(राकेश अचल-विभूति फीचर्स)
बरसात का पानी देश में समान दृष्टि से निर्माण कार्यों में हुई धांधली की पोल खोलता है । बरसात का पानी जो भी करता है दलगत राजनीति से ऊपर उठकर करता है। बरसात का न किसी गंठबंधन के साथ तालमेल है और न कोई कॉमन मिनिमम प्रोग्राम। बरसात तो आती है और अपना काम कर वापस लौट जाती है दोबारा आने के लिए। इस बरसात ने केंद्र से लेकर राज्य सरकारों तक की पोल खोली है। बरसात का ये पोल-खोल अभियान अभी जारी है।
देश में बरसात कमोवेश हरेक हिस्से में होती है। कहीं कम तो कहीं ज्यादा। बरसात को अपना काम करने के लिए न जनादेश की जरूरत पड़ती है और न किसी अध्यादेश की । बरसात का नियंता तो इंद्र है। इंद्र देवता है। खुश भी करता है और कुपित भी होता है। जब संयम से बरसता है तो किसानों के चेहरे खिल उठते हैं ,क्योंकि बरसात के पानी से ही खेत सोना उगलते हैं और जब कुपित होता है तो जल-प्लावन कर असंख्य जानें ले लेता है। इस लिहाज से बरसात का ,बादलों का नियंता बहुरूपिया है । इंद्र की फितरत सैकड़ों,हजारों सालों से नहीं बदली। देश-दुनिया में सरकारें बदलतीं है किन्तु इंद्र नहीं बदलता। द्वापर में इंद्र का मान -मर्दन करने के लिए कृष्ण थे । उन्होंने गोवर्धन को अपनी अंगुली पर उठाकर बचा लिया था ,लेकिन कलियुग में इंद्र तो है किन्तु कोई कृष्ण नहीं है।
देश में निर्माण कार्यों के जरिये नेता,इंजीनियर और ठेकेदार खूब कमाते-खाते हैं लेकिन इन सबकी पोल बरसात के जरिये इंद्र ही खोलता है । इस बार सबसे पहले बिहार की पोल खुली। एक के बाद एक कर कोई एक दर्जन पुल गिर गए। किसी का कुछ नहीं बिगड़ा । कुछेक इंजीनियर निलंबित किये गए। उन्हें बरसात के बाद बहाल कर दिया जाएगा। जो पुल बहे वे बदनसीब थे। सरकार इसमें क्या कर सकती है। सरकार का काम पुल बनाना है और बरसात का काम पुल गिराना और बहाना है। यदि पुल बहेंगे नहीं तो नए कहाँ से बनेंगे? आज के नेता,शेरशाह सूरी या कोई अंग्रेज तो नहीं हैं जो ऐसे पुल बनवा दें जो सदियों तक चलें ? हमारे देश में मुगलों और अंग्रेजों के जमाने के तमाम पुल अभी भी पूरी निष्ठा से अपना काम कर रहे हैं।
देश में बहने या गिरने का काम केवल पुल ही नहीं करते ,हवाई अड्डे की छतें और केनोपी भी करतीं हैं। देश की राजधानी दिल्ली के अंतर्राष्ट्रीय इंदिरा गांधी हवाई अड्डे की केनोपी टपक रही हैं । कार पार्किंग की छत बैठ गयी है। इंदौर,जबलपुर,ग्वालियर और अयोध्या में बनाये गए नए-नवेले हवाई अड्डे निर्माण कार्यों की पोल खोल रहे हैं। रेलवे स्टेशनों की ही नहीं रामलला के नवनिर्मित मंदिर की छत भी टपक रही है। लेकिन आज ऐसी कोई ताकत नहीं है जो इंद्र को रोक सके। बरसात अपना काम कर रही है । असम से अयोध्या तक,दिल्ली से पटना तक देश के किसी भी हिस्से में जाइये,आपको निर्माण कार्यों की पोल खुलती दिखाई देगी। पुल ही नहीं सड़कें भी निर्माण कार्यो की पोल खोलतीं है। बरसात में नदी ही नहीं नाले भी उफ़न कर दिखा देते हैं। लेकिन सरकार न नदी का कुछ बिगाड़ सकती है और न नालों का । पानी बरसाने वाले बादलों के खिलाफ तो कुछ कर पाना मुमकिन ही नहीं हैं।
एक जमाना था जब मुग़ल हों अंग्रेज हों या देशी राजे-महाराजे हों कम से कम निर्माण कार्यों में तो घटिया सामग्री का इस्तेमाल नहीं करते थे ,यदि करते होते तो ग्वालियर के पास नूराबाद में शेरशाह सूरी के जमाने का बना पुल ,कोलकता में हुबली पर बना अंग्रेजों के जमाने का पुल और तो और छोड़िये 1857 में सिंधिया खानदान द्वारा बनाये गए पुल और बाँध आज भी काम कर रहे हैं। पिछले 75 साल में बनाया गया कोई भी पुल और सड़क पुराने जमाने के निर्माण कार्यं का मुकाबला नहीं कर सकता। जाहिर है कि तब में और अब में बहुत अंतर आ चुका है। ईमानदारी का इंडेक्स भी लगातार गिरा है।
बरसात देश और दुनिया के असंख्य लोगों को प्रभावित करती है । भारत में भी यही हाल है । असम के 30 जिलों के लाखों लोग राहत शिविरों में है। चारधाम यात्रा स्थगित कर दी गयी है । दिल्ली जलमग्न है। अयोध्या हो या काशी सब जगह पानी ही पानी है सिवाय नेताओं की आखों के। राजनीति देखकर भी कुछ देखना नहीं चाहतीं और नेताओं को हवाई जहाज में बैठकर बाढ़ देखने में मजा आता है। वे हवाई सर्वे करते हैं फिर राहत बांटते-बंटवाते हैं। राहत कार्य भी निर्माण कार्यों की तरह कमाई का एक दूसरा जरिया होते हैं।
इस बार चौमासा कहिये या मानसून सीजन कहिये में अभी तक केवल और केवल पानी से लदे काले बादल ही गुरगुराते दिखाई दिए है। इंद्रधनुष तो दिखाई ही नहीं दिया। कहीं ख़ुशी है तो कहीं गम भी है। बरसात न आये तो आलू,प्याज और टमाटरों को अपने भाव बढ़ाने का मौका ही कहाँ मिले ? बरसात सबका ख्याल रखती है । जमाखोरों का भी ,जो इस मौसम में मुनाफ़ा नहीं कमा पाता उसके लिए कोई दूसरा मुफीद मौसम होता ही नहीं है। मुझे तो बरसात का मौसम बेहद सुहाना लगता है। मन बाग़-बाग़ हो जाता है। आपकी आप जानें। मुझे तो बरसात सबसे ज्यादा भरोसे की लगती है ,कम से कम समय पर पोल तो खोलती है। आइये बरसात का इंद्र का अभिनंदन करें।(विभूति फीचर्स)
बहुत से लेख हमको ऐसे प्राप्त होते हैं जिनके लेखक का नाम परिचय लेख के साथ नहीं होता है, ऐसे लेखों को ब्यूरो के नाम से प्रकाशित किया जाता है। यदि आपका लेख हमारी वैबसाइट पर आपने नाम के बिना प्रकाशित किया गया है तो आप हमे लेख पर कमेंट के माध्यम से सूचित कर लेख में अपना नाम लिखवा सकते हैं।