ज्वाला जी का मंदिर*
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डॉ डी के गर्ग
(शिक्षाविद् , लेखक) की कलम से -ः
माँ भगवती ज्वाला जी के नाम से प्रसिद्ध मंदिर जो कि कांगड़ा नगर से 30 किलो मीटर दूर एक नदी के तट पर है। मंदिर अति प्राचीन और हिन्दुओं की 51 शक्ति पीठ में से एक है। मंदिर में कोई मूर्ति नहीं है। एक बड़े से हाल जैसे स्थान पर भूमि से अलग-अलग स्थानों पर 9 स्थानों पर ज्वाला प्रकट हो रही है। इस ज्वाला को ही माँ का स्वरूप मान कर हिन्दू उनकी पूजा करते हैं।
इस मंदिर का प्राथमिक निमार्ण राजा भूमि चंद ने करवाया था। बाद में पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह और हिमाचल के राजा संसारचंद ने 1835 में इस मंदिर का पूर्ण निमार्ण कराया।
यही वजह है कि इस मंदिर में हिंदुओं और सिखों की साझी आस्था है।
यदि ये कहा जाये की ये मंदिर ज्यादा प्राचीन नहीं , लगभग १९० साल पुराना है तो कुछ भी गलत नहीं होगा। परन्तु मंदिर के पण्डे ये कहकर इसको विशेष बना देते है की इसकी खोज पांडवो ने की। पांडवो ने कैसे और कब इसकी खोज कर ली , इसमें संशय है क्योंकि उनका अधिकांश समय तो एकांतवास ,युद्ध और स्वयं को बचाने में रहा और महाभारत में कही भी इस बात का उल्लेख नहीं है।इसलिए इस प्रकार से किसी असत्य को फैलाना ठीक नहीं है।
मंदिर में जो लगातार ज्योति जल रही है, इस प्रकार के प्राक्रतिक दृश्य केवल हमारे देश में ही नहीं,अपितु विश्व के विभिन्न स्थानो पर भी बर्फीली पहाड़ियों के मध्य गर्म पानी के श्रोते /झरने मिलते है।और कही कही तो गरम लावा दिन रात बहता रहता है। अरब देश में एक स्थान पर भूमि में गहरा गड्ढा है और वहां कुछ भी डालो तो गुरुत्वाकर्षण के कारण इसमें फैंकी हुई वास्तु उछलकर वापिस आ जाती है।
ईश्वर की महिमा अपरम्पार है, जिसको वैज्ञानिक अभी तक समझने का प्रयास कर रहे है।
कुछ उदहारण:
१- देहरादून के पास स्थित, सहस्त्रधारा संभवतः भारत में सबसे अधिक व्यावसायिक और लोकप्रिय गर्म पानी के झरनों में से एक है। हज़ारों गर्म पानी के झरने एक मुड़े हुए पैटर्न में बहते हैं जो इसे एक नदी की संरचना बनाते हैं। यह देश के सबसे विशाल गर्म पानी के निकायों में से एक है।
२- दक्षिणी अमेरिका के अमेजन बेसिन में एक ऐसी नदी बहती है, जिसका पानी खौलता रहता है। हैरत की बात ये है कि इसका पानी इतना गर्म रहता है कि अगर इसमें कोई जीव या इंसान गिर जाए तो उसकी मौत निश्चित है। इस नदी की लंबाई 6.4 किलोमीटर, चौड़ाई 82 फीट और गहराई करीब 20 फीट है।नदी में 200 डिग्री फार्नेहाइट पर पानी उबलता हुआ बहता है । यह तापमान इतना है कि अंडे और चावल आसानी से उबाल सकता है। कहा जाता है की यदि कोई जीव इस नदी में गिर जाए तो वो जिंदा नहीं बचता। लोगों का कहना है कि इस नदी में पानी इतना गर्म रहता है की आप उसमें आसानी से चावल तक पका कर खा सकते हैं।
३- भारत के गुजरात और मध्य प्रदेश की मुख्य नदी नर्मदा उल्टी बहती है, यह अपनी धारा के विपरीत पूर्व से पश्चिम की ओर बहती है और अरब सागर में जा कर गिरती है।
4 सूर्य की सतरंगी,इंद्रधनुषी किरणे, स्वत ईश्वर की अनूठी रचना को बताती है।
ऊष्मा के स्रोत -: इस विषय में विज्ञान क्या कहता है ?
गर्म झरने से निकलने वाला पानी भूतापीय रूप से गर्म होता है , अर्थात पृथ्वी के मेंटल से उत्पन्न ऊष्मा से । यह दो तरह से होता है। उच्च ज्वालामुखी गतिविधि वाले क्षेत्रों में, मैग्मा (पिघली हुई चट्टान) पृथ्वी की पपड़ी में उथली गहराई पर मौजूद हो सकती है। इन उथले मैग्मा निकायों द्वारा भूजल गर्म होता है और गर्म झरने में उभरने के लिए सतह पर आ जाता है। हालांकि, उन क्षेत्रों में भी जहां ज्वालामुखी गतिविधि का अनुभव नहीं होता है, पृथ्वी के भीतर चट्टानों का तापमान गहराई के साथ बढ़ता है। गहराई के साथ तापमान में वृद्धि की दर को भूतापीय ढाल के रूप में जाना जाता है। यदि पानी पपड़ी में काफी गहराई तक रिसता है, तो गर्म चट्टान के संपर्क में आते ही यह गर्म हो जाएगा। यह आम तौर पर दोषों के साथ होता है , जहां टूटे हुए रॉक बेड पानी को अधिक गहराई तक प्रसारित करने के लिए आसान मार्ग प्रदान करते हैं।
अधिकांश ऊष्मा प्राकृतिक रूप से रेडियोधर्मी तत्वों के क्षय से बनती है । पृथ्वी से निकलने वाली अनुमानित 45 से 90 प्रतिशत ऊष्मा मुख्य रूप से मेंटल में स्थित तत्वों के रेडियोधर्मी क्षय से उत्पन्न होती है। पृथ्वी में प्रमुख ऊष्मा पैदा करने वाले समस्थानिक पोटेशियम-40 , यूरेनियम-238 , यूरेनियम-235 और थोरियम-232 हैं । जिन क्षेत्रों में ज्वालामुखी गतिविधि नहीं होती है, यह ऊष्मा ऊष्मीय चालन की धीमी प्रक्रिया द्वारा क्रस्ट के माध्यम से प्रवाहित होती है , लेकिन ज्वालामुखी क्षेत्रों में, ऊष्मा मैग्मा के पिंडों द्वारा अधिक तेज़ी से सतह पर ले जाई जाती है।
उपरोक्त सभी का रचियता कौन है?एक ही उत्तर मिलेगा और कोई नहीं ,केवल परमपिता परमेश्वर। उसी की स्तुति करनी चाहिए।
५१ वा शक्ति पीठ कहने के पीछे यह तात्पर्य रहा होगा कि ये प्रकृति के विभिन्न दर्शनीय स्थानों में अन्य की गिनती के साथ 51 वा स्थान है।
इस अनुपम स्थान का देवी और शक्ति नाम का भी ये तात्पर्य है कि ये ईश्वर की अनूठी रचना है,ये रमणीय स्थल नदी के किनारे है ।इसलिए संसार के कोलाहल से दूर यहां ईश्वर की स्तुति करने का उचित स्थान है क्योंकि जल ,अग्नि, सुगंधित वायु ,पर्वत माला आदि सभी आवश्यक संसाधन ईश्वर ने प्रदान किए है।
ईश्वर का अन्य नाम देवी भी है और शक्ति भी है। भावार्थ देखिये —
परमेश्वर के तीनों लिङ्गों में नाम हैं, जैसे—‘ब्रह्म चितिरीश्वरश्चेति’। जब ईश्वर का विशेषण होगा तब ‘देव’, जब चिति का होगा तब ‘देवी’, इससे ईश्वर का नाम ‘देवी’ है।
(शकॢ शक्तौ) इस धातु से ‘शक्ति’ शब्द बनता है। ‘यः सर्वं जगत् कर्तुं शक्नोति स शक्तिः’ जो सब जगत् के बनाने में समर्थ है, इसलिए उस परमेश्वर का नाम ‘शक्ति’है।
दुर्भाग्य से पंडो ने अंधविश्वास फैलाने और ठगने के लिए किसी देवी के ज्योति रूप में जन्म लेने का झूठ फैलाया है।
ये मंदिर कई बार बना और नष्ट हुआ। ईश्वर सर्वव्यापी है आप बुद्धिमानी से विचार करें।
ज्वाला जी का मंदिर –एक बहुत बड़ा झूठ फैलाया है — ध्यान दे
कितना बड़ा मजाक किया गया भारत वर्ष के इतिहास के साथ ,
मंदिर के सूचना पट पर एक सुचना लिखी हुई है ,उस पर लिखा है कि एक बार अकबर इस मंदिर के दर्शन करने आया था, उसने मंदिर में जलती ज्वाला को बुझाने के लिए अपने लोगों को लगाया, किन्तु ज्वाला जब नहीं बुझी तो माता के चमत्कार से प्रभावित होकर अकबर नंगे पैर माँ के दर्शन करने आया, और माता पर सोने का छत्र चढाया, साथ ही मंदिर को कई सौ बीघा भूमि दान दी।
परन्तु वहा के पण्डे पुजारी कभी भी उपरोक्त सूचना का समर्थन नहीं करते और ये बताने में असमर्थ है की ये कई सौ बीघा ज़मीं कहा पर दी है।मेरा ये चैलेंज है कि कोई ये सिद्ध कर दे की कोई जमीन अकबर ने दी है और जमीन दिखा दे तो उचित इनाम दिया जाएगा।
ये सभी भली भांति जानते है कि अकबर मूर्ति भंजक था, उसने हिन्दू धर्म को मिटाने के अनेक प्रयास किये थे। जो इतिहास में लिखे हैं। वो क्रूर इस्लामी जिहादी किसी हिन्दू आस्था पर कभी श्रद्धा नहीं दिखा सकता था, जो अकबर अपने अहंकार और इस्लामी जिहादी फितूर के कारण मेवाड़ को तबाह करने के मनसूबे रखता हों और जो एक ही दिन में चित्तोड़ो दुर्ग के पास 30 हजार साधारण नागरिकों को केवल हिन्दू होने कारण क़त्ल करवा सकता है वो किसी हिन्दू आस्था पर सोने का छत्र चढ़ाएगा.? ये संभव ही नहीं…!
वही रहने वाले भारद्वाज जी सेवा निवृत प्रोफ़ेसर है उन्होंने इतिहास पर कई थीसिस लिखी हैं। उनके अनुसार नूरपुर और चम्बे पर हमला करने के लिए अकबर ज्वाला मंदिर पर आया था। और अकबर ने मंदिर की ज्योति को बुझाने के प्रयास भी किये थे, किन्तु जब पानी की नहर लाकर भी अकबर ज्योति को बुझा नहीं पाया, तब मंदिर का विध्वंस करवा कर चला गया था!उसने ज्वाला स्थल पर बने मंदिर को नष्ट करवाया, वहां के सभी सेवादार और पुजारी आदि सबको मृत्यु दंड देकर मार दिया, ज्योति स्थल को बड़े बड़े शिलाओं से ढक कर चला गया था.!
बाद में चंबा के राजा संसार चंद ने मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया था और महाराजा रणजीत सिंह ने मंदिर पर सोने का छत्र लगवाया था,साथ ही महाराजा के पुत्र शेरसिंह ने मंदिर के मुख्य द्वार को चांदी के द्वारों से सजाया था।
उनका भी ये कहना है की मंदिर पर लिखी सूचना हिन्दू समाज की मूर्खता और जिहादी कौम की चालाकी दिखाता एक झूठ है। सरकारी आदेश से ये सूचना इसलिए लिखवाई गई है जिससे हिन्दू मुस्लिम में भाई चारा बढ़े और अकबर को महान बनाया जा सकें…!
हमारे देश के वामपंथी इतिहासकारों ने हमसे किस तरह एक एजेंडे के तहत झूठ बोला है।
कृपया उपरोक्त लेख पर अपना मत / विचार देने की कृपा करे !