गंगा अवतरण की घटना से हम सभी परीचित हैं। पुराणों में उल्लेखित यह घटना पुरातन इतिहास की एक बहुत महत्वपूर्ण घटना है। वास्तव में पुराण पुरातन इतिहास के ही दस्तावेज हैं, जिनमें बहुत सी ऐतिहासिक घटनाओं को पुराणकारों ने अपनी शैली में लिखा है। पौराणिक वृत्तों से यह सिद्घ हो चुका है कि गंगा प्राचीनकाल में हिमालय के तत्कालीन राजा से अनुनय विनय कर इस नदी को अपने देश देवलोक की ओर मोड़ लिया, जिससे उस देश में जल की समस्या का निदान हो गया, किंतु फिर भी इस नदी की एक धारा ही देवलोक आती थी। एक धारा स्वर्गलोक जाती थी, जबकि तीसरी धारा सरस्वती की भांति कुछ दूर चलने पर भूमि के अंदर ही समा गयी।
इधर इक्ष्वाकु वंश के राजा सगर बड़े प्रतापी सम्राट हुए हैं। उनकी केशिनी और सुमति नाम की दो रानियां थीं। संतान न होने पर यह दंपत्ति महर्षि भृगु के पास गया, जहां महर्षि ने प्रसन्न हो वर दे दिया कि नृपश्रेष्ठ! तुम्हारे घर में बहुत से पुत्र होंगे और तुम्हारी कीर्ति इस संसार में फैलेगी। तत्पश्चात रानी केशिनी को असमंज नाम का एक पुत्र हुआ , जबकि सुमति को अनेकों संतानें हुईं। सुमति की अनेकों संतानों को साठ हजार पुत्रों ( वास्तव में राजा सगर की सेना) के रूप में वर्णित किया गया है, जबकि यह संभव नहीं है। वास्तव में राजा सगर की सेना के सिपाहियों की यह संख्या थी, जिसके माता-पिता रानी और राजा ही होते हैं, इसलिए एक रूपक के द्वारा घटना का वर्णन किया गया है।
रानी केशिनी का पुत्र असमंज बड़ा दुष्ट था। उसके द्वारा प्रजा पर होने वाले अत्याचारों को देखकर राजा ने उसे अपने राज्य से बाहर निकाल दिया दिया था। इस असमंज के पुत्र का नाम अंशुमान था, जो अपने दादा राजा सगर के साथ ही रहा। अंशुमान के बड़ा होने पर राजा ने अश्वमेध यज्ञ का आयोजन करना चाहा। राजा ने घोड़ा छोड़कर उसकी रक्षा का दायित्व अंशुमान को दिया। राजा इंद्र ने इस घोड़े का अपहरण कर लिया और इसे तपस्यारत महर्षि कपिल के आश्रम में छोड़ दिया। घोड़े की खोज की जाने लगीं। खोज करने वाली सेना (राजा सगर के साठ हजार बेटे) ने अपने अभियान में जनता पर बड़े भारी अत्याचार ढहाये, जिससे प्रज्ञा त्राहिमाम कर उठी। कई वर्ष अश्व नहीं मिला, तब किसी प्रकार ये लोग महर्षि कपिल के आश्रम तक भी पहुंच गये।
इनके अत्याचारों के विषय में जब लोगों ने ब्रहाजी से कहा तो उन्होंने अपने विवेक से भविष्यवाणी कर दी कि इनका विनाश अवश्यम्भावी है। यज्ञ में ज्यों – ज्यों विलंब हो रहा था, त्यों – त्यों राजा सगर और उसके सैनिकों का प्रकोप बढ़ता जा रहा था। जिससे देश में सर्वत्र अशांति व्याप्त हो गयी उधर, महर्षि कपिल अपने आश्रम में घटी घटना से अनभिज्ञ हो , साधनारत थे। राजा सगर के सैनिकों ने उन्हें ही चोर समझकर अपमानित करना आरंभ कर दिया, जिससे क्रोधवश महर्षि ने इन सभी को अपने शाप से भस्म कर डाला। सगर के इन पुत्रों के भस्म हो जाने पर उनकी अस्थियों का ढेर लग गया।
बहुत विलंब होने पर राजा सगर ने अपने पुत्रों अर्थात सैनिकों की खोज के लिए अपने पोते अंशुमान को भेजा। अंशुमान ढूंढ़ता हुआ जब महर्षि कपिल के आश्रम में पहुंचा तो उसे सब कुछ समझ आ गया। उसने महर्षि के प्रति असीम श्रद्घा प्रदर्शित की और उन्हें सारा वृतांत कह सुनाया। तब महर्षि भी पश्चाताप करने लगे। इस पर उन्होंने अंशुमान को बताया कि जितनी प्रजा को कष्ट पहुंचाकर दुखी किया गया है, उस पाप की निवृत्ति के लिए यदि गंगा को पृथ्वी लोक में लाकर जन उपकार किया जाए तो उस महती कार्य से तुम्हें जनता की जो दुआएं मिलेंगी, उससे तुम्हारी कीर्ति पर लगा दाग मिट सकता है।
इस प्रकार गंगा को पर्वतों से पृथ्वी पर लाने का प्रयास प्रारंभ हुआ। राजा सगर उनके पश्चात अंशुमान और महाराज दिलीप गंगा को पर्वतों से पृथ्वी पर लाने के अपने प्रयास में असफल रहे, तब दिलीप के पुत्र भगीरथ को इस कार्य में सफलता मिली। उन्होंने अपनी तपस्या से ब्रहमा को प्रसन्न कर इंद्र को राजी किया। अंत में हिमालय के राजा से गंगा निकासी की स्वीकृति प्राप्त की। इन सबके शुभाशीर्वाद को पाकर भगीरथ गंगा को भारत में लाने में सफल हुए। उससे पहले इस पवित्र नदी का बहाव चीन की ओर था । इस लोकोपकारी कृत्य से अभिभूत जनता की मंगल कामना से इक्ष्वाकु कुल पर प्रजा उत्पीड़क का लगा दाग मिट गया। गंगा अवतरण का सच ये है कि गंगा के अवतरण से इक्ष्वाकु कुल पर लगा पापों का दाग समाप्त हो गया , कदाचित इसी कारण लोगों में यह धारणा रूढ़ हुई कि गंगा स्नान से पापों का नाश होता है।
राजा भगीरथ को गंगा को भारत की ओर लाकर प्रवाहित करने में बहुत बड़ा पुरुषार्थ करना पड़ा था उनके इंजीनियरों ने कैसे पहाड़ों को काटा होगा और कैसे गंगा जी के लिए रास्ता बनाया होगा आज तनिक इस पर विचार करें तो पता चलता है कि भागीरथ प्रयास क्या होते हैं ?
तनिक सोचो कि यदि राजा भगीरथ का यह ‘ भागीरथ प्रयास’ न् होता तो आज सारे उत्तर भारत की क्या स्थिति होती ? बहुत संभव है कि यहां पर रेगिस्तान बन गया होता । आज जहां हम अपनी गंगा जैसी पवित्र नदी के प्रति श्रद्धा और सम्मान प्रकट करते हैं वही हमें अपने उस राजा भगीरथ के प्रति भी श्रद्धा और सम्मान व्यक्त करना चाहिए जिसके ” भागीरथ प्रयास ” से आज सारा उत्तर भारत हरियाली से भरा रहता है।
भारत के इतिहास का फिर से लिखा जाना इसलिए भी आवश्यक है कि इसमें अपने भागीरथ जैसे राजाओं के ” भागीरथ प्रयासों ” को उचित सम्मान प्राप्त हो , जिससे हमारी युवा पीढ़ी के सामने अपने अतीत का गौरवपूर्ण चित्रण किया जा सके।
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत