(सत्यशील अग्रवाल – विनायक फीचर्स)
हमारे देश की सरकार देश के सभी बुजुर्गों का भरण पोषण करने में (सरकारी कर्मचारियों को छोड़ कर) असमर्थ होते हुए भी अन्य अनेक ऐसे उपाय कर सकती है जो बुजुर्गों के लिए लाभदायक सिद्ध हो सकते हैं और सरकार के राजकोष पर अधिक बोझ भी नहीं पड़ेगा जो निम्न लिखित हैं।
चिकित्सा व्यवस्था- प्रत्येक शहर और देहात में ,दस लाख की आबादी को एक क्षेत्र मानते हुए कम से कम एक चिकित्सालय की व्यवस्था हो जो उस क्षेत्र के सभी बुजुर्गों के स्वास्थ्य के लिए जिम्मेदार हो। उस क्षेत्र के बुजुर्गों को विशेष रूप से स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराएँ, वह भी मुफ्त या न्यूनतम शुल्क लेकर। प्रत्येक चिकित्सालय के पास चल चिकित्सालय हो जो बुजुर्गों के आकस्मिक काल पर मुफ्त में उपलब्ध हो सकें।चल चिकित्सालय द्वारा ही क्षेत्र के सभी बुजुर्गों का मासिक स्वास्थ्य परिक्षण हो, तथा आवश्यक पेथोलोजी जाँच करायी जाएँ। इन चिकित्सालयों की व्यवस्था स्वयं सेवी संस्थाओं द्वारा संचालित हो, और आर्थिक आवश्यकताएं सरकारी योगदान तथा जनता से प्राप्त धनराशि से पूरी करायी जाएँ।
शहर के प्रत्येक परामर्श चिकित्सक को सरकार निर्देशित करे की वे देश के वरिष्ठ नागरिकों से आधी फीस वसूल करें,यदि संभव हो तो मुफ्त सेवा दें ,साथ ही शल्य चिकित्सा की व्यवस्था भी रियायती दरों पर करें। उनके इस योगदान के लिए सरकार उन्हें आयकर में छूट प्रदान करे।
वृद्धाश्रम व्यवस्था-
प्रत्येक शहर में कम से कम दो वृद्धाश्रमों की व्यवस्था हो जिसमें एक वृद्धाश्रम में बिलकुल मुफ्त में प्रवास की व्यवस्था हो और एक अन्य में अतिरिक्त सुविधाएँ प्रदान कर न्यूनतम शुल्क लेकर प्रवास करने की व्यवस्था हो। जिनके प्रबंधन की जिम्मेदारी स्वयं सेवी संस्थाओं को दी जाय और आर्थिक संरक्षण केंद्र सरकार तथा प्रदेश सरकार मिल कर करें। सभी वृद्धाश्रमों में मानवीय सुविधाएँ और चिकित्सा सुविधाएँ, नियमित रूप से सुनिश्चित करायी जाएँ ताकि जो बुजुर्ग किसी कारण वश अपने परिवार के साथ रह पाने में असमर्थ हों या जो बुजुर्ग दंपत्ति अशक्त होते हुए भी अकेले रहने को मजबूर हैं, के लिए रहने का सुरक्षित विकल्प उपलब्ध कराया जा सके। जहाँ पर वृद्ध लोग अपने शेष जीवन को मान सम्मान और शांति के साथ व्यतीत कर सकें।
रोजगार व्यवस्था
वृद्ध समाज में अनेक बुजुर्ग ऐसे है जो शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ्य हैं और कुछ न कुछ कार्य करने के इच्छुक रहते हैं, उन्हें कम परिश्रम वाले कार्य करने के अवसर उपलब्ध कराय जाएँ। जिससे उनका समय भी व्यतीत हो सके और कुछ धन की प्राप्ति भी हो सके, और उनको आत्मविश्वास से जीने का सौभाग्य प्राप्त हो। ऐसे समर्पित बुजुर्गों के लिए अलग से कोई मध्यम स्तर का या बड़े स्तर का उद्योग प्रत्येक शहर में स्थापित किया जाय. जिसमे अधिक से अधिक बुजुर्गों को कार्य करने के अवसर दिए जाएँ। इन उद्योगों में शिक्षण संस्थान, प्लांट नर्सरी उद्योग, रिटेल स्टोर,पत्र पत्रिका प्रकाशन, चिकित्सालय, वाचनालय इत्यादि संभावित उद्योग हो सकते हैं। ऐसे संस्थानों में बुजुर्गों को पारिश्रमिक उनके कार्य के घंटो के अनुसार देने का प्रावधान हो ताकि उन्हें समय की कोई बंदिश न हो। वे अपनी क्षमता के अनुसार समय देने को स्वतन्त्र हों।
पुस्तकालय-वाचनालय की व्यवस्था-
शहर के प्रत्येक मोहल्ले में एक वाचनालय की व्यवस्था हो जो प्रत्येक बुजुर्ग के लिए पैदल चल कर पहुँच में हो। जिसका संचालन स्थानीय जनता करे और सरकार अपना सहयोग एवं आर्थिक अंशदान दे। ताकि बुजुर्ग अपना खाली समय ज्ञानार्जन करते हुए या मनोरंजन करते हुए बिता सकें। अन्य साथियों से मेल मुलाकात कर सकें।
आयकर में छूट-
अनेक बुजुर्ग ऐसे भी हैं जिनकी संतान महत्वपूर्ण पदों पर आसीन है, उद्योगपति हैं ,व्यापारी हैं और आयकर विभाग को टैक्स के रूप में भारी भरकम रकम भी चुकाते हैं तथा अपने बुजुर्गों को जीवन यापन के लिए अपने आय के स्रोतों से धन उपलब्ध कराते हैं ,या उनके साथ उनके बुजुर्ग उन पर निर्भर रहते हुए उनके साथ रहते हैं ,उन्हें आयकर में इतनी छूट दी जाये जो बुजुर्ग के भरण पोषण के लिए उसके जीवन स्तर के अनुसार आवश्यक हो।ताकि बुजुर्ग अपने को आश्रित अनुभव कर अपमान का अहसास न करें या संतान पर बोझ न बने।
सुरक्षा की व्यवस्था-
वरिष्ठ नागरिकों की सुरक्षा के लिए शासन एवं प्रशासन द्वारा स्पेशल व्यवस्था की जानी चाहिए। थानाध्यक्षों को अपने क्षेत्र के बुजुर्गों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के स्पष्ट आदेश दिए जाने चाहिए। उनकी शिकायतों को प्राथमिकता के आधार पर सुना जाय और उनकी शिकायतों का समाधान भी प्राथमिकता के आधार पर होना चाहिए।उनके सम्मान का पूरा पूरा ध्यान रखा जाय, उन्हें हर प्रकार के संभावित शोषण या प्रताडऩा से बचाने के उपाए किये जाने चाहिये।
मियादी जमा पर अधिक ब्याज-
वर्तमान समय में सभी बैंकों द्वारा वरिष्ठ नागरिकों को मियादी जमा पर आधा प्रतिशत अतिरिक्त ब्याज दिया जाता है। जो बुजुर्ग के लिए कोई विशेष लाभकारी सिद्ध नहीं होता। यदि इस अतिरिक्त ब्याज दर को दो प्रतिशत कर दिया जाय तो बुजुर्गों को निरंतर बढ़ती महंगाई में अपने भरण पोषण में मदद मिल सकती है। अतिरिक्त ब्याज का बोझ बैंकों पर न डाल कर प्रदेश और केंद्र सरकारें मिल कर अपने राजकोष से पूरा करें।
संगठन की आवश्यकता-
सभी बुजुर्गों को अपने मोहल्ले में छोटे छोटे समूह बनाकर एकत्र होना चाहिए और शहरी स्तर पर एक बड़े संगठन के रूप में एक जुट होना चाहिए। इन समूहों के माध्यम से और संगठन के माध्यम से सभी बुजुर्गो के हितों को ध्यान में रखते हुए अपनी कार्य शैली निर्धारित करनी चाहिए। बुजुर्गों की समस्याओं पर विचार विमर्श होते रहने चाहिए। उनके कल्याण के लिए शासन और प्रशासन के समक्ष अपनी मांगे रखनी चाहिए। यदि आवश्यक हो तो संघर्ष के लिए सबको तैयार किया जाय। ये सभी कार्य किसी एक व्यक्ति द्वारा संभव नहीं हो सकते. अत: संगठन का होना आवश्यक है। संगठित होकर बुजुर्ग चिंतामुक्त, तनाव मुक्त एवं सुरक्षित जीवन व्यतीत कर सकते हैं। (विनायक फीचर्स)
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