मनोज ज्वाला
गाजियाबाद ( ब्यूरो डेस्क) विश्व भर की रिलीजियस-मजहबी शक्तियों के लिए चुनौती बना अकेला धर्मधारी देश भारत जब से अंग्रेजी उपनिवेशवादी कांग्रेसी शासन से मुक्त हो कर हिन्दुत्ववादी भाजपाई सत्ता से शासित हो रहा है तब से इसके विरुद्ध भिन्न-भिन्न वैश्विक दुष्प्रचारों की आंधी से चल पडी है । अभी हाल ही में सम्पन्न हुए भारतीय लोकतंत्र के सबसे बडे आम-चुनाव के दौरान ऐसे सुनियोजित दुष्प्रचारों की एक से एक बानगी देखने-सुनने को मिली । विभिन्न चर्च-मिशनरिज संस्थाओं से ले कर उनके पालक-पोषक रिलीजियस राज्यों एवं उन सबके सरगना संयुक्त राज्य अमेरिका तथा उसके विभिन्न आयोगों-एजेन्सियों और मीडिया संस्थानों द्वारा तब भाजपा-मोदी को भारत की केन्द्रीय सत्ता से बेदखल करने के बावत धार्मिक स्वतंत्रता और अल्पसंख्यकों व मुसलमानों की सुरक्षा पर खतरा के एक से एक आख्यान (नैरेटिव) रच-गढ कर उन्हें प्रचारित करते हुए भारतीय लोकतंत्र की शुद्धता पर ही सवाल उठाये जाते रहे । अंतर्राष्ट्रीय रिलीजियस-मजहबी स्वतंत्रता के नाम पर धर्मोन्मूलन का गुप्त एजेण्डा क्रियान्वित करने हेतु कायम ‘यु एस कमिशन फॉर इण्टरनेशनल रिलीजियस फ्रिडम’ ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट में भारत को धार्मिक स्वतंत्रता का हनन-कर्ता घोषित कर पाकिस्तान-अफगानिस्तान-मिस्र-सिरिया आदि सर्वाधिक चिन्ताजनक देशों की सूची में शामिल कर रखा है, तो उसके तुरंत बाद उसी आधार पर वहां के एक मीडिया संस्थान ‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ ने ‘मोदी के भारत में मुसलमान असुरक्षित हैं’ ऐसा आख्यान गढ कर झूठी रिपोर्ट प्रकाशित कर दी । फिर उन दोनों रिपोर्टों के आधार पर अमेरिका अपनी चौधराहट सिद्ध करने के लिए उपदेश बखारने लगा । इसी तरह से ‘हेनरी लुईस फाउण्डेशन’ एवं ‘जॉर्ज सोरोस ओपेन सोसाइटी फाउण्डेशन’ तथा ‘बर्कले सेंटर फॉर रिलिजन व पीस एंड वर्ल्ड अफेयर्स’ (Berkley Center for Religion, Peace and World Affairs) एवं ‘कार्नेगी इंडॉमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस’ (Carnegie Endowment for International Peace) और ‘ह्यूमन राइट्स वाच’ व ‘साउथ एशिया एक्टिविस्ट कलेक्टिव’ (एसएएसएसी) नामक चर्च-मिशनरिज संस्थाओं ने अपने भारी-भरकम संसाधनों व भारतीय एजेण्टों के सहारे संविधान व आरक्षण विषयक झूठी-झूठी सूचनाओं-सम्भावनाओं का दुष्प्रचार कर चुनावी जनमत को भारत की राष्ट्रवादी धर्मधारी सत्ता के विरुद्ध नकारात्मक दिशा में उलझाने और उपनिवेशवादी रिलीजियस-मजहबी कांग्रेसी गिरोह के पक्ष में रिझाने का काम युद्ध-स्तर पर किया । इस कडी में अब एक नया नाम जुड गया है ।
खबर है कि भारत-विरोधी दुष्प्रचार की इस मुहिम में अब ‘युनिसेफ’ नामक उस अंतर्राष्ट्रीय संस्था का मिथ्याचार भी शामिल हो गया है , जो संयुक्त राष्ट्र संघ से सम्बद्ध है । मालूम हो कि ‘युनाइटेड स्टेट्स इण्टरनेशनल चिल्ड्रेन्स इमर्जेन्सी फण्ड’ (युनिसेफ) का काम विभिन्न देशों में उपेक्षित-पीडित असहाय कुपोषित बच्चों व माताओं को सहयोग-संरक्षण प्रदान करना है । किन्तु यह संस्था अपने इस घोषित कार्यक्रम की आड में तत्सम्बन्धी अध्ययन-सर्वेक्षण के नाम पर रिलीजन की वैश्विक ऑथोरिटी , अर्थात ‘वेटिकन सिटी’ एवं तमाम रिलीजियस-मजहबी शक्तियों के सरगना– अमेरिका और वेटिकन सिटी से निर्धारित-संचालित उनकी धर्म-विरोधी गतिविधियों को अनुकूलतायें प्रदान करता रहा है । दरअसल युएनओ जो है, वही अमेरिकी हाथों का खिलौना मात्र है, जिसका स्थाई पर्यवेक्षक हुआ करता है- ‘वेटिकन सिटी’ अर्थात क्रिश्चियनिटी की सर्वोच्च ऑथोरिटी । तो ऐसे में जाहिर है- जब ‘युएनओ’ ही निष्पक्षता व धार्मिकता से दूर है, तो युनिसेफ की क्या विसात है !
बहरहाल इस युनिसेफ द्वारा जारी की गई रिपोर्ट पर आप गौर करें तो पाएंगे कि युएनओ की यह संस्था भी ‘युएससीआईआरसी’ नामक अमेरिकी आयोग की राह अख्तियार कर ली है और भारत के विरुद्ध अनर्गल प्रलाप करती दिख रही है । बकौल युनिसेफ रिपोर्ट- “भारत में लोगों को खाने के लिए भोजन नहीं मिल रहा, लोग भूख से मर रहे हैं, कुपोषण के शिकार बच्चों की संख्या करोड़ों में है । बच्चे पौष्टिक आहार नहीं मिलने से कई तरह की बीमारियों के शिकार हो रहे हैं । यूनिसेफ की यह ‘‘चाइल्ड फूड पॉवर्टी’’ रिपोर्ट इसी माह जून 2024 में प्रकाशित हुई है , जिसमें कहा गया है कि “भारत में ‘बाल खाद्य गरीबी’ (बाल खाद्य गरीबी) की समस्या इतनी गम्भीर है कि वह दुनिया के सबसे खराब देशों में शामिल है, जबकि स्थिति पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, श्रीलंका जैसे देशों की स्थिति भारत से बेहतर है । इससे पहले संयुक्त राष्ट्र संघ (UNO) और फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गनाइजेशन (FAO) आदि एजेंसियों के आंकडों के आधार पर जारी ग्लोबल हंगर इंडेक्स (वैश्विक भूखमरी सूचकांक)-२०२३ में भी भारत को107वें नंबर पर दिखाया गया था , जबकि आटा-दाल-अलू-प्याज के लिए भी तरस रहे पाकिस्तान को 102वें स्थान पर , बांग्लादेश को (81वें स्थान पर तथा नेपाल को 69वें स्थान पर और श्रीलंका , जहां की जनता ने भूखमरी के सवाल पर विद्रोह कर दिया था और जिसकी अर्थव्यवस्था भारत सरकार के आर्थिक सहयोग से पुनर्जीवित हुई है , उसे (60वें) स्थान पर दिखाया गया है ।
यूनिसेफ की इस रिपोर्ट में यह स्पष्ट किया गया है कि दक्षिण एशियाई देशों की सूची में भारत गंभीर ‘बाल खाद्य गरीबी’ से जूझ रहा है और यहां पांच वर्ष तक की उम्र वाले 76 प्रतिशत बच्चे उचित पोषक आहार दे दूर हैं । दक्षिण एशियाई देशों की सूची में मुख्य तौर पर 07 देश शामिल किए गए हैं, जिनमें सिर्फ अफगानिस्तान को चाइल्ड फूड पॉवर्टी में भारत से पीछे रखा गया है, जबकि पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, नेपाल की स्थिति भारत से बेहतर है ।
इस रिपोर्ट की वैश्विक सूची में भारत को विश्व के उन 10 देशों में शामिल किया गया है, जहां बच्चों को जरूरी पोषक आहार नहीं मिल पाता है । विश्व में सबसे ज्यादा खराब स्थिति सोमालिया की बतायी गई है, जहां 63 प्रतिशत बच्चों तक उचित आहार की पहुंच नहीं है । इस क्रम में सोमालिया के बाद नाम गिनी में 54 प्रतिशत, अफगानिस्तान में 49 प्रतिशत, सिएरा लियोन में 47 प्रतिशत, इथियोपिया में 46 प्रतिशत, लाइबेरिया में 43 प्रतिशत और भारत में 40 प्रतिशत बच्चों को उचित पोषक आहार से वंचित बताया गया है ; जबकि पाकिस्तान में मात्र 38 प्रतिशत और मॉरिटानिया में भी 38 प्रतिशत बच्चों को ही कुपोषित दिखाया गया है । अब आप स्वयं समझ सकते हैं कि भारत के संदर्भ में युनिसेफ की यह सूची कितनी विश्वसनीय है ।
यूनिसेफ का दावा है कि उसने वैश्विक स्तर पर इस्तेमाल किये जाने वाले मानक और डब्ल्यूएचओ आहार विविधता स्कोरिंग पद्धति का उपयोग करके 137 देशों और क्षेत्रों में किए गए 670 राष्ट्रीय प्रतिनिधि सर्वेक्षणों के आधार पर यह रिपोर्ट तैयार की है , जिसमें वैश्विक स्तर पर सभी छोटे बच्चों के 90 प्रतिशत से अधिक का प्रतिनिधित्व हुआ है । किंतु उसकी इस रिपोर्ट का व्यवहारिक अध्ययन करने तथा भारत सरकार के राष्ट्रीय पारिवारिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) की रिपोर्ट से तुलना करने पर यह साफ हो जाता है कि युनिसेफ ने भारत की राष्ट्रवादी भाजपाई सरकार को बेदखल करने हेतु भारत की छवि खराब कर उसे बदनाम करने एवं राष्ट्रीयता-विरोधी कांग्रेस को सत्तारुढ करने का ठेका चला रही ‘हेनरी लुईस फाउण्डेशन’ एवं ‘जॉर्ज सोरोस ऑपेन सोसाइटी फॉउण्डेशन’ जैसी रिलीजियस-मजहबी संस्थाओं से हाथ मिला रखा है ।
दरअसल ये वो संस्थायें हैं, जिनकी पालक-पोषक-नियामक सत्ता को विश्व में भारतीय राष्ट्रवाद (हिन्दूत्ववाद) का उभार कतई वर्दास्त नहीं होता, क्योंकि इससे उनके रिलीजियस मजहबी विस्तारवाद और नव-उपनिवेशवाद का उनका एजेण्डा प्रभावित होता दिखने लगता है, जो कदाचित सच भी है । उनके विस्तारवादी मार्ग में भारत की राष्ट्रीयता अर्थात सनातन धर्म और राष्ट्रीयतावादी भाजपा-मोदी सरकार सर्वाधिक बाधक है, जिससे पार पाने के लिए उसकी छवि खराब करना और सनातन धर्म-विरोधी सरकार कायम करना उनकी आवश्यकता होती जा रही है । इसीलिए ये सब संस्थायें भिन्न-भिन्न सुरों में एक ही राग आलापने लगी हैं ।
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