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आज का चिंतन

जन्म देने वाली माता, धरती माता तथा महान् विद्वानों में कौन सा लक्षण समान हैं?

जन्म देने वाली माता, धरती माता तथा महान् विद्वानों में कौन सा लक्षण समान हैं?
परमात्मा के क्या लक्षण हैं?
हम परमात्मा के लक्षणों की अनुभूति अपने भीतर कैसे कर सकते हैं?

बृहती इव सूनवे रोदसी गिरः होता मनुष्यो३ न दक्षः।
स्वर्वते सत्यशुष्माय पूर्वीर्वैश्वानराय नृतमाय यह्वीः।।
ऋग्वेद मन्त्र 1.59.4 (कुल मन्त्र 686)

(बृहती इव) जैसे कि माता, जैसे कि वृद्धि को प्राप्त) (सूनवे) पुत्र के लिए, निर्माता (पिता के लिए) (रोदसी) अन्तरक्षि तथा भूमि (गिरः) परमात्मा द्वारा दिये गये ज्ञान की वाणी के लिए, वेद के लिए (होता) लाने वाला और देने वाला, विद्वान् (मनुष्यः) मननशील मनुष्य (न) जैसे (दक्षः) कार्य करने में दक्ष, कुशल (स्वर्वते) स्वप्रकाशमान्, प्रसन्नता से पूर्ण (सत्यशुष्माय) सत्य की शक्ति के साथ (पूर्वीः) हमें पूर्ण करने वाला (र्वैश्वानराय) सब प्राणियों का कल्याण करने वाले परमात्मा (नृतमाय) मनुष्य को उत्तम नेतृत्व देने वाला (यह्वीः) महान् सार्थक।

व्याख्या :-
जन्म देने वाली माता, धरती माता तथा महान् विद्वानों में कौन सा लक्षण समान हैं?
परमात्मा के क्या लक्षण हैं?

जिस प्रकार जन्म देने वाली माता अपने पुत्र को उसके कल्याण के लिए धारण करती है; जिस प्रकार व्यापक आकाश और धरती माता सबको उनके कल्याण के लिए धारण करते हैं; उसी प्रकार मननशील मनुष्य एक विशेषज्ञ की तरह और वास्तविक कुशल व्यक्ति की तरह विद्वानों को लाता है और उन्हें विद्वता उपलब्ध करवाता है, वह परमात्मा द्वारा दिये गये ज्ञान अर्थात् वेद की महान् और सार्थक वाणियों को सबके कल्याण के लिए धारण करता है।
सभी वाणियाँ परमात्मा द्वारा प्रदत्त हैं जो :-
1. (स्वर्वते) स्वप्रकाशमान्, प्रसन्नता से पूर्ण,
2. (सत्यशुष्माय) सत्य की शक्ति के साथ,
3. (पूर्वीः) हमें पूर्ण करने वाला,
4. (र्वैश्वानराय) सब प्राणियों का कल्याण करने वाले परमात्मा,
5. (नृतमाय) मनुष्य को उत्तम नेतृत्व देने वाला है।

जीवन में सार्थकता : –
हम परमात्मा के लक्षणों की अनुभूति अपने भीतर कैसे कर सकते हैं?

जन्म देने वाली माता, धरती माता और महान् विद्वानों के महान् लक्षण हमें प्रेरित करते हैं कि हमें भी परमात्मा से कुछ न कुछ महान् लक्षण अवश्य धारण करने चाहिए। परमात्मा के अनेकों महान् लक्षण हैं। लगातार उन पर चिन्तन-मनन करने से हम भी उन लक्षणों को धारण कर सकते हैं। परमात्मा सर्वव्यापक है, उसके लक्षण भी सब जगह व्याप्त हैं। अतः हम उनकी अनुभूति प्राप्त कर सकते हैं। परमात्मा स्वप्रकाशित है और प्रसन्नता से भरा पड़ा है। हम भी आत्मिक रूप से परमात्मा का अनुसरण करते हुए उसके सर्वोच्च प्रकाश और प्रसन्नता की अनुभूति प्राप्त कर सकते हैं।
परिवारों, संगठनों, समाज और राष्ट्र के सभी प्रमुखों को अपनी अगली पीढ़ियों के उचित मार्गदर्शन के लिए परमात्मा के लक्षणों की अनुभूति प्राप्त करके उन्हें अपनाना चाहिए।


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