100 वर्षों के पापों का हुआ प्रक्षालन
5 अगस्त को 5 मूर्खताओं के 5 स्मारक 5 घण्टे में हुए ध्वस्त , लगी 5 को चपत
जम्मू कश्मीर से धारा 370 और 35a को हटाने के लिए केंद्र की मोदी सरकार का जितना अभिनंदन किया जाए उतना कम है । इस एक निर्णय से पिछले 100 वर्षों के पापों का प्रक्षालन करने में हम सफल हुए हैं । पिछले 100 वर्ष से नेताओं की मूर्खताओं के स्मारकों पर फूल चढ़ाते – चढ़ाते हर राष्ट्रवादी थक चुका था और उसकी एक ही इच्छा थी कि इन स्मारकों को यथाशीघ्र ध्वस्त कर दिया जाए । अंततः 5 अगस्त 2019 इतिहास के पृष्ठों पर स्वर्णिम शब्दों में अंकित हुआ , जब वह घड़ी आई कि हमारे नेताओं की मूर्खताओं के वे सारे स्मारक ध्वस्त हो गए जिन पर हमसे बलात पुष्प अर्पित करवाए जा रहे थे । आपको याद होगा 1919 में का वह द्वैध शासन वाला भारत सरकार अधिनियम जिससे भारत में द्वैध शासन की स्थापना की गई और प्रांतों को कुछ अधिक अधिकार देकर हमारे केंद्र को कमजोर करने का प्रयास ब्रिटिश सरकार की ओर से किया गया । यह पहला स्मारक था ।
1935 का भारत सरकार अधिनियम 5 अगस्त को ही अस्तित्व में आया था । उसमें यद्यपि द्वैध शासन का अंत कर दिया गया था , परंतु इसके उपरांत भी हमारी देसी रियासतों को और अधिक स्वायत्त बनाने के लिए उन्हें चुपचाप कुछ ऐसी घुट्टी देने का प्रयास किया गया था जिससे वह केंद्र के विरुद्ध आवाज उठाने में सक्षम हो और भारत एक कमजोर राष्ट्र के रूप में स्थापित हो ।
यह दूसरा स्मारक था ।
हमारी तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने 1947 का भारत स्वतंत्रता अधिनियम जब पारित किया तो उसमें भी राज्यों को पाकिस्तान या भारत के साथ जाने के लिए खुली छूट दी गई । इतना ही नहीं यदि कोई रियासत अपने आप को अलग देश के रूप में भी स्थापित करना चाहे तो उसके लिए भी उसे स्वतंत्रता प्रदान की गई । यह तीसरा स्मारक था।
उसके पश्चात भारतीय संविधान में 1949 में धारा 370 का प्रावधान कर कश्मीर को भारत से अलग रखने का घिनौना षड्यंत्र किया गया । जब यह प्रयास किया गया तो इसमें 1919 , 1935 और 1947 की मूर्खताओं को चुपचाप स्वीकार कर अपने संविधान में उन्हें समादृत कर समाविष्ट करने की मूर्खता की गई । कहने के लिए तो पहले सारे स्मारक ध्वस्त हो गए थे परंतु सच्चाई यह थी कि नए स्मारक अर्थात भारतीय संविधान में पहले स्मारकों के अवशेषों को ही देवता बना कर मूर्ति के रूप में रख लिया गया था और हम से कह दिया गया किसकी पूजा करते रहो । यह चौथा स्मारक था ।
देश के मंदिर के पुजारी का काम एक ऐसा व्यक्ति कर रहा था जो अपने मूल रूप में मुस्लिम था , पर देश का पहला प्रधानमंत्री बनने में वह सफल हो गया था , उसके दोगले चरित्र ने 1954 में फिर एक मूर्खता की ,जब 27 मई को तत्कालीन सरकार ने 35a धारा को चुपचाप संविधान में समाविष्ट कर दिया । यह पांचवा स्मारक था ।
अब देखिए पांच स्मारक , 5 अगस्त 1935 और 5 अगस्त 2019 और पहला स्मारक बना 1919 में । 1919 की मूर्खता को 2019 में जाकर एक झटके में ध्वस्त किया गया है । सारे पापों का प्रक्षालन हुआ है। आज लगा है कि :– ” दे दी हमें आजादी बिना खडग बिना ढाल ” — इन पंक्तियों का क्या मोल है ? उस व्यक्ति पर यह पंक्तियां लागू नहीं होती जिसके कारण लाखों लोग मरे थे , यह उसी 56 इंची के व्यक्ति पर लागू होती हैं , जिसने एक भी व्यक्ति की हत्या कराए बिना 5 अगस्त 2019 को 100 साल के पापों का प्रक्षालन करते हुए महान क्रांति का डाली है।
आवाज तो नहीं आई है , परंतु जिनको अनुभव हुआ है उनके दिल से पूछिए कि भारत सरकार के इस एक ऐतिहासिक और साहसिक निर्णय से कितने लोगों के मुंह पर चपत लगी है ?
- चपत खाने वालों में अमेरिका भी है ,
-
चपत खाने वालों में चीन भी है ,
-
चपत खाने वालों में पाकिस्तान भी है
-
चपत खाने वालों में कश्मीर के वे आतंकवादी और वहां के वे सब राजनीतिक दल और उनके नेता भी सम्मिलित हैं जो पिछले 70 वर्ष से भारत का खून पी रहे थे ।
-
चपत खाने वालों में भारत के वे सेकुलर नेता और राजनीतिक संगठन भी सम्मिलित हैं जो ‘ भारत तेरे टुकड़े होंगे ‘ को भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का नाम देकर भारत को तोड़ने की साजिश रच रहे थे ।
कुल मिलाकर चपत खाने वाले भी पांच ही है।
इस ऐतिहासिक क्रांति की आप सभी को एक बार फिर मंगलकामनाएं । याद रखें कि पुरुषार्थशील समाज से ही पुरुषार्थशील राष्ट्र बनता है । हम अपनी सरकार के साथ मजबूती के साथ खड़े रहें इसी से भारत विश्व गुरु बन सकेगा ।
राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत