मेरे मानस के राम 3 ( वाल्मीकि कृत रामायण का दोहों में अनुवाद )

राम की मूर्ति से संवाद

इस प्रकार की अनेक घटनाएं हैं जब रामचंद्र जी ने अपने पराक्रम का प्रदर्शन करते हुए अधर्मी लोगों का विनाश किया।
जब हम किसी मंदिर में जाएं और वहां पर रामचंद्र जी की मूर्ति को देखें तो उस मूर्ति से भी हमारा संवाद होना चाहिए। सचमुच वह हमसे बहुत कुछ बात करेगी। हमें बताएगी कि जीवन संग्राम में संकल्प का कितना महत्व है ? यदि उस संकल्प के साथ तादात्म्य स्थापित कर लिया जाए तो उसके कैसे चमत्कारी परिणाम होते हैं ? इतने चमत्कारी कि लोग पत्थर में भी राम खोजने लगते हैं ? पत्थर को तराशना और पत्थर में फिर राम को तलाशना भी संकल्प की साधना है। इस संकल्प के साथ पूरा राष्ट्र, पूरा समाज और संपूर्ण मानवता यदि एकाकार हो जाए, एक रस हो जाए तो आत्मरस की तृप्ति और वृष्टि अपने आप होने लगती है। उस अनुभूति के साथ जो लोग अपने आप को किसी पत्थर के साथ जोड़ देते हैं उनके लिए पत्थर भी देवता बन जाता है अन्यथा वह पाखंड की पराकाष्ठा ही माना जाता है।
राम हमारे भीतर रम गए, हमारे देश की फिजाओं में रम गए, देश की मिट्टी के कण कण में रम गए, कंकड़ कंकड़ में रम गए, सर्वत्र भासने लगे , सर्वत्र अपनी अनुभूति देने लगे। बस , यही राम का वह दिव्य स्वरुप है जो उन्हें अमृत्व प्रदान करता है और उनके चरित्र के भीतर वह विलक्षणता उत्पन्न करता है जो युग युगों से हमें प्रेरणा देती आई है और आगे भी देती रहेगी।
ऐसे राम ही हमारे राष्ट्रीय जीवन के आदर्श होने चाहिए। प्रेरणा के स्रोत होने चाहिए। हम सबके लिए स्मरणीय होने चाहिए। हम सबके लिए वंदनीय और नमनीय होने चाहिए।
हमारे राष्ट्रीय जीवन की अनेक चुनौतियां हैं, जो हमें नये संकल्पों के प्रति सावधान करती हैं। वे हमें बताती हैं कि राम के देश में संकल्प की कमी के कारण ही सर्वत्र अव्यवस्था और अराजकता दिखाई देती है। पारिवारिक स्तर पर भी हमारा संकल्प विकल्प खोज रहा है। सामाजिक स्तर पर भी हम संकल्पहीन दिखाई दे रहे हैं । जबकि राष्ट्रीय स्तर पर तो स्थिति और भी अधिक खतरनाक है। संकल्प की इसी कमी के कारण वर्तमान भारत वैश्विक नेतृत्व की तमाम अपेक्षाओं पर खरा उतर कर भी वैश्विक नेतृत्व प्राप्त करने से अभी कई कदम दूर है।
ऐसी स्थिति में हम विचार करना होगा कि राम की संकल्प शक्ति अयोध्या के किसी मंदिर में खड़ी ना रह जाए। केवल अयोध्या की मिट्टी तक सिमट कर ना रह जाए । उनकी संकल्प शक्ति राष्ट्र के कण कण में दिखाई देने लगे। बोलने लगे। भासने लगे। प्रत्येक व्यक्ति की दिव्य दृष्टि इतनी तेज हो जाए कि वह सर्वत्र राम की संकल्प शक्ति को सुनने समझने लगे और उसके अनुसार काम करने लगे तो निश्चित रूप से हमारा देश विश्व गुरु बन जाएगा।
मैं श्रीराम के आदर्श व्यक्तित्व को जनसाधारण तक अति सरल भाषा में पहुंचाना चाहता था । मेरे द्वारा इस पुस्तक को लिखने का एकमात्र उद्देश्य यही है। मैं अपने प्रयास में कितना सफल हुआ हूं ? यह तो मैं नहीं कह सकता, परंतु अवश्य है कि मैंने भाषा को सरल रखने का हरसंभव प्रयास किया है। जिससे कि स्कूल के छात्र-छात्राऐं भी इसे पढ़ सकें। वे समझ सकें कि हमारे श्री राम कौन थे और आज भी उनके पराक्रमी व्यक्तित्व की कितनी आवश्यकता है?
पुस्तक के प्रकाशन के लिए परमपिता परमेश्वर की असीम अनुकंपा को सबसे पहले हृदय से स्वीकार करता हूं । उसे सर्व शक्तिमान सत्ता के समक्ष नतमस्तक होते हुए पूज्य माता-पिता जी और अपने ज्येष्ठ श्रेष्ठ तीन भ्राताओं क्रमशः प्रोफेसर विजेन्द्र सिंह आर्य, मेजर वीर सिंह और श्री देवेंद्र सिंह आर्य के आशीर्वाद को भी नमन करता हूं। इसके अतिरिक्त अपनी धर्मपत्नी श्रीमती ऋचा आर्या और बेटा अमन आर्य के सहयोग के लिए उन्हें भी शुभकामनाएं अर्पित करता हूं। पुस्तक प्रकाशन में परम सहयोगी रहे प्रकाशक महोदय श्री अतुल कुमार गर्ग जी का विशेष धन्यवाद ज्ञापित करता हूं जिन्होंने अति अल्प समय में इसे पाठकों के हाथों में पहुंचाने में मेरी सहायता की है।
आशा करता हूं कि मेरा यह प्रयास आप सभी को अच्छा लगेगा।

दिनांक: 27 अप्रैल2024

                                                   भवदीय


  डॉ राकेश कुमार आर्य 

निवास : सी0ई0 121, अंसल गोल्फ लिंक – 2, दयानंद स्ट्रीट सत्यराज भवन ( महर्षि दयानंद वाटिका के पास) तिलपता चौक, ग्रेटर नोएडा, जनपद गौतमबुद्ध नगर ,उत्तर प्रदेश, पिन 20 1309, चलवाल 99 11 1699 17

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