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महत्वपूर्ण लेख संपादकीय

अवैध धर्मांतरण पर इलाहाबाद हाईकोर्ट की टिप्पणी

स्वामी विवेकानंद कंपलीट वर्क्स खंड 5 पृष्ठ 233 पर लिखा गया है कि ” उनके ( मुस्लिमों ) ही अपने ऐतिहासिक लेखों के अनुसार जब पहली बार मुसलमान भारत आए तो भारत में हिंदुओं की जनसंख्या 60 करोड़ थी। इस कथन में न्यून वर्णन का दोष हो सकता है, किंतु अतिशयोक्ति का नहीं। क्योंकि मुसलमानों के अत्याचारों के कारण असंख्य हिंदुओं का वध हो गया….. किंतु अब वे हिंदू घटकर 20 करोड़ रह गए हैं।”
यही वह सत्य है जिसे अब इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने भी अपनी एक टिप्पणी के माध्यम से सत्यापित किया है। न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल ने उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम, 2021 के तहत हमीरपुर के मौदहा निवासी आरोपी कैलाश की जमानत याचिका खारिज करते हुए कहा है कि ” उत्तर प्रदेश में एससी/एसटी और आर्थिक रूप से कमजोर लोगों का ईसाई धर्म में अवैध धर्मांतरण बड़े पैमाने पर किया जा रहा है। इसे तत्काल रोका जाना चाहिए। लालच देकर धर्म बदलने का खेल जारी रहा तो देश की बहुसंख्यक आबादी एक दिन अल्पसंख्यक बन जाएगी।”
माना कि लोकतंत्र में वयस्क मताधिकार बहुत ही महत्वपूर्ण होता है, परंतु यह जनसंख्या के आंकड़ों को गड़बड़ाकर किसी भी देश की मौलिक संस्कृति को मिटाने का ( विशेष रूप से इस्लाम के लिए ) एक हथियार बन चुका है। जनसंख्या बढ़ाकर मौन क्रांति करके धरती के एक बड़े भाग पर अपना कब्जा जमा चुके इस्लाम के लिए अब भारत को भी इसी हथियार से गुलाम करना है। अपनी भाषा में इस्लाम के व्याख्याकार भारत को दारुल हरब मानते हैं। उनका अंतिम लक्ष्य भारत को दारुल इस्लाम में परिवर्तित कर देना है।
भारत के हिंदू समाज को आतंकवादी कहने वाले राहुल गांधी और उनकी वह सारी टीम जो अपने आपको धर्मनिरपेक्ष कहती है, इस सच्चाई की ओर से आंखें बंद किए बैठी है। वास्तव में इसी प्रकार के नेताओं के कारण 1947 में देश का संप्रदाय के आधार पर बंटवारा हुआ था। दुर्भाग्य का विषय है कि इन नेताओं की नई पौध ने अतीत से कोई शिक्षा नहीं ली है। यह निरंतर नहीं मूर्खतापूर्ण गीतों को गाते जा रहे हैं, जो देश के लिए अतीत में बर्बाद करने वाले साबित हो चुके हैं।
इन्हीं नेताओं ने सच को सच के रूप में स्थापित होने से रोकने के कई बार शासनादेश जारी किए हैं। 28 / 4 /1989 को शिक्षा मंत्रालय वेस्ट बंगाल की ओर से यह स्पष्ट आदेश दिया गया था कि मुस्लिम शासन की कोई कैसी भी आलोचना का समावेश इतिहास में नहीं होना चाहिए। मुस्लिम आक्रांताओं और शासकों द्वारा मंदिरों के तोड़े जाने का वर्णन समाविष्ट नहीं किया जाना चाहिए। इस प्रकार की देश विरोधी सोच ने इस्लाम को अपना मनमाना खेल भारत की भूमि पर खेलने के लिए प्रोत्साहित किया। इस्लाम की कट्टरता को छुपाकर उसको भी उदार दिखाने का प्रयास कांग्रेस और कम्युनिस्ट इतिहास लेखकों की ओर से निरंतर जारी रहा। जिसका मुंह बोलना प्रमाण राहुल गांधी द्वारा अभी सभी धर्मों की तुलना करते हुए शंकर जी की तस्वीर को हाथ में लेकर संसद में दिया गया वह बयान है, जिसमें उन्होंने कहा है कि हिंदू धर्म ही नहीं बल्कि इस्लाम भी ” अभय मुद्रा ” की बात करता है। राहुल गांधी जैसे नेता सच की ओर से आंखें मूंदकर जिस प्रकार के बयान दे रहे हैं वह देश के लिए घातक सिद्ध होंगे। इन जैसे नेताओं को बिल डूरेंट ( द स्टोरी ऑफ़ सिविलाइजेशन ) में आये इस तथ्य को समझना चाहिए कि ” इतिहास में इस्लाम द्वारा भारत की विजय के इतिहास की कहानी संभवत: सर्वाधिक रक्तरंजित है । यह एक अति निराशाजनक कहानी है। क्योंकि इसका प्रत्यक्ष आदर्श व निष्कर्ष यही है कि सभ्यता जो एक इतनी बहुमूल्य और महान है जिसमें शांति और स्वतंत्रता संस्कृति और शांति का इतना कोमल मिश्रण है, उसे भी कोई भी विदेशी बर्बर आक्रमणकारी अथवा भीतर ही बढ़ जाने वाले या पनप जाने वाले किसी भी क्षण नष्ट भ्रष्ट या समाप्त कर सकते हैं।”
किसी भी क्षण नष्ट भ्रष्ट या समाप्त कर देने के इस खेल को यदि आज इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने समझ कर इंगित किया है तो देश के राजनीतिज्ञों को अपनी परंपरागत छद्मवादी नीतियों का त्याग कर यथार्थ के धरातल पर घट रही घटनाओं को भविष्य के दृष्टिगत समझने का प्रयास करना चाहिए। यह छोटी बात नहीं है कि पश्चिम बंगाल में उन हिंदुओं को जमकर मारा पीटा गया, जिन्होंने विधानसभा चुनाव के समय भाजपा को वोट दिया था। उसका परिणाम यह आया है कि लोकसभा के हाल ही में संपन्न हुए चुनावों में हिंदुओं ने डरकर तृणमूल कांग्रेस को वोट दे दिया है। इसके कई कारण हैं । एक कारण यह है कि भाजपा अपने समर्थक मतदाताओं की उचित सुरक्षा नहीं कर पाई। दूसरे तृणमूल कांग्रेस की ममता बनर्जी ने डंडे से अपनी वोट लोकतंत्र में आस्था व्यक्त करते-करते और संविधान की प्रति हाथ में ले लेकर बढ़ा लीं । कांग्रेस के राहुल गांधी संविधान की रक्षा की बात कर रहे हैं , परंतु उनके रहते हुए ही पश्चिम बंगाल में अल्पसंख्यकों को प्रोत्साहित करने वाली ममता बनर्जी ने संविधान की धज्जियां उड़ा दीं । इस प्रकार की नीतियों का भविष्य क्या होगा ? सचमुच बहुत भयावह भविष्य की ओर हम बढ़ रहे हैं। जिसमें आज का बहुसंख्यक अल्पसंख्यक बनने की ओर जाता हुआ दिखाई दे रहा है।
न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल ने उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम, 2021 के तहत हमीरपुर के मौदहा निवासी आरोपी कैलाश की जमानत याचिका खारिज करते हुए यह जो टिप्पणी की है, उसे सही संदर्भ में समझने की आवश्यकता है। यदि समय रहते सचेत नहीं हुए तो इस बार देश का विभाजन नहीं बल्कि पूरे देश का एक साथ विधर्मीकरण किया जाएगा। यह विधर्मीकरण ही भारत और भारतीयता के अस्तित्व को मिटाने का अंतिम प्रयास होगा। इसके लिए बड़े पैमाने पर देश के भीतर कई प्रकार की शक्तियां चुपचाप काम कर रही हैं। जिनके इरादों को समझने और कुचलने का समय आ गया है। राजनीति में हार जीत तो चलती रहती है। सत्ता भी आती जाती रहती है, परन्तु भाजपा को जिस प्रकार कुछ शक्तियों ने लामबंद होकर हराया है, वह चिंताजनक है। इन लामबंद शक्तियों के इरादों को समझकर आगे बढ़ना होगा।
ज्ञात रहे कि कैलाश पर अवैध रूप से धर्म परिवर्तन कराने की धाराओं में मुकदमा दर्ज कराया गया था। शिकायतकर्ता रामकली प्रजापति ने एफ0आई0आर0 में कहा था कि उसके भाई रामफल को कैलाश घर से दिल्ली में एक सामाजिक समारोह में भाग लेने के लिए ले गया था। इस समारोह में गांव के कई और लोगों को भी ले जाया गया। बाद में, सभी को लालच देकर ईसाई धर्म में परिवर्तित कर दिया गया। बकौल रामकली, उनका भाई मानसिक रूप से बीमार चल रहा था। इस मामले में गिरफ्तारी के बाद कैलाश के अधिवक्ता ने तर्क दिया कि आवेदक ने शिकायतकर्ता के भाई का धर्मांतरण नहीं किया था। पादरी सोनू ने कार्यक्रम का आयोजन किया था और उसी ने सभी का धर्म परिवर्तन कराया। उसे जमानत पर रिहा किया जा चुका है। राज्य सरकार के अतिरिक्त महाधिवक्ता ने तर्क दिया कि ऐसी सभाओं का आयोजन कर बड़े पैमाने पर लोगों को ईसाई बनाया जा रहा है। कैलाश गांव से लोगों को ले जाकर ईसाई धर्म में परिवर्तित कराने में सम्मिलित रहा है। उसे इसके बदले बहुत पैसा दिया गया था। 
कोर्ट ने कहा है कि संविधान का अनुच्छेद 25 किसी को भी स्वेच्छा से धर्म चुनने की स्वतंत्रता देता है, परन्तु लालच देकर किसी का धर्म परिवर्तन करने की अनुमति नहीं देता। अपने धर्म का प्रचार करने का अर्थ किसी दूसरे धर्म के व्यक्ति को अपने धर्म में परिवर्तित कराना नहीं है। परंतु भारत में ऐसा ही हो रहा है, जिस पर अब कठोर कानून बनाए जाने की आवश्यकता है।

डॉ राकेश कुमार आर्य

( लेखक सुप्रसिद्ध इतिहासकार और भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता हैं।)

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