्रयाशा

मम समीप नर पावहि वासा।

श्री अयोध्या में स्थित सरयू मैया में स्नान करने से भगवान् श्री राम के समीप रहने का अधिकारी हो जाता है । इसीलिए श्री गोस्वामी तुलसी दास जी श्री अयोध्या और सरयू मैया का अलग अलग बर्णन नही किये । एक ही चौपाई में अयोध्या और सरयू के महात्म्य का वर्णन किया जैसा की मानस में मिलता है ।

बंदउ अवध पूरी अति पावनि,

सरयू सरिकलि कलुष नसावहि।

तात्पर्य कि अयोध्या में ही स्थित सरयू कलिकाल के पाप को नष्ट करने वाली हैं । इनके महात्म्य के विषय में अन्यान्य ग्रंथों में जो मिलता है उस महात्म्य को बताने की प्रयास कर रहा हूँ ।

मन्वन्तर सहस्त्रेस्तु काशी वासेशु जद फलं

तत फलं समवाप्नोति सरयू दर्शने कृते।

चारो युग जब 71 बार बीत जाता है तब एक मन्वंतर होता है इस प्रकार एक हजार मन्वंतर काशी में वास कीजिये गंगा में स्नान करके विश्वनाथ में जल चढाते हुए 1000 मन्वंतर में जो फल आपको प्राप्त होगा वह अयोध्या में सरयू मैया के दर्शन मात्र से प्राप्त हो जाता है ।

मथुरायाम कल्प मेकं बसते मानवो यदि

तत फलं समवाप्नोति सरयू दर्शने कृते।

मथुरा में 1 कल्प यानी 4 अरब बत्तीस करोड़ मनुष्य के दिन से जब बीत जाता है तब एक कल्प होता है । 1 कल्प मथुरा में वास करने से जो फल प्राप्त होता है वह फल अयोध्या में सरयू मैया के दर्शन मात्र से प्राप्त हो जाता है ।

भगवान राम ने लक्ष्मण को सरयू नदी के महत्व से अवगत कराया था।सरयू नदी में स्नान के महत्व का वर्णन तुलसीदास कृत रामचरितमानस में है। भगवान राम ने लक्ष्मण को सरयू नदी की पावनता के बारे में बताते हुए कहा था कि सरयू नदी इतनी पावन है कि सभी तीर्थ दर्शन और स्नान के लिए आते है। सरयू नदी में स्नान करने मात्र से सभी तीर्थों में दर्शन करने का पुण्य मिल जाता है। ऐसी मान्यता है कि जो व्यक्ति सरयू नदी में ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करता है उसे सभी तीर्थों के दर्शन करने का फल मिल जाता है। यह है अयोध्या में सरयू मैया का महात्म्य तुलसी दास जी ने भी लिखा है-

कोटि कल्प काशी बसे मथुरा कल्प हजार।

एक निमिष सरयू बसे तुले न तुलसी दास।।

तुलसीदास जी को उपरोक्त प्रमाण कम लगा इसलिए इन्होने अपने ग्रन्थ में सरयू महात्म्य को और भी विस्तृत रूप से बर्णन किया है ।

कालिदास के काव्य रघुवंश में राम सरयू नदी को जननी के समान ही मानते थे।

लेखक परिचय:-

(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, आगरा मंडल ,आगरा में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए समसामयिक विषयों,साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं। )

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