परमात्मा की संगति की अनुभूति के लिए मन के आवरण का नाश किस प्रकार किया जाये?

परमात्मा की महिमा और महानता के बारे में कौन बोलता है?
ऐसे लोग परमात्मा की संगति क्यों करते हैं?
आधुनिक मनुष्य के मन को किस प्रकार की परिस्थितियों ने घेर रखा है?
परमात्मा की संगति की अनुभूति के लिए मन के आवरण का नाश किस प्रकार किया जाये?

प्र नू महित्वं वृषभस्य वोचं यं पूरवो वृत्रहणं सचन्ते।
वैश्वानरो दस्युमग्निर्जघन्वाँ अधूनोत्काष्ठा अव शम्बरं भेत् ।।
ऋग्वेद मन्त्र 1.59.6 (कुल मन्त्र 688)

(प्र – वोचम से पूर्व लगाकर) (नू) बहुत शीघ्र, अभी (महित्वम्) महिमा तथा महानता (वृषभस्य) सबसे शक्तिशाली, सबसे अधिक प्रकाशित (वोचम् – प्र वोचम्) शक्ति से बोलने वाला (यम्) जिसे
(पूरवः) स्वयं को आत्मा में धारण करने के लिए सक्षम तथा पूर्ण (वृत्रहणम्) बादलों और मन की वृत्तियो को मारने वाला (सचन्ते) संगति करने वाला (वैश्वानरः) सब प्राणियों का कल्याण करने वाले परमात्मा (दस्युम्) बुरी वृत्तियाँ (अग्नि) सर्वोच्च ऊर्जा परमात्मा (जघन्वानः) पूरी तरह से नष्ट करता है (अधूनोत) कंपित करके (काष्ठाः) सभी दिशाओं, दूर के अंशों को (अव – भेत से पूर्व लगाकर) (शम्बरम्) मन की शांति के आवरण (भेत् – अव भेत) नष्ट करते हैं।

व्याख्या :-
परमात्मा की महिमा और महानता के बारे में कौन बोलता है?
ऐसे लोग परमात्मा की संगति क्यों करते हैं?

जो लोग स्वयं को आत्मा में ही पोषित करने में पूर्ण और सक्षम होते हैं, वे उस महाशक्तिशाली और सर्वाधिक प्रकाशित परमात्मा की महिमा और महानता के बारे में मजबूती के साथ बोलते हैं जो मन के बादलों और वृत्तियों का नाश करता है।
ऐसे लोग सदैव सर्वोच्च ऊर्जा, परमात्मा की संगति करते हैं जो सबका कल्याण करता है और बुरी प्रवृत्तियों को चारो तरफ से हिलाकर और कंपित करके सबका कल्याण करता है। परमात्मा की संगति को महसूस करने से ही मन के आवरण समाप्त किये जा सकते हैं।

जीवन में सार्थकता : –
आधुनिक मनुष्य के मन को किस प्रकार की परिस्थितियों ने घेर रखा है?
परमात्मा की संगति की अनुभूति के लिए मन के आवरण का नाश किस प्रकार किया जाये?

आज के युग में अधिकतर मस्तिष्क शांति को खो चुके हैं। क्योंकि उनके मन पर ईर्ष्या, द्वेष, क्रोध, असंतोष, इच्छाओं की पूर्ति न होना और अहंकार को चोट आदि के आवरण विद्यमान हैं। मन पर ऐसे आवरणों की संख्या असीमित हो सकती है, जिसके कारण मन असंतुलित हो जाता है और उसका परिणाम निराशा, अपराध और रोगों के रूप में दिखाई देता है।
मन के ऐसे सभी प्रकार के असंतुलन का इलाज है अनुभूति प्राप्त होने तक परमात्मा की संगति को महसूस करना प्रारम्भ कर दें। ऐसे दिव्य एहसास के साथ अन्ततः मन के सभी आवरण नष्ट हो जायेंगे। केवल एक सच्चा आर्य (जैसा कि ऋग्वेद-1.59.2 में स्पष्ट किया गया है।) परमात्मा की संगति की अनुभूति प्राप्त कर सकता है और मन के आवरणों को नष्ट कर सकता है।


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