- दिल्ली के होटल अमलतास इंटरनेशनल में संपन्न हुआ ऐतिहासिक कार्यक्रम, उपस्थित रहीं कई अंतरराष्ट्रीय प्रतिभाएं
- संस्कृत के ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित डॉक्टर सत्यव्रत शास्त्री बोले आज का दिन स्वर्णाक्षरों में लिखने योग्य
- अंतर्राष्ट्रीय आर्य विद्यापीठ के अध्यक्ष प्रोफेसर डॉ श्याम सिंह शशि ने कहा श्री आर्य मेरे मानस पुत्र
नई दिल्ली। विगत 17 जुलाई को यहां स्थित होटल अमलतास इंटरनेशनल ग्रीन पार्क में आयोजित किए गए अंतर्राष्ट्रीय अनुसंधान संस्थान से संबद्ध अंतर्राष्ट्रीय आर्य विद्यापीठ के ‘सारस्वत समारोह ‘ में चार दर्जन शोधग्रंथों के लेखक और इतिहासविद राकेश कुमार आर्य को डॉक्टरेट की उपाधि से सम्मानित किया गया । श्री आर्य को यह उपाधि उपरोक्त आर्य विद्यापीठ के अध्यक्ष प्रो0 ( डॉ ) श्यामसिंह शशि एवं अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त संस्कृत भाषा के प्रथम ज्ञानपीठ विजेता पदम भूषण प्रोफेसर डॉक्टर सत्यव्रत शास्त्री द्वारा प्रदान की गई । इस अवसर पर शिक्षा मंत्रालय भारत सरकार के पूर्व निदेशक सोमदत्त दीक्षित एवं संस्कृत व हिंदी के प्रख्यात लेखक डॉ अरविंद भी उपस्थित रहे । डॉ सत्यव्रत शास्त्री ने श्री आर्य को दी गई इस उपाधि के संबंध में बोलते हुए कहा कि यह एक ऐतिहासिक कार्य संपन्न हुआ है जो कि स्वर्णिम अक्षरों में लिखे जाने योग्य है । क्योंकि आज के समय में एक सही प्रतिभा को खोजकर लाना और उसे सम्मानित करना बड़ा दुष्कर होता जा रहा है । उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय आर्य विद्यापीठ के द्वारा श्री आर्य के नाम का प्रस्ताव आना सचमुच एक सही और पात्र प्रतिभा को सम्मानित करने के समान है । जिसके लिए डॉ शशि बधाई के पात्र हैं ।संस्कृत और भारतीय संस्कृति के प्रचार-प्रसार के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सराहनीय कार्य करने वाले डॉक्टर सत्यव्रत शास्त्री ने कहा कि इस समय भी संस्कृत और भारतीय संस्कृति के प्रचार-प्रसार की बड़ी चुनौती आज के युवाओं के सामने खड़ी है , जिसे स्वीकार करना समय की आवश्यकता है । वैश्विक मानस और चिंतन की साक्षात प्रतिमूर्ति डॉक्टर शास्त्री ने अपने प्रेरणादायी और उत्साहवर्धक संबोधन में कहा कि विदेशों में बड़ी संख्या में ऐसे लोग आज भी हैं जो अपने मूल को भारत से जुड़ा हुआ देखकर गर्व और गौरव की अनुभूति करते हैं , इतना ही नहीं वे भारत के साथ जुड़े रहने में आत्म गौरव की अनुभूति भी करते हैं। एक तपस्वी साधक की भांति बोलते हुए डॉक्टर शास्त्री ने आज की युवा पीढ़ी और विशेषकर सारस्वत समारोह में सम्मानित होने वाले डॉक्टर राकेश आर्य से विशेष अपेक्षा की कि वह ‘ उगता भारत ‘ समाचार पत्र के माध्यम से भारत की संस्कृति की ज्योति को और भी अधिक दीप्तिमान करने के संघर्ष से पीछे न् हटें ।अपने आत्मीय और सर्व सम्मोहक संबोधन को निरंतर जारी रखते हुए डॉक्टर शास्त्री ने कहा कि मैं ‘उगता भारत ‘ के प्रयास से बहुत ही अभिभूत हूं । मेरा संबोधन समस्त ‘उगता भारत ‘ परिवार के लिए है । मेरा मानना है कि ‘ उगता भारत ‘ की सभी को आवश्यकता है । उन्होंने कहा कि उगता भारत का अर्थ उदीयमान भारत है ,और ऐसा कौन राष्ट्रभक्त होगा जो उदीयमान भारत की आशा और अपेक्षा न करता होगा ?
इस अवसर पर अंतर्राष्ट्रीय आर्य विद्यापीठ के अध्यक्ष और अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त व लब्ध प्रतिष्ठित प्रो0 ( डॉ ) श्यामसिंह शशि ,जो कि सारस्वत समारोह की अध्यक्षता भी कर रहे थे , ने कहा कि वह श्री आर्य को अपना मानसपुत्र समझकर इस उपाधि से अलंकृत कर रहे हैं । उन्होंने कहा कि आज के समय में विधि व्यवसायी और एक पत्र का संपादक होकर 48 पुस्तकों का लेखन कार्य करना अपने आप में बहुत महत्वपूर्ण है । यह तब और भी अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है जब सारे ही ग्रंथों में शोधपूर्ण तथ्यों को समाविष्ट कर लेखक श्री आर्य ने ऐतिहासिक काम कर दिखाया हो।
डॉ श्याम सिंह शशि ने कहा कि उनकी यह संस्था 1968 में स्थापित हुई थी और उन्हें आज इस बात की बहुत प्रसन्नता है कि आज पहली बार एक पात्र व्यक्ति को संस्था के द्वारा पुरस्कृत कर ऐतिहासिक कार्य संपन्न हुआ है ।डॉ शशि ने कहा कि विदेशों में रहने वाले भारतीय मूल के लोग कभी यायावर के रूप में वहाँ गए थे , पर वे सदियों के पश्चात भी अपनी परंपराओं को भूले नहीं हैं । यही कारण है कि वे आज भी भारत को विश्वगुरु के रूप में स्थापित होते देखना चाहते हैं ।डॉ शशि ने कहा कि संपूर्ण भूमंडल पर सर्वत्र सभी देशों में भारतीय मूल के लोग फैले पड़े हैं । जो भारत को बड़े अंतर्मन से चाहते हैं । इसलिए परिस्थितियों की अनुकूलता का लाभ उठाकर भारत को फिर विश्व गुरु के रूप में स्थापित करने की आवश्यकता है । उन्होंने कहा कि इस महान कार्य को ‘उगता भारत ‘ के माध्यम से हम संपन्न करेंगे। उन्होंने समाचार पत्र के संपादक श्री आर्य और संपूर्ण उगता भारत परिवार को अपना आशीर्वाद देते हुए कहा कि वह जिस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए संघर्ष कर रहे हैं , उससे पीछे न् हटें , भोर होगा और भारत भोर के तारे की भांति विश्व के गगन मंडल पर जब अपनी दिव्य आभा उत्कीर्ण करेगा तो उसमें निश्चित ही ‘उगता भारत ‘ के प्रयासों को बहुत महत्वपूर्ण माना जाएगा।
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