25 जून अब संविधान हत्या दिवस

अभी हाल ही में संपन्न हुए 18वीं लोकसभा के चुनावों के समय कांग्रेस के नेता राहुल गांधी अक्सर यह कहते रहे कि वर्तमान मोदी सरकार यदि तीसरी बार सत्ता में आई तो वह संविधान बदल देगी । भाजपा की लाख कोशिशों के उपरांत भी राहुल गांधी संविधान बचाने के अपने मुद्दे को ‘ कैश ‘ कर गए। देश के मतदाताओं के मन मस्तिष्क में वह इस विचार को बैठाने में सफल हो गए कि यदि मोदी तीसरी बार सत्ता में आए तो वह संविधान बदल सकते हैं । उसका परिणाम यह हुआ कि भाजपा अपने प्रति सब कुछ अनुकूल होते हुए भी सत्ता के लिए अपने बल पर बहुमत प्राप्त नहीं कर पाई । उसे राजग के माध्यम से सरकार बनाने का जनादेश प्राप्त हुआ। जबकि कांग्रेस अपनी 44 सीटों से बढ़कर 99 सीटों तक पहुंच गई।
राहुल गांधी की सोच और रणनीति को विफल करने के दृष्टिकोण से भाजपा ने भी अब पलटवार करते हुए बड़ा अहम निर्णय लिया है। देश के गृहमंत्री अमित शाह ने कहा है कि अब प्रत्येक वर्ष 25 जून को संविधान हत्या दिवस के रूप में मनाया जाएगा। इस पर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर प्रधानमंत्री श्री मोदी ने अपनी प्रतिक्रिया देते हुए लिखा है कि “यह हर उस व्यक्ति को श्रद्धांजलि देने का भी दिन है जो आपातकाल की ज़्यादतियों की वजह से उत्पीड़ित हुए। कांग्रेस ने भारतीय इतिहास में ये काला दौर शुरू किया था।”
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह भी कहा कि 25 जून को ‘संविधान हत्या दिवस’ मनाना ये याद दिलाएगा कि जब भारत के संविधान को कुचला जाता है तो क्या होता है ?
कांग्रेस ने भारत सरकार के स्तर पर किए गए इस निर्णय की आलोचना करते हुए कहा है कि प्रधानमंत्री एक बार फ़िर हिपोक्रेसी से भरी एक हेडलाइन बनाने की कोशिश कर रहे हैं।
अब देश की ये दोनों बड़ी राजनीतिक पार्टियां एक दूसरे पर क्या छींटाकशी करती हैं ? यह तो वे दोनों ही जानें, परंतु हम यहां पर आपातकाल के बारे में कुछ निष्पक्ष समीक्षा करने का प्रयास करेंगे। हम यह भी विचार करेंगे कि नरेंद्र मोदी सरकार ने संविधान की सचमुच हत्या की है या संविधान के प्रावधानों का यथावत पालन करने का गंभीर प्रयास कर एक अच्छा संकेत देने का प्रयास किया है ?
पहले हम 25 जून 1975 की ओर ही चलते हैं। जब देश में पहली बार आपातकाल लगाया गया था। उस समय देश की प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी थीं । इंदिरा गांधी के बारे में हमें जान लेना चाहिए कि जब वे देश की प्रधानमंत्री बनी थीं तो पंडित जवाहरलाल नेहरू की बेटी होने के उपरांत भी वह एक ‘ गूंगी गुड़िया ‘ ही थीं । तब कांग्रेस के बड़े नेताओं ने भी उन्हें इसी नाम से पुकारा था। कांग्रेस उस समय इंडिकेट और सिंडिकेट में विभाजित हो गई थी। कांग्रेस का सिंडिकेट नहीं चाहता था कि इंदिरा गांधी देश की प्रधानमंत्री बनी रहें। इसलिए कांग्रेस के बड़े नेताओं से सहयोग न मिलने के कारण इंदिरा गांधी अपने आप को असुरक्षित अनुभव करती थीं। 1969 की नवंबर में असुरक्षा के इसी भाव के चलते इंदिरा गांधी ने कांग्रेस को विभाजन के कगार पर पहुंचा दिया। उससे पहले देश के राष्ट्रपति का चुनाव हुआ, जिसमें इंदिरा गांधी ने कांग्रेस के नेतृत्व के साथ विद्रोह करते हुए, अपने प्रत्याशी वी वी गिरि को देश का राष्ट्रपति बनवाने में सफलता प्राप्त की। जब कांग्रेस का विभाजन हुआ तो उसके पश्चात उन्हें संसद में अपनी सरकार को चलाने के लिए अल्पमत का सामना करना पड़ा। जिसे बहुमत में बदलने के लिए उन्हें कम्युनिस्टों का सहारा लेना पड़ा।
इसके बाद 1971 में लोकसभा के चुनाव हुए। जिनमें इंदिरा गांधी के सामने राजनारायण ने चुनाव लड़ा। उन्होंने इंदिरा गांधी के चुनाव को न्यायालय में चुनौती दी । जिस पर सुनवाई करते हुए इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने आदेश जारी किया कि इंदिरा गांधी के चुनाव में धांधली हुई है । इसलिए उनका चुनाव निरस्त किया जाता है। इस निर्णय के बाद देश के विपक्ष की देश में आंधी चल गई। जिसके तूफान से इंदिरा गांधी घबरा गईं। लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने उस समय एक बयान जारी किया। जिसमें उन्होंने पुलिस और सेना से इंदिरा गांधी के गलत आदेश को न मानने की अपील की थी। गुजरात और बिहार में छात्रों ने भी आंदोलन आरंभ किया । उनका आंदोलन बड़े प्रभावी रूप से आगे बढ़ रहा था। यद्यपि बिहार के छात्रों का आंदोलन बिहार से बाहर प्रभावी रूप से कुछ करने में अक्षम रहा था, परंतु इतना अवश्य था कि युवा शक्ति के इस प्रकार अपने विरोध में उतर जाने से इंदिरा गांधी अत्यधिक चिंतित हो गई थीं। बिहार के छात्रों के आंदोलन को लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने अपना समर्थन दिया था। यद्यपि उन्होंने छात्रों को यह समर्थन इस शर्त पर दिया था कि इसमें कोई राजनीतिक दल नहीं उतरेगा। जब इंदिरा गांधी ने इस प्रकार के आंदोलन पर अपनी खुफिया एजेंसियों से रिपोर्ट मांगी तो अधिकारियों ने बढ़ा चढ़ा कर रिपोर्ट प्रस्तुत की। जिससे इंदिरा गांधी और भी अधिक भयभीत हो गईं। इसी भयभीत इंदिरा गांधी ने देश पर आपातकाल थोपा था।
डरी सहमी इंदिरा गांधी ने आपातकाल में देश के नेताओं पर अमानवीय अत्याचार किये। प्रेस पर भी पहरा बैठा दिया गया। लोगों के मौलिक अधिकारों को स्थगित कर दिया गया । जिस किसी ने भी इंदिरा गांधी के विरुद्ध बोलने का प्रयास किया, उसी को उन्होंने जेल की यातनाएं दीं । उनके प्रशासन ने अनेक लोगों पर अनेक प्रकार के अत्याचार किए। लोकनायक जयप्रकाश नारायण सहित चौधरी चरण सिंह, अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी तथा कांग्रेस के चंद्रशेखर और मोहन धारिया जैसे अनेक बड़े नेताओं को उठाकर जेल में डाल दिया गया था। कुछ समय पश्चात जब इंदिरा गांधी ने देखा कि देश के नेताओं के समर्थन में जनता कुछ भी नहीं कर रही है और उसने सड़क पर उतरकर लोकतंत्र बहाली के लिए भी कुछ नए करने का निर्णय ले लिया है इंदिरा गांधी को लगा कि देश के लोग उनके आपातकाल लागू करने के निर्णय से सहमत हैं और वे देश के विपक्षी नेताओं से अप्रसन्न होने के कारण अब भी इंदिरा गांधी के समर्थन में ही मतदान करेंगे । इसी गलत अनुमान के कारण इंदिरा गांधी ने देश में लोकतंत्र बहाल करते हुए नए चुनाव कराने की घोषणा कर दी। इंदिरा गांधी को देश की जनता के गुस्से की उस समय जानकारी हुई, जब चुनाव परिणाम आए। देश के लोगों ने इंदिरा गांधी को सत्ता शीर्ष से खींचकर नीचे फेंक दिया और जो लोग इंदिरा गांधी की जेल की सलाखों के पीछे पड़े थे या जेल से अभी छूटकर चुनाव जीत कर आए थे, उन्हें सत्ता शीर्ष पर पहुंचा दिया।
अब आते हैं वर्तमान सरकार पर । हमारा मानना है कि वर्तमान सरकार ने धारा 370 हटाकर संविधान की रक्षा की है । क्योंकि हमारा संविधान उस मौलिक अवधारणा पर निर्मित किया गया है, जो केंद्र को मजबूत करने की पक्षधर थी। क्योंकि जब-जब केंद्र मजबूत नहीं रहा, तब तब देश की एकता और अखंडता को खतरा पैदा हुआ है। हमारे संविधान निर्माता इस बात से भली प्रकार परिचित थे। यही कारण था कि उन्होंने केंद्र को मजबूत करने के दृष्टिकोण से प्रेरित होकर हर स्थान पर केंद्र की मजबूती का संकेत दिया है। फिर वे धारा 370 जैसी देश तोड़ने की समर्थक धारा का अनुमोदन क्यों करते ? स्पष्ट है कि यह धारा कांग्रेस द्वारा ही संविधान निर्माताओं की मौलिक सोच और चिंतन के विपरीत जाकर स्थापित करवाई गई थी। जिसे हटाना देश के संविधान की रक्षा करने के समान था। राम मंदिर का निर्माण की संवैधानिक ढांचे के भीतर रहकर ही संपन्न कराया गया है। इसे न्यायालय के आदेश से बनवाया गया है, न कि सरकार की हठधर्मिता के कारण। वैसे भी जब देश में सोमनाथ के मंदिर का उद्धार हो सकता है तो राम मंदिर का उद्धार यदि सरकार के माध्यम से भी कराया जाता है तो भी वह असंवैधानिक नहीं हो सकता।
कांग्रेस के नेता राहुल गांधी जिस प्रकार झूठ बोलने की प्रवृत्ति को अपने राजनीतिक अस्तित्व को बचाए रखने के लिए हथियार के रूप में प्रयोग कर रहे हैं, वह उनके लिए घातक सिद्ध हो सकती है। उन्होंने चुनावों के दौरान झूठा विमर्श तैयार किया और अपनी राजनीति को स्थापित करने के लिए या कहिए कि अपना राजनीतिक अस्तित्व बचाने के लिए उन्होंने यह झूठा प्रचार किया कि भाजपा संविधान बदलने जा रही है। लगता है उन्होंने यह मान लिया था कि जिस प्रकार संविधान को कुचलने वाली उनकी दादी इंदिरा गांधी को लोगों ने 1977 में सत्ता से दूर कर दिया था, उसी प्रकार उनके ” संविधान बचाओ ” के नारे के चलते लोग नरेंद्र मोदी को भी सत्ता से दूर कर देंगे। उन्होंने सोचा कि संविधान बचाने के लिए लोग जिस प्रकार 1977 में सड़कों पर आ गए थे या पोलिंग बूथ पर जाकर लाइनों में खड़े हो गए थे, उसी प्रकार का चमत्कार इस बार होगा। यद्यपि राहुल गांधी यह नहीं समझ पाए कि 1977 और 2024 की परिस्थितियों में जमीन आसमान का अंतर है।
अब 25 जून को संविधान हत्या दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लेकर अमित शाह ने कांग्रेस की दृष्टि में चाहे जितना बड़ा पाप किया हो, परन्तु भाजपा ने कांग्रेस के नेता राहुल गांधी के लिए एक हौआ अवश्य खड़ा कर दिया है। भाजपा ने स्पष्ट किया है कि लोकतंत्र और संविधान के हत्यारे लोग ही यदि झूठा प्रचार करेंगे या झूठ विमर्श तैयार करेंगे तो ऐसे लोगों को पाल से लगाने के लिए यही उचित है कि देश प्रतिवर्ष 25 जून को संविधान हत्या दिवस के रूप में मनाएगा। जहां तक कांग्रेस की बात है तो उसे शीशे के महलों में रहकर दूसरे के शीशे के महलों पर पत्थर नहीं मारने चाहिए थे। उसे अपने अंतर्मन से अवश्य पूछना चाहिए था कि संविधान बचाने के नाम पर वह जिस प्रकार का मिथ्या प्रचार कर रही है , वह कितना उचित है ?

  • डॉ राकेश कुमार आर्य

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