मेरे मानस के राम ,__ अध्याय 16, हनुमान का लंका में प्रवेश

अब जटायु के भाई संपाति के द्वारा पूर्ण विवरण मिलने के पश्चात यह पूर्णतया स्पष्ट हो गया था कि सीता जी का अपहरण करके ले जाने वाला रावण श्रीलंका में निवास करता है । यदि सीता जी को सकुशल प्राप्त करना है तो इसके लिए समुद्र को लांघकर समुद्र के उस पार जाना अनिवार्य है। जामवंत जी के कहने पर सारे वानर दल ने यह निश्चय कर लिया कि इस कार्य को केवल हनुमान ही पूर्ण कर सकते हैं। तब वानर दल के इस सर्वसम्मत निर्णय को हनुमान जी ने भी सहर्ष स्वीकार कर लिया। यहां पर यह प्रश्न भी किया जा सकता है कि जब इस वानर दल को यह निश्चय हो गया कि सीता जी समुद्र पार श्रीलंका में हैं तो हनुमान जी और उनके अन्य साथियों ने इसकी सूचना सुग्रीव और रामचंद्र जी को क्यों नहीं दी ? वह स्वयं ही समुद्र को लांघने की तैयारी क्यों करने लगे ? इसका उत्तर यही है कि जिस समय सुग्रीव ने अपने खोजी दलों को चारों दिशाओं में भेजा था उस समय उन्होंने यह स्पष्ट कर दिया था कि तुममें से जो भी पहले आकर यह कहेगा कि ‘मैंने सीता जी को देखा है’ – उसे उचित पुरस्कार मिलेगा। अभी हनुमान जी और उनके वानर दल को यह तो निश्चय हो गया था कि सीता जी इस समय कहां पर हैं ? पर उन्होंने सीताजी को देखा नहीं था। बस, इसी चलते हनुमान जी और उनके दल ने आगे बढ़ने का निर्णय लिया। रास्ते में एक राक्षसी सिंहिका भी मिली, पर उसका भी उन्होंने अंत कर दिया।अतः :-

वायुयान से उड़ चले, हनुमान बलवान।
सिंहिका का अन्त कर, सिद्ध किया निज नाम।।

परकोटा रमणीक था , सोने का निर्माण।
पक्की सड़क अट्टालिका, लंका ऐसी जान।।

अमरावती सम महापुरी, पहुंच गए हनुमान।
राक्षसों के वैभव पर , विस्मय हुआ महान।।

जब हनुमान जी लंका पहुंच गए तो वहां पर लंका की अधिष्ठात्री रक्षिका जिसका नाम लंका था ,ने हनुमान जी के समक्ष चुनौती प्रस्तुत की । अपने सामने खड़ी हुई उस लंका नामक राक्षसी से वीर हनुमान का बहुत देर तक वार्तालाप होता रहा। अंत में वार्तालाप के क्रम में वह रक्षिका उत्तेजित हो गई और उसने उत्तेजनावश हनुमान जी को एक थप्पड़ मार दिया। उसके पश्चात हनुमान जी ने उसे एक घूसा से ही सीधा कर दिया। फल स्वरुप उसने हनुमान जी को लंका में प्रवेश करने की अनुमति प्रदान कर दी।

रात्रि में हनुमान जी , चले लक्ष्य की ओर।
लंका रक्षिका ने रखी, समक्ष चुनौती कठोर।।

किया पराभव वीर ने , संकट खड़ा समक्ष।
निसंकोच फिर चल दिए, सामने रखकर लक्ष्य।।

हाथ जोड़ खड़ी हो गई, टूट गया अभिमान।
जो कुछ करना चाहते , करो वही हनुमान।।

पहली लंका जीत कर , किया दूजी में प्रवेश।
पवन पुत्र लगे ढूंढने , रहता जहां लंकेश।।

राज भवन के द्वार पर , पहुंचे हनुमत वीर ।
उत्तम घोड़े थे वहां , विमान धनुष और तीर।।

महाबली तैनात थे, रखवाली के काम।
समझ गए हनुमान जी, यही नीच का धाम।।

सीता जी को खोजते , घूम रहे हनुमान।
पहले कभी देखा नहीं , कैसे करें पहचान।।

डॉ राकेश कुमार आर्य

( लेखक सुप्रसिद्ध इतिहासकार और भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता है। )

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