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आर्य प्रतिनिधि सभा, उत्तर प्रदेश के प्रधान एवं मंत्री रहे श्री धर्मेन्द्र सिंह आर्य (1924-1996) उच्च कोटि के ऋषिभक्त और आर्यसमाज के दीवाने थे। वह उत्तम जीवन एवं सदाचार युक्त आचरण के धनी थे। आपका जन्म उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जनपद के एक ग्राम पिलखनी में सन् 1924 में आर्यसमाजी पिता श्री रामशरण आर्य जी के यहां हुआ था। आपके पिता भजनों सहित मैजिक लैनटेन पर गोरक्षा, दहेज विरोधी तथा नशाबन्दी का स्लाइडों को दिखाकर प्रचार करते थे। श्री धर्मेन्द्र सिंह आर्य ने पंजाब नैशनल बैंक में सेवा की और उसके उच्च पदों को सुशोभित किया। देहरादून में भी आप बैंक के कार्यालयों में वर्षों तक रहे। आप बैंक के अधिकारियों व कर्मचारियों के संघ के भी प्रमुख अधिकारियों में से थे।
पं. प्रकाशवीर शास्त्री, पूर्व सांसद के आप निकटतम् मित्र थे। पं. प्रकाशवीर शास्त्री जी आर्य प्रतिनिधि सभा उत्तर प्रदेश के यशस्वी प्रधान रहे हैं। श्री धर्मेन्द्र सिंह आर्य उनके साथ वर्षों तक आर्य प्रतिनिधि सभा, उत्तर प्रदेश के सभामंत्री रहे और आपके कार्यकाल में प्रतिनिधि सभा उन्नति पर आरूढ़ थी। उनके समय में सभा के कार्य निष्पक्षता के साथ न्यायपूर्वक होते थे। आप अपने जीवन में सदाचारी, सन्ध्या व हवन करने वाले सच्चे ईश्वर भक्त थे। हमनें आर्यसमाज धामावाला, देहरादून में आपके प्रवचन भी सुने और आपके घर आपसे वार्तालाप करने का भी हमें अनेक बार अवसर मिला है। आप कुशल प्रशासक थे। आर्यसमाज के प्रचार की आपको धुन रहा करती थी। लगभग 40-50 वर्ष पूर्व देहरादून के गांवों में ईसाई मत का प्रचार जोरों पर था। आपने शास्त्रार्थ के लिये पं. ओम् प्रकाश शास्त्री, खतौली व एक भजनोपदेशक को बुलाकर ईसाई मत के प्रचार से प्रभावित ग्रामों में शास्त्री जी का प्रचार कराया था और शास्त्रार्थ भी कराया था। इस कार्य में आपने अपनी ओर से धन व्यय किया था जिसकी जानकारी हमें इस कारण से मिल सकी कि हम आपके निकट थे और बहुत सी बातें आप हमसे साझा कर लेते थे।
हरिद्वार में पं. प्रकाशवीर शास्त्री जी ने एक तीन मंजिला आर्यसमाज का भवन बनवाया था जिससे आर्यसमाज से जुड़े लोग जब हरिद्वार घूमने आयें तो वह अपने परिवारों के सदस्यों सहित उस मन्दिर में ठहरे। मन्दिर में होटलों के ही समान कमरे व किचन आदि बनाये गये थे। आजकल इस आर्यसमाज मन्दिर, हरिद्वार की देखभाल आर्य प्रतिनिधि सभा, उत्तर प्रदेश के प्रतिनिधि श्री वीरेन्द्र पंवार करते हैं। हमारा अनुमान है कि यहां बड़ी संख्या में यात्री आते हैं जो 90 से 95 प्रतिशत पौराणिक होते हैं। उनका उद्देश्य तीर्थ यात्रा से पुण्य लाभ अर्जित करना होता है। यह लोग आर्यसमाज मन्दिर में ठहरते हैं। इस वृहद भवन का निर्माण श्री धर्मेन्द्र सिंह आर्य की देख रेख में हुआ था। जिन दिनों इस भवन का निर्माण हुआ उन दिनों श्री धर्मेन्द्र सिंह आर्य हरिद्वार के निकट हरिद्वार से 55 किमी. दूरी पर स्थित ‘‘पुरकाजी” कस्बे की पीएनबी की शाखा के प्रबन्धक थे। सप्ताह में अनेक बार आप हरिद्वार आते थे और वहां चल रहे कार्यों का निरीक्षण कर कार्यों को सुव्यस्थित चलाने में सहयोग करते थे। आपकी देखरेख में यह भवन बनकर तैयार हुआ। यह कैसा आश्चर्य है कि बाद में इसे कुछ लोगों से खाली कराने के लिये आपको सत्याग्रह वा धरना देना पड़ा था। हमें याद आता है कि आपका व आर्यसमाज के कुछ लोगों का इस कारण से पुलिस द्वारा चलान भी हुआ था। यह कैसी विडम्बना है कि आर्यसमाज के लोग अपनी समस्याओं को बातचीत से हल नहीं कर पाते और उन्हें व्यवस्था ठीक चले, इसके लिये अपने तन, मन व धन को अनावश्यक कार्यों में भी लगाना पड़ता है। हमें यह भी ज्ञात हुआ था कि श्री धर्मेन्द्र सिह आर्य जी को उनके कुछ विरोधी लोगों ने देहरादून से स्थानान्तरित कराया था। इसका कारण देहरादून के कुछ आर्यजनों का उनसे विरोधभाव था। हमें आर्यसमाज के पुराने विवादों का भी ज्ञान है परन्तु उनका उल्लेख कर अब कोई लाभ नहीं है। इतना तो कहना ही होगा कि यदि पुराने लोगों में परस्पर वैरभाव न होता तो आर्यसमाज का काम कहीं अधिक हो सकता था। हम भी पुरानें लोगों के वैरभाव व अन्य कारणों से पीड़ित हुए। आज सब कुछ सामान्य हैं। आज यहां जो अधिकारी हैं वह हमें सम्मान देते हैं परन्तु अभी भी उत्तराखण्ड के कुछ नेताओं की नेतागिरी के कारण विवाद समाप्त नहीं हो रहे हैं और यहां अब भी दो सभायें कार्यरत हैं।
श्री धर्मेन्द्र सिंह आर्य शिक्षा जगत से जुड़े रहे। आप आर्यसमाज धामावाला के पुराने प्रधान श्री ज्योति स्वरूप जी द्वारा स्थापित महादेवी कन्या पाठशाला के लम्बे समय तक प्रबन्धक रहे। उनसे पूर्व आर्यसमाज के शीर्ष विद्वान डा. सत्यव्रत सिद्धान्तालंकार इस संस्था के प्रबन्धक हुआ करते थे। श्री धर्मेन्द्र सिंह आर्य के समय में ही यह संस्था उन्नति करते हुए एक पाठशाला से स्नात्नकोत्तर महाविद्यालय के उच्च शिखर तक पहुंची और वर्तमान में यह उत्तराखण्ड राज्य की महिलाओं की सबसे बड़ी संस्था है जहां सहस्रों की संख्या में कन्यायें वा युवतियां अध्ययन करती हैं। श्री धर्मेन्द्र सिंह आर्य ने अपने जीवन काल में अनेक शिक्षा संस्थाओं की स्थापना की और अनेकों विद्यालयों के संचालन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके द्वारा स्थापित कुछ विद्यालय इण्टर व स्नातक स्तर के विद्यालय बन चुके हैं। ऐसा ही एक इण्टर कालेज विद्यालय जनपद हरिद्वार के बहादराबाद में है। आपके आर्य प्रतिनिधि सभा, उत्तर प्रदेश के मंत्रीत्व-काल में मेरठ में सभा की ओर से आर्यसमाज की स्थापना शताब्दी का वृहद आयोजन हुआ था। इस सम्मेलन में नैपाल के राजा मुख्य अतिथि थे अथवा उनकी अध्यक्षता में यह समारोह सफलतापूर्वक सम्पन्न हुआ था। देहरादून में वैदिक साधन आश्रम तपोवन है, आप आरम्भ के दिनों में इस संस्था से जुड़े और आपने ही इसका विधान बनाकर इसे पंजीकृत कराया था। आप इस सोसायटी के स्थापक सदस्यों में भी रहे। यह आश्रम बावा गुरमुख सिंह के दान से आर्यसमाज के प्रसिद्ध संन्यासी महात्मा आनन्द स्वामी जी ने स्थापित किया था। इस संस्था के बावा गुरमुख सिंह और महात्मा आनन्द स्वामी के समय के एक सदस्य श्री भोलानाथ हमारे बहुत करीबी रहे हैं। कई वर्ष पूर्व वह दिवंगत हो चुके हैं।
सन् 1995 में आर्य प्रतिनिधि सभा, उत्तर प्रदेश में सभा के निर्वाचन में हमें भी भाग लेने का अवसर मिला था। इस चुनाव से उत्पन्न अनेक विवाद वर्षों तक चलते रहे थे। इन विवादों के कारण सत्यनिष्ठ और ऋषिभक्त श्री धर्मेन्द्र सिंह जी को अनेक पीड़ाओं से गुजरना पड़ा। इसी के चलते 10 अक्टूबर सन् 1996 को उन्हें देहरादून में अपने निवास पर तीव्र हृदयाघात पड़ा था और उनकी मृत्यु हो गई थी। मृत्यु से कुछ महीने पहिले दिल्ली में एक सड़क दुर्घटना में उनके सिर में गहरी चोट आई थी। इस दुर्घटना के बाद वह स्वस्थ हो गये थे और उनको नया जीवन मिला था। इसके बाद भी वह आर्यसमाज में सक्रिय रहे। उनके एक निकट मित्र आर्य उपदेशक पं. धर्मपाल शास्त्री, काशीपुर, उत्तराखण्ड उनके परिवार से जुड़े हुए हैं। वह जब देहरादून आते हैं तो श्री धर्मेन्द्र सिंह आर्य और आर्य विद्वान् प्रा. अनूप सिंह के परिवार के सदस्यों से मिलते हैं और धर्मेन्द्र सिंह आर्य के परिवार में निवास करते हैं।
श्री धर्मेन्द्र सिंह आर्य आर्यसमाज के सच्चे सेवक व कार्यकत्र्ता थे। वह अनेक बार आर्यसमाज धामावाला, देहरादून के मंत्री भी रहे। सन् 1962 में जब चीन ने भारत पर आक्रमण किया था तो श्री धर्मेन्द्र सिंह आर्य आर्यसमाज धामावाला के मंत्री थे। रेडियो पर चीन के भारत पर आक्रमण की खबर आई। आर्यसमाज का वार्षिकोत्सव 20 अक्टूबर, 1962 को आरम्भ हुआ था जिसमें पं. प्रकाशवीर शास्त्री जी पधारे थे। देश पर आक्रमण के दिन पं. प्रकाशवीर शास्त्री जी का व्याख्यान हुआ। उन्होंने श्रोताओं को देश की रक्षा के लिये दान की अपील की। उनकी वाणी व अपील का सकारात्मक प्रभाव हुआ। हमने पुराने लोगों से सुना है कि उनकी अपील पर लोगों ने अपने आभूषण वा जेवर उतार कर आर्यसमाज को दे दिये थे। भारत सरकार को रक्षा कोष में सहयोग के लिए पांच हजार रूपये की धनराशि सहायतार्थ भेजी गई थी। सन् 1962 में सोना 119 रुपये प्रति 10 ग्राम था। इस प्रकार 5000 रुपये का 42 ग्राम सोना आता था। आज यह राशि लगभग 30 लाख रुपये के बराबर होती है। लोगों ने जो आभूषण आदि दिये थे उससे एक सोने की तलवार बनाई गई थी जिसका वजन 1008 ग्राम था। इसका मूल्य आज के सोने के भाव के हिसाब से 71.00 लाख रुपये होता है। यह तलवार आर्यसमाज के प्रतिनिधि मण्डल ने दिल्ली जाकर तत्कालीन रक्षा मंत्री श्री यशवन्तराव चव्हाण जी को भेंट की थी। दिल्ली गये प्रतिनिधि मण्डल में आर्यसमाज के प्रधान श्री जयराम ओबेराय एवं श्री धर्मेन्द्र सिंह आर्य का नाम प्रमुख है। हमने श्री यशवन्तराव चव्हाण जी को तलवार भेंट करते हुए चित्र को देखा है जो धर्मेन्द्र सिंह आर्य की बैठक में शोभायमान होता था। यह चित्र आर्यसमाज धामावाला देहरादून के सभागार में भी लगाया गया है। उनके साथ बिताया हमारा समय हमें अनेक अनुभवों को प्राप्त कराने वाला था। यदि वह और अधिक जीवित रहते तो आर्यसमाज की और अधिक सेवा करते। उनके चले जाने से देहरादून में आर्यसमाज का एक बड़ा स्तम्भ ढह गया था।
श्री धर्मेन्द्रसिंह आर्य जी के पुत्र श्री सुरेन्द्र आर्य जी व परिवारजन उनके देहरादून के भगवानदास स्वाटर्स स्थित भवन मे निवास करते हैं। हम आर्यसमाज के सत्संग व बाजार किसी कार्य से जाते थे तो उनका घर देखकर पुरानी स्मृतियां सजीव हो उठती थीं। श्री धर्मेन्द्रसिंह आर्य जी को संसार से गये लगभग 28 वर्ष हो चुके हैं। हम श्री आर्य जी को श्रद्धांजलि देते हैं और ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि श्री आर्य जैसे समर्पित ऋषिभक्त कार्यकर्ता और नेता आर्यसमाज को मिलें जिससे आर्यसमाज का प्रचार वृद्धि को प्राप्त हो सके। ओ३म् शम्।
-मनमोहन कुमार आर्य