बाली वध के पश्चात सुग्रीव का राज्याभिषेक किया गया। तब श्री राम ने सुग्रीव से कह दिया कि इस समय चौमासा पूरे देश में फैल गया है। इस समय बीहड़ जंगलों में जाकर सीता जी की खोज करना संभव नहीं है । चौमासा व्यतीत होने के उपरांत सीता जी के खोज के अभियान में लगा जाएगा। तब तक आप आराम से अपना शासन कार्य संभालिए।
चौमासा अर्थात बरसात के चार महीनों के समय हमारे देश में प्राचीन काल से ही यह परंपरा रही है कि इस समय प्रत्येक प्रकार के कार्यों को रोक कर लोग घरों में ही रहकर समय व्यतीत करते थे। ऋषि मुनि भी इन दिनों में वनों से गांवों और शहरों के निकट आ जाया करते थे और वेद कथाओं का आरंभ कर दिया करते थे। उनकी वेद कथाओं के श्रवण करने से ही एक महीने का नाम ही श्रावण मास हो गया। जिसमें आज तक ही कथाएं की जाती हैं। यह अलग बात है कि अब वेद कथाओं के स्थान पर कुछ दूसरी कथाएं होने लगी हैं। उस समय राजा लोग भी अपने विजय अभियानों को रोक दिया करते थे । क्योंकि बीहड़ जंगलों में रथों का आना-जाना कठिन हो जाता था। इसी प्रकार विवाह के शुभ मुहूर्त भी इन दिनों में नहीं रखे जाते थे। इसी परंपरा का निर्वाह करते हुए रामचंद्र जी ने सुग्रीव से 4 महीने विश्राम करने का संकेत किया। इससे यह भी स्पष्ट है कि सुग्रीव का राज्याभिषेक और बाली का वध जून के अंत में अर्थात आषाढ़ माह के आरम्भ में हुआ था।
राजा को अभिषिक्त कर , लौट गए श्री राम।
चौमासा जब खत्म हो, शुरू करें अभियान।।
सीता जी की खोज को, दिया अर्द्धविराम।
कह दिया सुग्रीव से , अभी करो आराम।।
प्रस्रवण पहाड़ पर, राम का बना निवास।
भाई दोनों करते रहे, आपस में संवाद।।
लक्ष्मण के अनुरोध पर, राम ने त्यागा शोक।
अगली योजना में लगे, बिना किसी संकोच।।
जब चौमासा व्यतीत हो गया तो श्री राम इस बात की प्रतीक्षा करने लगे कि अब सुग्रीव की ओर से कोई सुखद संदेश आएगा अर्थात उन्हें यह सूचना मिलेगी कि वह सीता जी की खोज के अभियान में लग चुका है और उसके कुछ ऐसे शुभ संकेत प्राप्त हुए हैं कि सीता जी को अमुक व्यक्ति उठाकर ले गया है और इस समय वह अमुक स्थान पर हैं। पर ऐसा कुछ भी होता हुआ दिखाई नहीं दिया तो रामचंद्र जी की चिंता बढ़ने लगी। तब उन्होंने :-
शरद ऋतु आने लगी, सजग हुए श्री राम।
प्रिय अनुज से कह दिया, करो तुरंत प्रस्थान।।
प्रमादी सुग्रीव है, सो गया चादर तान।
जाकर उसे जगाइए , शुरू करे अभियान।।
क्रोधित लक्ष्मण जी हुए, ललकारा वानर राज।
झकझोर दिया आलस्य को, काम और प्रमाद।।
आई तारा सामने , किया लक्ष्मण को शांत।
अनुचर राजा आपका, समझो यह निर्भ्रांत ।।
लक्ष्मण से सुग्रीव ने, किया यही अनुरोध।
कृतघ्न बनूं श्री राम का, यह नहीं मेरी सोच।।
लक्ष्मण जी ने शांत हो , सुनी मित्र की बात।
प्रसन्न वदन हो रख दिया , मित्र के सिर पर हाथ।।
डॉ राकेश कुमार आर्य
( लेखक सुप्रसिद्ध इतिहासकार और भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता है। )
मुख्य संपादक, उगता भारत