- दिव्य अग्रवाल (लेखक व विचारक)
शरीयत एक इस्लामिक कानून है जिसमें सारे नियम मजहबी कटटरपंथी निर्मित एवं पोषित हैं। भारतीय संसद में जिस प्रकार संविधान को हाथ में लेकर , कोई फिलिस्तीन की जय बोल रहा है,कोई इस्लामिक इबादत पढ़ रहा है ,कोई कह रहा है की आतंकवादी को उसके मजहब से पहचानने पर आपत्ति है लेकिन वास्तविक संविधान की बात कोई नहीं कर रहा। देश के सांसद जिन्हे भारतीय जनता ने सांसद बनाकर भेजा वो भारत की नहीं फिलिस्तीन की बात कर रहे हैं,जमूरियत की बात कर रहे हैं, इस्लामिक इबादत कह रहे हैं पर किसी भी अन्य सांसद को देश का संविधान खतरे में नजर नहीं आया । आज इस्लामिक विचारधारा से प्रेरित सांसदों की संख्या कम होने पर भी मजहबी विचारधारा पूरा देश देखने और सुनने को मजबूर है । कल्पना कीजिए यदि इसी प्रकार मजहबी विचार पोषित होता रहा तो भारत का प्रतिनिधित्व किसके हाथ में रहेगा , क्या भारत का संरक्षण भारतीय जनप्रतिनिधि कर पाएंगे । क्योंकि भारत का प्रतिनिधित्व तब भी था जब इस्लामिक समाज ने मजहब के नाम पर भारत की धरती छीन ली थी और गैरइस्लामिक समाज का नरसंहार हुआ था । केरल , बंगाल , कश्मीर में हुई हिंदुओं की नृसंघ हत्या पर ओवैसी जैसे लोगों को कभी दर्द नहीं हुआ और आज फिलिस्तीन जो स्वयं इस्लामिक आतंकवाद का केंद्र है उसकी आवाज भारत की संसद से बुलंद कर विश्व भर के इस्लामिक देशों को दिखाना चाहते हैं कि भारत के जनप्रतिनिधि कितने कमजोर हैं । भारत का भविष्य क्या है यदि आज की स्थिति देखकर भी समझ नहीं आ रहा तो इसका अर्थ है की आप समझना चाहते ही नहीं हैं ।
बहुत से लेख हमको ऐसे प्राप्त होते हैं जिनके लेखक का नाम परिचय लेख के साथ नहीं होता है, ऐसे लेखों को ब्यूरो के नाम से प्रकाशित किया जाता है। यदि आपका लेख हमारी वैबसाइट पर आपने नाम के बिना प्रकाशित किया गया है तो आप हमे लेख पर कमेंट के माध्यम से सूचित कर लेख में अपना नाम लिखवा सकते हैं।