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आतंकवाद

सुरक्षा के कारण नूपुर शर्मा को जीवनदान मिला लेकिन सामान्य हिन्दू का क्या

  • दिव्य अग्रवाल (लेखक व विचारक)

कुछ समय पूर्व नूपुर शर्मा ने इस्लामिक विषय पर एक व्यक्तव्य दिया था जो इस्लामिक पुस्तकों से ही सम्बंधित था परन्तु उस विषय पर लोकतांत्रिक चर्चा होने के स्थान पर सर तन से जुदा के मजहबी फतवे जारी हुए जिसके चलते सुरक्षा की दृष्टि से नूपुर शर्मा को सामाजिक जीवन में निष्क्रिय होना पड़ा और अभी भी उन्हें सरकारी सुरक्षा के घेरे में ही जीवन व्यतीत करना पड़ता है । इस पीड़ा को उन्होंने सार्वजनिक मंच से साझा किया की अपने ही देश में उन्हें मजहबी कटटरपंथ के कारण किस प्रकार जीना पड़ रहा है इस विषय को इस दृष्टि से भी देखना चाहिए की नूपुर शर्मा को तो प्रसाशन द्वारा सरकारी सुरक्षा मिल पायी लेकिन ऐसे असंख्य हिन्दू समाज के लोग हैं जिनके पास सुरक्षा के समुचित साधन ने होने के कारण इस्लामिक कटटरपंथियों द्वारा उनकी निर्मम हत्या सर तन से जुदा फतवे की आड़ में कर दी गयी आज भी विभिन्न प्रदेशो , शहरों , गाँव एवं मोहल्लों में प्रतिदिन किसी न किसी हिन्दू की हत्या , हिन्दू बेटी के साथ दुराचार ,लव जिहाद आदि जघन्य अपराध मजहब के नाम पर कटटरपंथियों द्वारा किये जा रहे है । इतना ही नहीं सनातन धर्म में पूजा एवं दर्शन करने वाले निरपराध हिन्दुओं की हत्या शरिया सिद्धांत के ऊपर निरंतर की जा रही है लेकिन उनकी सुरक्षा करने वाला कोई नहीं , उनकी मौतों पर तो संसद भी मौन हो जाती है । अर्थ स्पष्ट है की यदि इस्लामिक चरमपंथी से सुरक्षित होना है तो आपको अपनी सुरक्षा का प्रबंध करना ही होगा चाहे वो सरकारी हो या भगवान् श्री कृष्ण द्वारा रचित भगवद गीता की शास्त्र एवं शस्त्र विद्या अनुसार हो राजनीति तो चलती रहेगी पर रणनीति पर चर्चा भी अति आवश्यक है…

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