वेद निधि ट्रस्ट द्वारा आयोजित आर्य विद्वत लेखक परिषद की राष्ट्रीय संगोष्ठी हुई संपन्न : वैदिक संस्कृति के प्रचार प्रसार का लिया गया संकल्प
देहरादून। ( योगी महेश क्रांतिकारी / नागेश कुमार आर्य / श्रीनिवास आर्य ) यहां स्थित गुरुकुल पोंधा में वेद निधि ट्रस्ट की ओर से आयोजित की गई आर्य विद्वत लेखक परिषद की राष्ट्रीय संगोष्ठी कई प्रस्तावों के साथ संपन्न हो गई। वेद निधि ट्रस्ट के मंत्री डॉ आनंद कुमार ने इस राष्ट्रीय संगोष्ठी की जानकारी देते हुए बताया कि संगोष्ठी के कुल आठ सत्र संपन्न हुए। जिनमें विभिन्न विद्वानों ने अपने बहुमूल्य विचार रखे। उन्होंने बताया कि वैदिक संस्कृति के प्रचार प्रसार का संकल्प लेकर यह राष्ट्रीय संगोष्ठी संपन्न हुई। जिसमें विद्वानों ने स्वामी दयानंद जी महाराज के सपनों का भारत बनाने और लोगों को वैदिक विचारधारा के प्रति समर्पित करने की भावना पर बल दिया। उन्होंने बताया कि सभी विद्वानों ने इस बात पर जोर दिया कि आर्य समाज ने जिस प्रकार भारत के स्वाधीनता आंदोलन में बढ़ चढ़कर भाग लिया था और देश को आजाद कराने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया था उसी प्रकार की भूमिका के लिए नये युवाओं को तैयार करने की आवश्यकता है।
संगोष्ठी में आर्य समाज में वैदिक विद्वानों का कम होता महत्व और उसके दुष्परिणाम, आर्य समाज के पुनरुत्थान में आर्य गुरुकुलों की भूमिका, सीबीएसई गुरुकुल बनाम आर्ष गुरुकुल, आर्ष गुरुकुलों का कम होता महत्व, गुरुकुलों के संचालन में आ रही कठिनाइयों व उनका समाधान, सहित उपदेशकों का निर्माण कैसे हो ? शास्त्रार्थ महारथियों का निर्माण कैसे हो ? आर्य समाज का वर्तमान संगठन स्वरूप चुनौतियां एवं समाधान वैदिक विषयों पर रिसर्च की कार्य योजना और विचारित विषयों के क्रियान्वयन हेतु संकल्प जैसे विषयों पर विस्तार से चर्चा की गई।
इस अवसर पर आर्य समाज के मूर्धन्य विद्वान डॉ ज्वलंत कुमार शास्त्री ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि आर्य समाज में वैदिक विद्वानों का कम होता महत्व बहुत चिंता का विषय है। इसके चलते स्वामी दयानंद की विचारधारा और उनके सपनों का भारत बनाने में कई प्रकार की समस्याएं आ रही हैं। युवा पीढ़ी भारत और भारतीयता के संस्कारों से परिचित नहीं हो पा रही है। जबकि डॉक्टर वेदपाल आचार्य ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि सी0बी0एस0ई0 गुरुकुल भारत की वैदिक शिक्षा प्रणाली के विपरीत संस्कार देकर हमारे देश के युवाओं का चरित्र भ्रष्ट कर रहे है। जिससे आने वाला समय बहुत ही खतरनाक संकेत दे रहा है।
डॉ हरिशंकर अग्निहोत्री ने इस अवसर पर कहा कि वैदिक विद्वानों के माध्यम से ही हम स्वामी दयानंद जी महाराज के वेदों की ओर लौटो के उद्घोष को सार्थक रूप दे सकते हैं। परंतु जिस प्रकार की स्थिति बनती जा रही है , उसमें जहां वैदिक विद्वानों का मूल्य कम हो रहा है वहीं हमारा आदर्श भी हमसे दूर होता जा रहा है।
सुप्रसिद्ध इतिहासकार और भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता डॉक्टर राकेश कुमार आर्य ने इस अवसर पर कहा कि कांग्रेस और कम्युनिस्ट विचारधारा ने मिलकर भारत में वैदिक विचारधारा को मारने का अपराध किया है। उन्होंने कहा कि अंग्रेजों के समय लॉर्ड मैकाले की शिक्षा नीति तो लागू की गई, परंतु उसे कांग्रेस की वर्धा स्कीम के माध्यम से खत्म कर भारत की नई शिक्षा नीति 1937 में लागू की गई। इस पर स्वतंत्र भारत में काम किया गया। जिसके चलते भारत और भारतीयता को नष्ट करने की दिशा में काम किया गया। जिससे सबसे अधिक प्रभावित आर्य समाज ही हुआ । जिसके चलते आर्य समाज के भीतर वैदिक विद्वानों का अभाव होता चला गया। यह ऐसी डकैती थी जिसकी जानकारी आर्य समाज को बहुत देर बाद जा कर हुई। आज जिस प्रकार हमें वैदिक विद्वानों का अभाव दिखाई देता है उसमें कम्युनिस्ट, अंग्रेजों, कांग्रेस मुसलमान आदि सभी का षड्यंत्र काम कर रहा है। डॉ विनय विद्यालंकार ने कई सत्रों का संचालन किया और अपने वक्तव्य में वर्तमान में गुरुकुलों की दयनीय दशा पर प्रकाश डालते हुए उपदेशकों के निर्माण पर अपने महत्वपूर्ण सुझाव दिए।
आर्य जगत के क्रांतिकारी सन्यासी स्वामी सच्चिदानंद जी महाराज ने कहा कि भारत की सनातन संस्कृति के उत्थान के लिए सामूहिक प्रयास करने की आवश्यकता है। स्वामी जी महाराज ने कहा कि आज का युवा जिस प्रकार सोया हुआ है वह चिंता का विषय है। उसे जगाने का काम केवल आर्य समाज ही कर सकता है। यदि स्वामी दयानंद जी महाराज अपने समय में सोए हुए भारत को जगा सकते थे तो आज का आर्य समाज ऐसा कार्य क्यों नहीं कर सकता ? उन्होंने कहा कि भारत की वैदिक संस्कृति वैश्विक संस्कृति है। उसे अपना कर ही संसार का नेतृत्व भारत के हाथों में आ सकता है। उन्होंने उगता भारत के साथ विशेष बातचीत में कहा कि इस समय भाषण देने का समय नहीं है बल्कि जमीन पर उतरकर कार्य करने की आवश्यकता है। क्योंकि विधर्मी भारत की वैदिक संस्कृति के विनाश के महा भयंकर षड्यंत्र में लगे हुए हैं । जिनका सामना पूर्ण मनोयोग से करने के लिए समस्त भारतवासियों को एक स्वर में वैदिक संस्कृति का गान करना होगा।
इसी प्रकार स्वामी प्रणवानंद जी महाराज ने भी इस बात पर बल दिया कि अब कार्य करने का समय आ गया है और सभी आर्यों को मिलकर वैदिक संस्कृति के उत्थान के लिए कार्य करना चाहिए। उन्होंने अपने संबोधन में उपस्थित लोगों का मार्गदर्शन करते हुए कहा कि गुरुकुल शिक्षा प्रणाली के माध्यम से चरित्रवान और राष्ट्रभक्त युवाओं का निर्माण किया जाना संभव है। इसके लिए हमें समर्पित होकर कार्य करने की आवश्यकता है।
वेद निधि ट्रस्ट के राष्ट्रीय मंत्री डॉ आनंद कुमार ने बताया कि इस अवसर पर कई प्रस्ताव की पारित किए गए। जिनमें वसुधैव कुटुंबकम के वैदिक आदर्श को संयुक्त राष्ट्र का सूत्र वाक्य घोषित करने, नोएडा स्थित वेद वाटिका को महर्षि दयानंद वेद वाटिका का नाम देने, भारतीय संविधान की धारा 29 और 30 को संविधान से हटाने, वैदिक शिक्षा सिद्धांतों और संस्कारों को भारतीय शिक्षा प्रणाली में लागू करने की मांग की गई है। इस संगोष्ठी में डॉ धर्मेंद्र शास्त्री, डॉ हरिशंकर अग्निहोत्री ,डॉ रघुवीर वेदालंकार, डॉ पुनीत शास्त्री, डॉ धनंजय आचार्य आदि ने भी अपने विचार व्यक्त किये। डॉ धनंजय आचार्य ने अपने संबोधन में भारत के आध्यात्मिक चिंतन को वैश्विक चिंतन बनाने पर बल दिया। डॉ धनंजय आचार्य ने बताया कि वह इस गुरुकुल के माध्यम से भारत की वैश्विक संस्कृति के प्रचार प्रसार के लिए संकल्पित होकर काम करने वाले युवाओं का निर्माण कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि भारत की वैदिक सत्य सनातन परंपरा की रक्षा का संकल्प लेकर पूर्ण मनोयोग से यदि आर्य समाज आगे बढ़ना आरंभ करेगा तो निश्चय ही वैश्विक समस्याओं का निदान हो सकेगा।
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