manu mahotsav banner 2
Categories
भारतीय संस्कृति

जैन मत समीक्षा* भाग ___ 15

*

डॉ डी के गर्ग

निवेदन : ये लेखमाला 20 भाग में है। इसके लिए सत्यार्थ प्रकाश एवं अन्य वैदिक विद्वानों के द्वारा लिखे गए लेखों की मदद ली गयी है। कृपया अपने विचार बताये और उत्साह वर्धन के लिए शेयर भी करें।
भाग-15

जैन मत में गपोड़े और अंधविश्वास

जैन धर्मग्रंथ कल्पभाष्य में लिखा है कि—“ऋषभदेव से लेके महावीर पर्य्यन्त २४ तीर्थङ्कर सब मोक्ष को प्राप्त हुए।”
अब और थोड़ी सी असम्भव बातें इनकी सुनो—
विवेकसार पृष्ठ ७८—एक करोड़ साठ लाख कलशों से महावीर को जन्म समय में स्नान कराया।
श्राद्धनिकृत्य आत्मनिन्दा भावना पृष्ठ ३१ में लिखा है कि—बावड़ी, कुआ और तालाब न बनवाना चाहिये। तालाब आदि बनवाने से जीव पड़ते हैं, उससे बनवानेवाले को पाप लगता है, इसलिये हम जैनी लोग इस काम को नहीं करते।
समीक्षक—भला, जो सब मनुष्य जैनमत में हो जायें और कुआ, तालाब, बावड़ी आदि कोई भी न बनवावें, तो सब लोग जल कहाँ से पियें?
आप लोग क्षुद्र-क्षुद्र जीवों के मरने से पाप गिनते हो, तो बड़े-बड़े गाय आदि पशु और मनुष्यादि प्राणियों के जल पीने आदि से महापुण्य होगा, उसको क्यों नहीं गिनते?
तत्त्वविवेक पृष्ठ १९६—इस नगरी में एक नन्द मणिकार सेठ ने बावड़ी बनवाई, उससे धर्मभ्रष्ट होकर सोलह महारोग हुए, मरके उसी बावड़ी में मेडूका हुआ, महावीर के दर्शन से उसको जातिस्मरण हो गया। महावीर कहते हैं कि मेरा आना सुनकर वह पूर्व जन्म के धर्माचार्य्य जान वन्दना को आने लगा। मार्ग में श्रेणिक के घोड़े की टाप से मरकर शुभ ध्यान के योग से दर्दुराङ्क नाम महर्द्धिक देवता हुआ। अवधिज्ञान से मुझको यहाँ आया जान वन्दनापूर्वक ऋद्धि दिखाके गया।
रत्नसार पृष्ठ १०४— बगीचा लगाने से एक लक्ष पाप माली को लगता है।
समीक्षक—जो माली को लक्ष पाप लगता है, तो अनेक जीव पुष्प, फल और छाया से आनन्दित होते हैं, तो करोड़ों गुणा पुण्य भी होता ही है। इस पर कुछ ध्यान भी न दिया, यह कितना अन्धेर है?
तत्त्वविवेक पृष्ठ २०२—एक दिन लब्धि साधु भूल से वेश्या के घर में चला गया और धर्म से भिक्षा मांगी। वेश्या बोली कि यहां धर्म का काम नहीं, किन्तु अर्थ का काम है, तो उस लब्धि साधु ने साढ़े बारह लाख अशर्फी-वर्षा, उसके घर में कर दी।
समीक्षक—इस बात को सत्य विना नष्टबुद्धि पुरुष के कौन मानेगा?
रत्नसार भाग १ पृष्ठ ६७ में लिखा है कि—एक पाषाण की मूर्त्ति घोड़े पर चढ़ी हुई, उसका जहाँ स्मरण करें वहां उपस्थित होकर रक्षा करती है।
समीक्षक—जैन भाई आजकल तुम्हारे यहां चोरी, डाका आदि और शत्रु से भय होता ही है तो तुम उसका स्मरण करके अपनी रक्षा क्यों नहीं करा लेते हो? क्यों जहाँ-तहाँ पुलिस आदि राज-स्थानों में मारे-मारे फिरते हो?

आगे और भी गप्प देखो —
विवेकसार पृष्ठ १०१ में —एक नन्दीषेण ने दश पूर्व तक भोग किया। एक मुनि वेश्या के घर में रहा, भोग किया, फिर मुनि की दीक्षा ले, स्वर्ग को गया। और स्थूलभद्र मुनि भी ऐसा ही काम करके स्वर्ग को गया।
विवेकसार पृष्ठ २२८ में—एक पुरुष ने कोशा वेश्या का भोग किया, पश्चात् त्यागी होकर स्वर्ग को गया।
विवेकसार पृष्ठ १०१ में—अर्णकमुनि चरित्र से चूक, कई वर्ष तक सेठ के घर में भोग किया, पश्चात् देवलोक को गया।
विवेकसार पृष्ठ १०६ में —श्रीकृष्ण तीसरे नरक में गये।
विवेकसार पृष्ठ १४५ में— धन्वन्तरि वैद्य नरक को गया।
रत्नसार भाग १ पृष्ठ १५१—जलचर गर्भज जीवों का देहमान उत्कृष्ट एक सहस्र योजन अर्थात् १००००००० एक क्रोड़ कोशों का और आयुमान एक क्रोड़ पूर्व वर्षों का होता है।
समीक्षा –इतने बड़े शरीर और आयुवाले जीवों को भी इन्हीं के आचार्यों ने स्वप्न में देखे होंगे! क्या यह महा झूठ बात नहीं कि जिसका कदापि सम्भव न हो सके?ज्यादा समीक्षा की कोई आवश्यकता नहीं , ये हम पाठकों के विवेक पर छोड़ देते है।

Comment:Cancel reply

Exit mobile version