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आतंकवाद संपादकीय

सिर उठाता आतंकवाद और हमारा पड़ोसी देश

‘ इंडिया’ गठबंधन के कई नेताओं ने जिस प्रकार अपने आपको चीनपरस्त और पाकिस्तानपरस्त दिखाकर देश के लोगों से वोट मांगे थे, उससे यह आशंका पहले से ही व्यक्त की जा रही थी कि यदि ‘ इंडिया ‘ गठबंधन मजबूत हुआ या इसकी सरकार आई तो पाक प्रायोजित आतंकवाद का बढ़ना निश्चित है। अब जबकि केंद्र में स्पष्ट बहुमत के साथ एनडीए गठबंधन की सरकार बन चुकी है और प्रधानमंत्री मोदी निरंतर तीसरी बार देश के प्रधानमंत्री के पद की शपथ ले चुके हैं तो ‘ इंडिया ‘ गठबंधन के नेताओं के बयानों का प्रभाव कश्मीर में बढ़ते आतंकवाद के रूप में दिखाई देने लगा है। इसमें दो मत नहीं हैं कि अभी हाल ही में संपन्न हुए लोकसभा के चुनाव में ‘ इंडिया ‘ गठबंधन की शक्ति बढ़ी है। ऐसे में पाकिस्तानपरस्त शक्तियां भारत में अस्थिरता पैदा करने के लिए सक्रिय होती हुई दिखाई दे रही हैं। इस सबके बीच यह प्रसन्नता का विषय है कि अभी हाल ही में संपन्न हुए लोकसभा चुनाव के समय जम्मू – कश्मीर के लोगों ने बढ़-चढ़कर मतदान किया। ऐसा करके जम्मू – कश्मीर के लोगों ने भारत के संविधान और भारतीय लोकतांत्रिक शासन-प्रणाली के प्रति अपनी गहरी आस्था व्यक्त की। जिसे पाकिस्तान पचा नहीं पा रहा है। यह अलग बात है कि उसके द्वारा अधिकृत कश्मीर में लोग लोकतंत्र की खुली हवाओं के लिए तड़प रहे हैं।
नए ढंग से पनप रहे आतंकवाद को भारत सरकार को गंभीरता से लेना होगा। क्योंकि ये आतंकवादी घटनाएं भारत की एकता और अखंडता को तार-तार करने के लिए की जा रही हैं। जब कश्मीर के लोगों ने भारतीय लोकतंत्र के प्रति अपनी आस्था व्यक्त करते हुए भारत के साथ जीने-मरने का संकल्प लेकर आगे बढ़ने का निर्णय कर लिया है तो यह मान लेना चाहिए कि पाकिस्तान पोषित आतंकवादी इस प्रकार की सोच को सहन नहीं कर सकते। उन्होंने जिस प्रकार जम्मू क्षेत्र में रियासी, कठुआ और डोडा में पिछले दिनों चार आतंकवादी घटनाएं की हैं, उससे भारत सरकार को सचेत हो जाना चाहिए। हमें अपने सुरक्षा बलों को आतंकवाद से निपटने के लिए उनके हाथों को मजबूत करना होगा। यद्यपि केंद्र की मोदी सरकार ने पहले से ही देश के सुरक्षा बलों और सेना को आतंकवाद से निपटने के लिए भरपूर शक्ति दे रखी है , परंतु यदि उसमें कहीं कोई ढील आ गई है तो ऐसी ढील को भी अब समाप्त करने का समय है। लगता है पाकिस्तान भारत की ओर से फिर किसी प्रकार की ‘ सर्जिकल स्ट्राइक ‘ चाहता है । भारत को अपनी एकता और अखंडता को बचाए रखने के लिए किसी भी प्रकार की कठोर कार्यवाही से अपने आपको बचाना नहीं है। हमारे प्रत्येक नागरिक की जान बहुत कीमती है, – यह सोचकर काम करने की आवश्यकता है। यदि कोई भी आतंकवादी हमारी भूमि पर आतंकवादी घटना करता है तो उसे कुचलने में किसी प्रकार का संकोच नहीं होना चाहिए।
पिछले सैकड़ों वर्ष से कश्मीर ने आतंकवाद और हिंदुओं के प्रति एक संप्रदाय विशेष के नेताओं की सांप्रदायिक सोच के चलते अनेक प्रकार के कष्ट उठाए हैं। धारा 370 के हटने के पश्चात बड़ी कठिनता से यहां के हिंदुओं को कुछ खुली हवाओं का आभास अब हो रहा है। उस हवा को फिर से प्रदूषित करने का प्रयास किया जा रहा है। तनिक कल्पना कीजिए कि यदि केंद्र में ‘ इंडिया ‘ गठबंधन की सरकार आ गई होती तो क्या होता ? हमें उस समय को याद रखना चाहिए जब विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार में पहली बार मुफ्ती मोहम्मद सईद के रूप में एक मुस्लिम देश के गृहमंत्री बने थे। उनका संबंध कश्मीर से ही था। उन्होंने अपनी एक बेटी के अपहरण का झूठा नाटक करवाया और उस झूठे नाटक ने कश्मीर में हिंदुओं के लिए दुर्दिनों का दौर आरंभ कर दिया। राजनीति के घाघ लोग आज तक भी इस सच को स्वीकारने को तैयार नहीं हैं कि छद्म धर्मनिरपेक्षता की नीति में विश्वास रखने वाले लोगों ने जब कश्मीर को एक मुस्लिम गृहमंत्री के हाथों में सौंपा तो वहां पर आतंकवाद की खूनी आंधियां चलने लगीं थी। कुछ लोग आज फिर इस छद्म धर्मनिरपेक्षता के नाम पर चुनाव में नई ऊर्जा लेकर संसद पहुंचे हैं। उनके खूनी इरादों ने देश के भीतर और बाहर बैठे गद्दारों को भारत को अस्थिर करने का अवसर उपलब्ध कराया है।
यह अच्छी बात है कि इन आतंकी घटनाओं को केंद्र की मोदी सरकार ने बहुत गंभीरता से लिया है । घटनाओं के पश्चात कुछ गिरफ्तारियां भी की गई हैं और हथियार भी बरामद किए गए हैं। पिछले दिनों प्रधानमंत्री ने गृहमंत्री अमित शाह, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और सुरक्षा एजेंसियों के साथ एक उच्च स्तरीय बैठक भी की है। जिसमें आतंकवाद की नई चुनौती से नई रणनीति के द्वारा निपटने पर विचार किया गया है। आतंकवाद की नई घटनाओं को करवाकर पाकिस्तान ने यह संकेत दिया है कि वह भारत के प्रति अपनी परंपरागत शत्रुता को जीवित किये रखने के पक्ष में है । यद्यपि उसे यह ज्ञात होना चाहिए कि केंद्र की मोदी सरकार भले ही इस समय पहले की अपेक्षा कुछ कम सीट लेकर सत्ता में लौटी हो, परन्तु उसका हौसला और देश के प्रति समर्पण का भाव कहीं से भी कम नहीं हुआ है। इसका एक कारण यह भी है कि देश के लोग देश की सीमाओं के प्रति सरकार की कठोर नीति के साथ खड़े हैं। उन्हें देश की सीमाएं सुरक्षित चाहिए, इसके लिए उनका खुला समर्थन अपनी सरकार के साथ है। पाकिस्तान को यह भी याद रखना चाहिए कि भारत के प्रधानमंत्री अभी भी मोदी ही हैं और मोदी सरकार की नीति ‘ राष्ट्र प्रथम ‘ की है। उसकी दृढ़ इच्छा शक्ति को चुनौती देना पाकिस्तान के लिए कभी संभव नहीं है।
भारत सरकार को चाहिए कि वह जम्मू में सिर उठाते आतंकवाद का प्रति उत्तर देते हुए पाक अधिकृत कश्मीर को यथाशीघ्र भारत के साथ मिलाकर पिछले 75 वर्ष के सारे हिसाब किताब को पाक साफ कर दे। भारत को अपनी सशस्त्र सेनाओं पर भरोसा है। आवश्यकता इस भरोसे को सारे विश्व को दिखाने की है। यह तभी संभव है जब हम अपने पड़ोसी देश के इरादों को समझते हुए उसके विरुद्ध कठोरता से पेश आने के लिए तैयार रहें। जब बार-बार समस्याएं बोई जाती हों तो ऐसी समस्याओं को बोने वालों के हाथों को काटना भी समस्या का एक समाधान ही होता है।

डॉ राकेश कुमार आर्य

(लेखक सुप्रसिद्ध इतिहासकार और भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता हैं।)

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