व्यक्ति को विभूतियां विधाता की कृपा से ही मिलती हैं:-
आकर्षक व्यक्तित्व हो,
प्रतिभा सौम्य स्वभाव ।
ये तो प्रभु की देन है,
प्रशस्या वाक प्रभाव॥2682॥
व्याख्या : अर्थात् मन को मोहने वाला सुंदर व्यक्तित्व बहुमुखि प्रतिभा का धनी होना तथा इसके साथ-साथ स्वभाव में शालीनता, अहंकार शून्यता होना ये बड़प्पन के लक्ष्ण है, ये ऐसी विभूतियाँ है जो परमपिता परमात्मा की देन है इनको प्रारब्ध के आधार पर किसी पुण्यशील आत्मा को ही देता है। जो ऐसी पुण्यशील आत्मा होती है उसकी वाणी वाक बन जाती है अर्थात् उसकी वाणी परिमार्जित होती है उसकी वाणी से विद्वता और विनम्रता झलकती है तथा उसकी वाणी में प्राण और प्रण का समावेश होता है यानी की उपकी वाणी से कह गए शब्द दृढ़ संकल्प के परिचायक होते है जो वाणी के प्राण कहलाते हैं ऐसी वाणी हृदय स्पर्शी होती है और जनमानश पर प्रभाव डालने वाली होती है। ऐसा व्यक्तित्व कोई बिरला है।
प्रभु प्राप्ति का लक्ष्य,जब अधूरा रह जाए,उसके संदर्भ में –
ऐंद्रिक सुखों में फंसा रहा,
मिटी ना रूह की भूख।
बूंद मिली ना सिंधू में,
गई राह में सूख॥2683॥
तत्वार्थ:- भाव यह है कि मानव जीवन का लक्ष्य तो प्रभु प्राप्ति था किन्तु मनुष्य संसार में आकर भौतिक वाद में इस प्रकार उलझ जाता है जैसे मकड़ी अपने बूने हुए झाल में स्वयं उलझ जाती है। वह अपन ज्ञानंद्री और कर्मइंद्री को तृप्त करने को ही अपना लक्ष्य समझता है जैसे- आँख रूप को देखने में, कान शब्द को सुनने में नासिका गंद लेने में रसना स्वाद लेने में और वाणी कटू बोलने में, निंदा चुगली करने में असत्य बोलने और असंगत बकवास करने में रसानुभूति में लीन हो जाते हैं। मनुष्य तन मन और इंद्रियों की भूख को तो तृप्तकरता है किन्तु आत्मा की भूख तो भगवद् भजन से मिटती है, अध्यात्म के मार्ग पर चलने से मिलती है यह मार्ग श्रेय मार्ग है जिसकी प्रशंसा वेद में की गई है इस मार्ग पर चलने वाले साधको की हो प्रभू-प्राप्ति होती है किन्तु जो इस मार्ग से भटक जाते हैं उनकी दशा ऐसी होती है जैसे बादल से निकली बूंद सागर में मिलना चाहती थी किन्तु मार्ग भटक कर बालू रेत में जा पड़ी औ वहीं सूख गई अतः सारांश यह है कि मनुष्य जन्म पाकर संसार की भलाई और भगवद् भजन मनुष्य को अवश्य करना चाहिए।
‘ दोहा ‘विद्या कब तपस्विनी होती है?:-
विद्या तपस्विनी भवः,
ज्यों-ज्यों बढ़े अभ्यास । यशवर्धन होने लगे,
लोग करें विश्वास॥2684॥
जीवन की क्षणभंगूरता के संदर्भ में ‘शेर’
मैं सूरज हूँ,
मंजर कोई निराला छोड़ जाऊँगा,
डूवते हुए भी,
मैं उजाला छोड़ जाऊँगा॥2685॥
सृष्टा और संसार के संदर्भ में ‘शेर’
खुदा तो खुदा है,
वह किसी के हुक्म का,
पाबन्द नहीं है।
इस दुनिया में,
आकर्षण तो है,
मगर आनंद नहीं हैं॥2686॥
*'सुख्ति' जीवन में इस क्रम को सदैव याद रखिए -*
अंग्रेजी में कहावत है
Our Thought will decide our destination अर्थात् हमारे विचार ही हमें हमारे गन्तव्य तक पहुंचाते हैं। हम जैसा सोचते हैं, वैसा ही बोलते जैसा बोलते हैं वैसे ही कर्म करते हैं, जैसे कर्म करते है वैसी ही आदते बनती है, जैसी आदते होती है वैसा ही चरित्र बनता है, जैसा चरित्र होता है वैसा ही गन्तव्य होता है।
क्रमशः